झारखंड, बंगाल और ओडिशा में पिछड़ी जाति की सूची में दर्ज कुर्मी अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) का दर्जा पाना चाहते हैं। इसे लेकर दबाव बनाने की रणनीति के तहत इस जाति से जुड़े संगठनों ने एक साथ दक्षिण-पूर्व रेलवे के कई स्टेशनों पर पटरियों पर धरना देकर मंगलवार को ट्रेनों का परिचालन ठप कर दिया था। आंदोलन की वजह से आठ ट्रेनें रद करनी पड़ी, जबकि 13 ट्रेनों को रास्ता बदलकर चलाया गया। यह बीते 14 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिपरिषद की बैठक में हुए उस निर्णय की प्रतिक्रिया थी, जिसमें हिमाचल प्रदेश की हट्टी, तमिलनाडु की नारिकोरावन और कुरीविक्करन, छत्तीसगढ़ की बिंझिया, उत्तर प्रदेश की गोंड और कर्नाटक की बेट्टा-कुरुबा जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची में दर्ज करने का निर्णय किया गया था।
अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग
अरसे से कुर्मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग कर रहे इस जाति के लोग इससे आक्रोशित हो गए। रेलवे का रास्ता रोककर अपना ध्यान आकृष्ट कराने के बाद इन्होंने जल्द ही दूसरे चरण के आंदोलन की तैयारी भी आरंभ कर दी है। अबतक अलग-अलग स्तर पर अपने राज्य में इस मांग को लेकर दबाव बना रहे कुर्मी संगठनों ने संयुक्त संगठन भी बना लिया है, जिसे आदिवासी कुर्मी समाज (टोटेमिक) नाम दिया गया है। इसकी समन्वय समिति के सदस्य शैलेन्द्र महतो के मुताबिक अब आश्वासन से काम नहीं चलेगा। झारखंड, बंगाल और ओडिशा के कुर्मियों की यह पुरानी मांग है। हम 1950 से पहले अनुसूचित जनजाति में शामिल थे। अब अपना हक पाने के लिए मिलकर लड़ेंगे। जल्द ही तीनों राज्य में आंदोलन के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन होगा। इसकी तैयारी आरंभ कर दी गई है।
झारखंड-बंगाल से हो चुकी अनुशंसा, बीजद भी साथ
वर्ष 2005 में तत्कालीन झारखंड सरकार और 2017 में बंगाल सरकार ने केंद्र को इस संबंध में अनुशंसा भेजी थी। ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजद का समर्थन इस मांग को है। झारखंड में सभी दल इस मांग का समर्थन करते हैं। चुनावों के वक्त कुर्मी समुदाय को रिझाने के लिए इस मुद्दे को उछाला जाता है। कुर्मी संगठनों का दावा है कि झारखंड में उनकी आबादी 25 प्रतिशत है। ओडिशा में इस जाति की आबादी 25 लाख और बंगाल में 40 लाख है। बंगाल के जंगल महाल क्षेत्र की 35 विधानसभा सीटों पर इनके प्रभाव को देखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर केंद्र को अनुशंसा भेजने का आश्वासन दिया है। ओडिशा में झारखंड से सटे जिलों मयूरभंज, क्योझर, बालासोर, अंगुल, जाजपुर, सुंदरगढ़ और संभलपुर में ये बहुतायत में हैं।
जनजातीय शोध संस्थान रांची कर चुका है इन्कार
कुर्मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के पीछे तकनीकी पेच भी है। रांची स्थित जनजातीय शोध संस्थान ने इस संबंध में शोध के बाद इससे इन्कार कर दिया था। संस्थान के मुताबिक कुर्मियों का रहन-सहन, खानपान, परंपरा से लेकर पूजा-पाठ करने का तौर-तरीका अलग है। वे अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं किए जा सकते।
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