भारत में यौन हिंसा के लगातार सामने आ रहे मामलों की वजह से महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये पर फिर चर्चा शुरू हो गई है.यौन अपराधों पर सख्त कानूनों के बावजूद जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है. यौन हिंसा के लगातार सामने आ रहे मामलों की वजह से महिलाओं के प्रति भारतीय समाज के नजरिये पर फिर चर्चा शुरू हो गई है.
यौन अपराधों पर सख्त कानूनों के बावजूद भी जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है. यौन हिंसा के लगातार सामने आ रहे मामलों ने एक बार फिर महिलाओं के प्रति समाज के नजिरये पर चर्चा छेड़ दी है.
कुछ सालों में महिला के प्रति अपराधों में तेज़ी आई
हाल के कुछ सालों में महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार, छेड़छाड़ और शोषण जैसे अपराधों में तेजी आई है. छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों में दर्ज होने वाले हाईप्रोफाइल मामले इसी का सबूत पेश कर रहे हैं. पिछले हफ्ते एक दक्षिण भारतीय अभिनेत्री का चलती गाड़ी में बलात्कार किया गया और आपत्तिजनक तस्वीरों के साथ उसका वीडियो भी बनाया गया. इस घटना ने देशभर में हंगामा खड़ा किया और अब लोग दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं.
“रेप कैपिटल” का तमगा पा चुकी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले कुछ सालों में बलात्कार के मामलों में उछाल आया है. आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में हर रोज बलात्कार की छह घटनाएं होती हैं लेकिन बलात्कार की ये घटनाएं सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित नहीं हैं. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी एक 17 वर्षीय युवती को जबरदस्ती गाड़ी के अंदर खींच कर उसका यौन उत्पीड़न किया गया. वहीं आंध्रप्रदेश में भी पुलिस ने मानसिक रूप से विकलांग एक 14 साल की बच्ची के साथ दुष्कृत्य करने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया.
रिपोर्ट के मुताबिक
वकील वृंदा ग्रोवर के मुताबिक “देश के हर राज्य में महिलाओं की सुरक्षा का स्तर अलग-अलग है. इसके साथ ही आरोपियों पर दोष साबित न होने के चलते लैंगिंक हिंसा के मामलों में तेजी आई है और ये सारे ही मामले दक्षिण एशियाई देशों में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के इतिहास को दर्शाते हैं.”
बलात्कार, यौन उत्पीड़न और महिलाओं के साथ होने वाले अपराध यही संकेत देते हैं कि भारत सुरक्षित नहीं है. राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 के दौरान देश में बलात्कार के 34,651 दर्ज किए गए. लेकिन महिला सुरक्षा को लेकर काम कर रहे लोग इसे सही नहीं मानते. उनके मुताबिक बलात्कार के असल मामले इस आंकड़े से भी अधिक होंगे, लेकिन सुरक्षा की कमी और सामाजिक ताने-बाने के चलते कई बार महिलाएं सामने नहीं आती.
महिलाओं की सुरक्षा, चुनावों में एक अहम मुद्दा
महिलाओं की सुरक्षा, उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में एक अहम चुनावी मुद्दा है. आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश महिलाओं के लिए देश के सबसे असुरक्षित राज्यों में से एक है. महिलाओं के साथ होने वाले 11 फीसदी अपराध इसी राज्य में होते हैं. दूसरे स्थान पर 10 फीसदी के साथ पश्चिम बंगाल, 9.5 फीसदी के साथ महाराष्ट्र और 8.6 फीसदी के साथ राजस्थान का नंबर आता है.
पूर्व पुलिस अधिकारी अजय कुमार के मुताबिक यौन अपराधों से निपटने के लिए पुलिस सुधारों पर जोर दिया जाना चाहिए. वहीं नागरिक अधिकार समूह और स्वतंत्र शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रशासन की कमी और कुछ राज्यों में लिंग अनुपात की गिरती दर भी इन अपराधों के लिए जिम्मेदार है.
आत्म-नुकसान की रिपोर्ट करने में झिझक
भारत में बलात्कार अब भी एक सामाजिक समस्या है और यही कारण है कि जो महिलाएं इस तरह की हिंसा का शिकार भी होती हैं वे इन मामलों की रिपोर्ट दर्ज कराने में संकोच महसूस करती हैं. लेकिन अब बड़े शहरों में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल तैयार करने की मुहिम छेड़ी गई है. फेसबुक पर “हैशटैग आई विल गो आउट” के साथ की गई शुरुआत अब एक देशव्यापी आंदोलन में तब्दील हो रही है.
इस विषय में काम कर रहीं एक NGO के मुताबिक, “भारतीय समाज में हो रहे परिवर्तन को सिर्फ महिलाओं के आसपास रखकर देखा जा रहा है. महिलाओं का काम पर जाना, सार्वजनिक स्थलों का इस्तेमाल करना, हक की मांग करना आदि व्यवहार समाज में महिलाओं के खिलाफ प्रतिक्रिया पैदा कर रहा है और ये प्रतिक्रिया बहुत हद तक महिलाओं पर की जाने वाली हिंसा की जिम्मेदार है.”
एक अनुमान के मुताबिक हर साल भारत में 1000 से भी अधिक एसिड अटैक के मामले सामने आते हैं. इन सभी मामलों में पुरूष दोषी होते हैं और महिलाएं पीड़ित.
साल 2012 में दिल्ली की एक मेडिकल छात्रा के साथ हुई गैंगरेप की घटना के बाद देश में महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे ने तूल पकड़ा था. लेकिन इस घटना के इतने सालों बाद भी समाज में महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित नहीं किया जा सका है.
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