कोविड -19 महामारी के कारण पिछले दो साल से संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक और वैश्विक मुद्दे छिप से गए थे. इनमें से स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं के अलावा बच्चों, गरीबों, पीड़ितों के लिए हो रहे प्रयासों को भी धक्का लगा है महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन ने कई समस्याओं को गहरा भी कर दिया है l ऐसा ही एक सामाजिक न्याय का मुद्दा है l
मानव अधिकारों और दुनिया में फैली विषमताओं के बीच समाज में अवसरों और विशेषाधिकारों के वितरण में न्याय स्थापित करने सामाजिक न्याय के दायरे में आता है l इसके महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र हर साल 20 फरवरी को सामाजिक न्याय विश्व दिवस मनाता है l
क्या होता है सामाजिक न्याय
आधुनिक समाज में सभी लोगों को समान अवसर और सुविधाएं मिलें यह सामाजिक न्याय का ही नहीं सभी देशों का आदर्श है l सामाजिक न्याय का लक्ष्य इसमें आ रही बाधाओं को सुनिश्चित करना है जिससे सभी लोगों की सामाजिक भूमिकाएं पूरी हो सकें और उन्हें समाज से वह मिल सके जिसके वे हकदार है l इसके लिए समाज के विभिन्न संस्थानों को अधिकारों और कर्तव्यों दिए जाते हैं जिसने ये लक्ष्य हासिल किए जा सकें l
कब से मनाया जा रहा है
संयुक्त राष्ट्र की आमसभा ने 26 नवबंर 2007 को ऐलान किया था कि हर साल 20 फरवरी का दिन सामाजिक न्याय के लिए विश्व दिवस के रूप में मनाया जाएगा l संयुक्त राष्ट्र की आमसभा ने इस दिवस की शुरुआत मानवता को खतरे में डालने वाली समस्या से निपटने के लिए शुरू किया गया था l इसका मकसद समानता फैलाते हुए अन्याय और भेदभाव को मिटाना है l
जाते हुए कोविड काल में किस बात पर जोर
संयुक्त राष्ट्र ने साल 2022 के लिए अपनी थीम में औपचारिक रोजगार पर जोर दिया है l इसीलिए इस साल की थीम भी है, “औपचारिक रोजगार के जरिए सामाजिक न्याय हासिल करना”l संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया के 2 अरब लोग यानि 60 प्रतिशत नौकरीशुदा जनसंख्या अपना जीविकोपार्जन अनौपचारिक अर्थ्वयवस्था से करते हैं l कोविड19 महामारी ने इस अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम कर रहे कर्मजारियों और कामगारों की कमजोरी पर ध्यान दिलाया है l
सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार बनते बच्चे
खुशबू शर्मा राजस्थान के अलवर जिले के बाल मित्र ग्राम (बीएमजी), गोपालपुरा की बाल नेता हैं l एक बाल अधिकार कार्यकर्ता के रूप में, वह सुनिश्चित करती हैं कि उसके गांव और आसपास के गांवों के बच्चे स्कूल जाएं। इसके लिए वह लोगों को जागरूक करते हुए शिक्षा के महत्व को भी बताती हैं। बात चाहे स्वास्थ्य की हो या फिर पर्यावरण की, इस दिशा में खुशबू के अभियानों से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।
जब अर्चना ने अपने गांव के लोगों को महामारी से जूझते और मास्क खरीदने पर पैसे खर्च करने में असमर्थ देखा, तो उसने कुछ करने की ठानी। अपनी नियमित ऑनलाइन स्कूल कक्षाएं समाप्त करने के बाद मास्क सिलना शुरू कर दिया।अर्चना की प्रेरणा से, यह उन बच्चों में करुणा भाव का जागृत होना ही था कि बाल पंचायत के सदस्यों के एक समूह द्वारा पिपलाई में 3000 से अधिक मास्क सिले गए और जरूरतमंदों को दिये गए।
कभी चिलचिलाती गर्मी में 8 वर्ष की उम्र में भट्ठा मजदूरी करने को मजबूर रहे राजेश कुमार जाटव, आज दिल्ली विश्वविद्यालय से फ़िज़िकल साइन्स और इलेक्ट्रॉनिक्स में स्नातक कर रहे हैंभाई-बहनों में सबसे बड़े, राजेश को अक्सर मालिकों द्वारा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था और ज्यादा देर तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
बाल विवाह को मिटाने का संकल्प लिए आगे बढ़ती कविता
कविता का जब 14 वर्ष की उम्र में बाल विवाह होने जा रहा था l तमाम कोशिशों के बाद भी उसका बाल विवाह हो गया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी थी। अभी भी उसके अंदर शिक्षा पाने की ललक बची हुई थी। वो मानती थी बेशक पारिवारिक दबाव में उसका बाल विवाह हो गया हो लेकिन हर सूरत में वो स्कूल जाएगी।
उसने ससुराल जाने से मना कर दिया था और माँ-बाप के घर से ही रोजाना 14 किलोमीटर साईकिल चला कर स्कूल जाती थी। वास्तव में उसके इस कदम ने उन सामाजिक कुरीतियों की बेड़ियों को तोड़ने का काम किया था जिसने वर्षों से हमारी देश की बच्चियों को अभी भी कैद किए रखा है। कविता कहती हैं कि शुरू में तो मुझे डर लगता था। लेकिन आज मुझे पता है कि मुझे क्या करना है।
मैं वकील बनना चाहती हूं और जो सही है उसके लिए खड़ी होना चाहती हूं। एक वकील के रूप में मैं यह सुनिश्चित करना चाहती हूं कि सभी बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जाए और बाल विवाह की प्रथा को हमेशा के लिए मिटा दिया जाए।
यह महज प्रेरणादायक कहानियाँ नहीं हैं। असल में यह बच्चे एक ऐसे सामाजिक परिवर्तन की आधारशिला को मजबूती के साथ रख रहे हैं जो आगे चल कर सामाजिक ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन का आधार बनेगी। भविष्य में सभी बच्चों को न्याय सुनिश्चित हो पाएगा और आने वाली पीढ़ियों में इसका असर नजर आएगा।
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