मध्यस्थ निर्णयों के निष्पादन में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए इसे बेहद दुखद स्थिति बताया। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने ये टिप्पणी वर्ष 1992 में पारित एक निर्णय का 30 साल बीत जाने के बावजूद निष्पादन न हो पाने के मामले की सुनवाई के दौरान की।
पीठ ने कहा, यह मामला मध्यस्थता की कार्यवाही को विफल करने का एक ज्वलंत उदाहरण है। पीठ ने पाया कि मध्यस्थता अवार्ड वर्ष 1992 में पारित किया गया था। जबकि निष्पादन याचिका वर्ष 2003 की है, जो अभी भी लंबित है। पीठ ने कहा, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि 30 साल के बाद भी जिसके पक्ष में फैसला दिया गया वह उसका सुख भोग नहीं पा रहा है। निष्पादन कार्यवाही भी 20 से अधिक वर्षों से लंबित है। पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को अधीनस्थ अदालतों में लंबित निष्पादन याचिकाओं को रिकॉर्ड अगली सुनवाई तक पेश करने का निर्देश दिया।
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