इस मामले में एक दोषी के 31 सालों तक जेल की सलाखों के पीछे बंद रहने के बाद रिहा होने की कहानी के अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यपाल की शक्तियों की समीक्षा का पहलू भी शामिल है. पेरारिवलन की रिहाई का आवेदन तमिलनाडु के राज्यपाल के पास तीन सालों से भी ज्यादा से लंबित पड़ा हुआ था. अदालत ने इस देर को अनुचित बताते हुए खुद ही यह फैसला ले लिया.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई थी. हमला श्रीलंका के अलगाववादी संगठन एलटीटीई ने करवाया था. मुख्य हमलावर तेनमोई राजरत्नम तो हमले में मारी गई लेकिन कई लोगों को हमले में उसकी मदद करने का दोषी पाया गया. इनमें से कुछ को मृत्युदंड और कुछ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
भारतीय नागरिक पेरारिवलन इन्हीं में शामिल था. उसे हत्याकांड में शामिल साजिशकर्ता सिवरासन को विस्फोटक उपकरण के लिए नौ वोल्ट की एक बैट्री उपलब्ध कराने का दोषी पाया गया था. उस समय उसकी उम्र 19 साल थी.
शुरू में पेरारिवलन को भी मृत्युदंड ही दिया गया था. बाद में उसने एक दया याचिका दायर कर राष्ट्रपति से क्षमा की अपील की थी. जब राष्ट्रपति ने लंबे समय तक उसकी दया याचिका पर कोई फैसला नहीं लिया तब 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा को कम कर आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
राज्यपाल से अपील की कि उसकी बाकी सजा को भी माफ कर दिया जाए
दिसंबर 2015 में पेरारिवलन ने तमिलनाडु के राज्यपाल से अपील की कि उसकी बाकी सजा को भी माफ कर दिया जाए. करीब तीन साल तक राज्यपाल ने अपील पर कोई फैसला नहीं लिया जिसके बाद सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ही राज्यपाल से फैसला करने की अपील की.
अदालत के कहने के कुछ ही दिनों के बाद तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल से पेरारिवलन को बाकी सजा रद्द कर उसे जेल से आजाद करने की अनुशंसा की. राज्यपाल ने अभी तक इस मामले में कोई फैसला नहीं सुनाया है, यह कहते हुए कि ऐसे फैसले राष्ट्रपति ही ले सकते हैं.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर मामला अपने हाथों में ले लिया. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल के पास कैदी को आजाद करने की शक्ति है.
पीठ ने आगे कहा कि लेकिन अगर इसके बावजूद राज्यपाल फैसला लेने में अधिक देर करते हैं तो अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट यह फैसला ले सकता है. अदालत ने कहा कि राज्यपाल ऐसे मामलों में इतनी देर नहीं कर सकते जिसका कोई स्पष्टीकरण ना हो.
पीठ ने कहा, “मेरु राम फैसले के मुताबिक, राज्यपाल सिर्फ एक हैंडल हैं. हमें इस मामले को वापस राज्यपाल के पास भेजने की कोई जरूरत महसूस नहीं हो रही है.”
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