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वहीं हाइवे पर बने पानी आने जाने के लिए बने पुल पर रह रहा था

पिछले साल जून महीने में नेशनल हाइवे पोलासबनी डेमका डीह में एक पागल जैसा दिखने वाला एक व्यक्ति वहां के सुबोध गौड़ और महेश गौड़ को सड़कों पर बारिश के समय भींगते हुआ मिला था, जो वहीं हाइवे पर बने पानी आने जाने के लिए बने पुल पर रह रहा था. इन दोनों ने उसे पास के देवा गौड़ के होटल में जाकर रहने के लिए बोला. व्यक्ति का नाम बृजलाल है. गाँव का नाम सोनटोला और पास के जगह का नाम पाथरी बता रहा था. काफ़ी कमजोर हो गया था. इन लोगों ने उसका इलाज कराया. इसके बाद से अभी तक उसका ठिकाना देवा होटल ही था. बात करने में असमर्थ था. हिंदी बोल नहीं पाता था.

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पूछताछ के बाद पता चला कि आदिम जनजाति वैगा समुदाय का है

लगभग 8 महीने के बाद सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्त्ता दीपक दीपक रंजीत से बृजलाल की मुलाकात हुई. तब दीपक रंजीत ने उससे बात कर काफ़ी मशक्कत के बाद उससे उसका पता पूछने की कोशिश की, तो सिर्फ व अपना नाम और गाँव का नाम सोन टोला और पाथरी ही बता पा रहा था. कई दिनों के पूछताछ के बाद पता चला कि आदिम जनजाति वैगा समुदाय का है.

घर वालों ने उसे मरा हुआ समझकर उसका क्रिया-कर्म भी कर दिया है

तब दीपक रंजीत ने आदिवासियों के बीच काम करने वाले सामजिक-राजनैतिक कार्यकर्त्ता भुवन सिंह कोरामा से सम्पर्क किया, तो पता चला पाथरी मध्यप्रदेश जिले के बालाघाट क्षेत्र का रहने वाला है. उन लोगों ने उसके घर वालों से सम्पर्क किया, तो पता चला कि लगभग 15 साल पहले बृजलाल चापाकल गाड़ी में काम करने के केरल गया था. उस समय बृजलाल का बेटा एक महीने का था. आज 15 साल का हो गया है. घर वालों ने उसे मुर्दा समझकर उका क्रिया-कर्म भी कर दिया है. जब पता चला कि बृजलाल जिन्दा है, तो उसके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई.

 

जाने से पहले देवा होटल में उसका विदाई समारोह किया गया

तब बृजलाल को लेने के लिए सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्त्ता भुवन सिंह कोराम के नेतृत्व में पास के सुखसिंह नेताम, समारु सिंह धुरबे और बृजलाल के छोटा भाई धुरबे लेने के लिए आए थे. इस दौरान बृजलाल हिंदी और राढ़ी बांग्ला भाषा भी सीख गया. जाने से पहले देवा होटल में उसका विदाई समारोह किया गया और खुशी-खुशी उसे विदाई दिया गया. आज बृजलाल घर पहुंच जाएगा. उसके गाँव में उसके स्वागत में वहां का आदिवासी समुदाय जुटा हुआ है.

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Shashank Shekhar

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.

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