नाबालिग से बलात्कार व हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक शख्स को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया है, क्योंकि अभियोजन पक्ष अपने मामले में साबित करने में विफल रहा है। इस तरह न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा व न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले आदेश को रद्द कर दिया। इसके अलावा उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता नाजिल को उन सभी आरोपों से बरी कर दिया, जिसके लिए उस पर मुकदमा चलाकर उसे दोषी ठहराया गया था।
अभियोजन के साक्ष्य को सत्य के रूप में स्वीकारना कानून की आवश्यकता नहीं
हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता को किसी अन्य मामले में वांछित नहीं होने की स्थिति पर तत्काल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा, “दुर्भाग्य से ट्रायल कोर्ट अभियोजन साक्ष्य की विश्वसनीयता का परीक्षण करने में विफल रहा और अभियोजन के साक्ष्य को सत्य के रूप में स्वीकार किया, जो कानून की आवश्यकता नहीं है।”
हाईकोर्ट 13 दिसंबर, 2019 को एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए नाजिल द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी।
निचली अदालत ने पोक्सो एक्ट के तहत ठहराया था दोषी
उसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट (महिलाओं के खिलाफ अपराध) / विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, रामपुर की अदालत द्वारा धारा 363 (अपहरण), 376एबी (12 वर्ष से कम उम्र की महिला के बलात्कार के लिए सजा) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। ) भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) पोक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत सजा सुनाई गई थी।
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आरोपी को दोषी ठहराने के लिए कुछ भी नहीं था-अदालत
इसके अलावा उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता नाजिल को उन सभी आरोपों से बरी कर दिया, जिसके लिए उस पर मुकदमा चलाया गया उसे दोषी ठहराया गया था। अदालत ने माना कि पीड़िता के शरीर के अंग गायब थे पुलिस के सामने उसके द्वारा दिए गए इकबालिया बयान के अलावा रेप के लिए आरोपी को दोषी ठहराने के लिए कुछ भी नहीं था।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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