आइए आज की कड़ी में जानते है कैसे स्वास्थ के क्षेत्र में बीमा केंद्रित दृष्टिकोण महामारी के दौरान प्रभावी रहा? कोरोना काल में बीमाधारकों के अनुभव बताते हैं कि उन्हें वादों के अनुरूप बीमा का लाभ नहीं मिला।
ऐसे में क्या सरकार स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर फिर से अपना ध्यान केंद्रित करेगी? हम एक लंबी सीरीज के जरिए देश के कुछ हिस्सों से कुछ ऐसे मामले पेश कर रहें हैं जो आपको बीमा के उन अनुभवों और सच्चाईयों से वाकिफ कराएंगे। जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत जब थी, तब वह लोगों को नहीं मिला।
अप्रैल,2021 में जब देश में महामारी फैल रही थी, तब मध्य प्रदेश के एक जिले के किसान श्यामलाल जी की जो अपने 19 वर्षीय बेटे का कोविड-19 का इलाज कराने के लिए गुजरात में 200 किमी से अधिक की यात्रा करनी पड़ी। वह बताते हैं, “हमने शुरू में उसे जिला के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन उसकी तबीयत बिगड़ती रही। फिर हमने उसे गुजरात के वडोदरा के अस्पताल में एडमिट करने का फैसला किया।”
पीएमजेएवाई कार्ड सिर्फ सर्जरी के लिए मान्य,ना की भर्ती के लिए
जैसा कि हम सब जानते है कि पीएमजेएवाई के लाभ पूरे भारत में लिए जा सकते हैं और इसका फायदा उन्हें भी मिला। 17 दिन तक संक्रमण से जूझने के बाद उनका बेटा बच गया, लेकिन अस्पताल के बिल ने उसकी आंखों में आंसू ला दिए थे। वडोदरा अस्पताल के डॉक्टरों ने परिवार को 1.5 लाख रुपए का बिल थमा दिया। उनका कहना था कि पीएमजेएवाई कार्ड केवल सर्जरी के लिए मान्य है, अस्पताल में भर्ती के लिए नहीं।
जब भरपाई के लिए जिले के अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज कराई और ताकि मंजूरी मिल जाए। पर जब पीएमजेएवाई कार्यालय में स्वीकृत पत्र जमा किया गया तो वहां के अधिकारियों ने स्पष्ट कारण बताए बिना आवेदन को खारिज कर दिया।
योजना में कब अस्पतालों का पैनलबद्ध होना
बिहार के एक स्कूली छात्र आशीष कुमार ने बताया कि,कैसे उसने अपने पिता को बिहार के पटना जिले में एक सरकारी अस्पताल के बाहर खड़ी एम्बुलेंस में भर्ती कराने के इंतजार में खो दिया था। भेरहरिया इंग्लिश गांव में रहने वाले आशीष कहते हैं, “हमारे पास एक मान्य पीएमजेएवाई कार्ड था। हमें उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण हमारे गांव के सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा विशेष कोविड-19 अस्पताल में भेजा गया था। फिर भी पिता को भर्ती नहीं किया गया।” उन्होंने मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त अस्पताल नहीं होने पर बीमा योजना की फेल्योर पर अफसोस जताया।
पात्र होने के बावजूद योजना के दायरे से बाहर
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के जितेंद्र का पूरा विश्वास है कि अगर उनके परिवार को पीएमजेएवाई के दायरे में लाया गया होता तो वह महामारी में दिवालिया नहीं होते। जितेंद्र बताते हैं, “मेरे दोनों भाई किसान हैं और योजना के तहत नामांकित हैं। कई बार आवेदन देने के बावजूद मेरा नाम पात्र लोगों की सूची में नहीं है।” महामारी की दूसरी लहर के दौरान जब उनकी पत्नी कोविड-19 से संक्रमित हुईं तो जितेंद्र ने अस्पताल में बेड की तलाश में भोपाल तक 90 किमी़ की यात्रा की।
वह बताते हैं, “मेरे गृह जिले के कुछ अस्पताल ही कोविड-19 का इलाज कर रहे थे। यहां तक कि भोपाल के सरकारी अस्पतालों में भी बेड नहीं थे।” इसके बाद उन्होंने एक निजी अस्पताल से संपर्क किया। अस्पताल ने उन्हें बताया कि 10 दिनों के इलाज में अनुमानित 1.5 रुपए खर्च होंगे। जितेंद्र ने अपने जीवनभर की जमापूंजी इलाज पर खर्च कर दी।
बहुत सारे समुदाय आज भी इस योजना से वंचित
पीएमजेएवाई का उद्देश्य सबसे गरीब 40 प्रतिशत आबादी को बीमा कवरेज प्रदान करना है, लेकिन आज भी बहुत से समुदाय भी इस योजना से वंचित हैं।उदाहरण के लिए महामारी के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले हजारों सेक्स वर्कर इसके दायरे में नहीं हैं।
सेक्स वर्कर और स्थानीय गैर लाभकारी संस्था सहेली एचआईवी/एड्स कार्यकर्ता संघ से जुड़ी विनीता राणे कहती हैं, “सरकारी अस्पतालों में भी हालात अच्छे नहीं हैं। यहां अधिकारी परीक्षण के नतीजे मौखिक बताते हैं। इसका मतलब है कि अगर हममें से कोई जांच में पॉजिटिव पाया जाता है तो उसे भर्ती कराना असंभव होगा।” संघ की कार्यकारी निदेशक तेजस्वी सेवकारी बताती हैं, “बीमा तो भूल ही जाइए, प्रशासनिक अधिकारियों ने तो लॉकडाउन का इस्तेमाल भी समुदाय को प्रताड़ित करने के लिए किया। पुलिस ने इलाके की बैरिकेडिंग कर दी थी जिससे हमारी आवाजाही को रोका जा सके।”
पीएमजेएवाई मैनुअल में क्या लिखा है
कचरा बीनने वाले कई लोगों ने बताया कि उन्हें इस योजना के तहत नामांकित नहीं किया गया है, जबकि पीएमजेएवाई मैनुअल में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कूड़ा बीनने वालों के साथ भीख मांगने वाले व समान श्रेणी के लोगों को कवर किया गया है।
जमशेदपुर की एक कचरा बीनने वाली फूलमति कहती हैं, “मेरी मां इस मार्च 2021 में तब तक घर-घर से कचरा इकट्ठा करती रहीं, जब तक वह खुद संक्रमित नहीं हो गई।” सरकारी अस्पतालों ने उनका इलाज करने से इनकार कर दिया। एक निजी अस्पताल ने कोविड-19 की जांच की ऐवज में 5,000 रुपए का शुल्क लिया। फिर उन्हें एक दिन के लिए भर्ती किया गया क्योंकि परिवार लंबे समय तक शुल्क का भुगतान कर सकने में सक्षम नहीं था। जल्द ही उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया और परिवार को उन्हें एक सप्ताह के लिए एक निजी आईसीयू में रखने के लिए एक लाख रुपए उधार लेने पड़े।
वह कहती हैं कि जब हमारी उधार लेने की सीमा खत्म हो गई तो हमने अस्पताल के अधिकारियों से मां को छुट्टी देने को कहा। अगले दिन की सुबह उसकी मृत्यु हो गई।” एक कोविड रोगी के आईसीयू में भर्ती होने का खर्च किसी अनियमित मजदूर (जिसे नियमित काम नहीं मिलता) की डेढ़ वर्ष की औसत कमाई के बराबर होता है।
अगली कड़ी में हम जानेंगे आयुष्मान कार्ड का सच: केवल पांच लाख मरीजों को मिला फायदा, कुछ राज्य रहे फेल
यहां भी पढ़ें : पहली कड़ी – आयुष्मान कार्ड का सच : बीमा का आश्वासन एक सबसे बड़ा भ्रम
Join Mashal News – JSR WhatsApp Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!