अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास पर चर्चा
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च को शार्क कार्यालय परिसर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास पर चर्चा की गई।
मोना हसन ने कहा कि न्यूयॉर्क में महिलाओं ने अपने हक के लिए लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई सूती मिल में काम कर रही महिलाओं की थी. उन्होंने ‘समान काम का समान वेतन’ की मांग की तथा 16 घंटे के बदले में 8 घंटे की काम की मांग की। उनकी यह मांग मानी गई और उन्हें समान वेतन पाने का अधिकार प्राप्त हुआ। प्रीति गुड़िया ने यह कहा, ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मैं उन महिलाओं को भी याद करूंगी, जिन्होंने हमारे देश में महिलाओं को शिक्षित करने के लिए कार्य किए. सावित्रीबाई फुले, रानी लक्ष्मीबाई, फूलों- झानो, कस्तूरबा गांधी जैसी महिलाओं ने हम जैसी महिलाओं को प्रेरणा मिलती है।’
एक महिला अगर ठान ले तो समाज को नई दिशा दे सकती है
कामेश्वर वर्मा ने कहा कि एक महिला अगर ठान ले तो अपने परिवार से शुरू कर समाज को नई दिशा दे सकती है। भारत देश में व्याप्त दहेज प्रथा को समाप्त कर सकती है। सोनाली प्रभा ने कहा कि महिलाओं के हित में कई कानून बने हैं, इन कानूनों को भी समझने की जरूरत है और उसे अमल में लाने की जरूरत है। श्यामली सुमन ने कहा कि आज महिलाओं को कई अधिकार मिले हैं। कई महिलाओं ने स्वयं से कई अवसर प्राप्त किए हैं। प्रतिभा पाटिल, इंदिरा गांधी, द्रौपदी मुर्मू, कल्पना चावला जैसी महिलाएं मिसाल बनीं। चंचल ने कहा, ‘हम कई समस्याओं से घिरे हुए हैं। हम जैसे लड़कियों को बाहर निकालने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।’
महिलाओं के अधिकारों को आहिस्ते से रोका गया, वे बंधनों में बंधती गईं
पिंकी कुमारी ने कहा, ‘हमारे समाज में कई समस्याएं व्याप्त हैं. उन समस्याओं को दूर करने के लिए हम जैसे शिक्षित युवा वर्ग को आगे आने की जरूरत है।’ श्वेता शशि ने कहा, ‘हमें आगे बढ़ाने के लिए खुद को प्रयास करना होगा। हमें पुरुषों की भी सहयोग जरूरत है, ताकि हम महिलाएं पुरुषों के बराबर आगे बढ़ सकें।’ मनीषा श्वेता मरांडी के एक कविता के माध्यम से अपने विचार को व्यक्त किए। कुमार दिलीप ने कहा कि एक समय महिलाओं को घर की ज़िम्मेदारी दी गई थी और धीरे-धीरे ऐसी व्यवस्था बनाई गई, जिससे पुरुष प्रधान समाज बन गया। महिलाओं के अधिकारों को आहिस्ते से रोका गया, वे बंधनों में बंधती गईं। हमारे समाज ने चारों ओर से महिलाओं को बंद करके रखा है, उन्हें अपने अधिकार को समझते हुए अपने पहचान को स्थापित करने की जरूरत है।
मानसिकता को बदलने की जरूरत
बिन्नी ने कहा, ‘एक महिला ही पुरुष और स्त्री के बीच भेदभाव को स्थापित करती है। हम अपने बच्चों को बचपन से ही सिखाते आए हैं कि कौन सा काम लड़के को करना है, कौन सा काम लड़की को। हमें ऐसी मानसिकता को बदलने की जरूरत है। हमें छोटी-छोटी बातों को भी ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ाने की जरूरत है, जिसे हमें समाज बनाने में और हमारे अधिकार पाने में सफल होंगे।’
देश के हर समुदाय में महिलाओं पर रोक है
डॉ. विश्वनाथ आजाद ने कहा, ‘देश के हर समुदाय में महिलाओं पर रोक है। एक घटना से जोड़ते हुए कई बालिकाओं की शिक्षा एवं उनके अधिकार को रोका जाता है। हमें खुली दिमाग से सोचने की जरूरत है। समाज को एक नई दिशा देने की जरूरत है। हम एकल नारी सशक्ति संगठन की ओर से यह संदेश समाज को दे रहे हैं। हम एक समतामूलक समाज बनाने की परिकल्पना करते हैं।’
कार्यक्रम में विशेष रूप से प्रीति गुड़िया, श्यामली सुमन, मनीषा श्वेता मरांडी, चंचल कुमारी, पिंकी कुमारी, प्रियंका कुमारी, श्वेता शशि, दिव्यांशु दीप, वंश राज, मोहम्मद रिजवान, कुमार दिलीप बिन्नी एवं डॉ विश्वनाथ आजाद शामिल हुए। अंत में एक क्रांति गीत “तू खुद को बदल… तब ही तो जमाना बदलेगा” के साथ संगोष्ठी को समाप्त किया गया।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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