फिलहाल तो पंजाब में सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए सभी सियासी दल अपनी रणनीति तैयार करने में जुटी हुई है। विधानसभा चुनाव के जिस तरह के समीकरण बनते हुए नज़र आ रहे हैं, इससे अंदाज़ा ये लगाया जा रहे हैं कि मुक़ाबला काफ़ी दिलचस्प होने वाला है।
वैसे तो पंजाब में किसान आंदोलन का भी काफी असर देखने को मिल रहा है। यही वजह है कि दलितों और अन्य समुदायों के बीच जट सिखों के खिलाफ वोटों का ध्रुवीकरण भी हो सकता है। ग़ौरतलब है कि पंजाब में जट सिख मतदाताओं की तादाद सिर्फ़ 18 फ़िसद है । लेकिन सियासी ज़मीन पर उनकी पकड़ अच्छी है।
यहां भी पढ़ें : ये दही है या इम्युनिटी बूस्टर ? इसके हैं कितने फायदे, जानते है आप ?
दलित मतदाताओं की अच्छी पकड़
पंजाब के दोआबा क्षेत्र के जालंधर, कपूरथला, नवांशहर और होशियारपुर जिलों में दलित वोटरों की अच्छी पकड़ है। वही इन क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी की भी सियासी ज़मीन काफ़ी मजबूत है। किसी भी राजनीतिक दल को सत्ता में कब्ज़ा जमाने के लिए दलित समुदाय को साथ लेकर ही चलना ही होगा। भाजपा के दो प्रमुख नेता केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला रविदास समुदाय से हैं और इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। वहीं सियासी पार्टियों की निगाह हिंदू वोट बैंक पर टिकी हुई हैं। इसी बाबत शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी हिंदू वोट बैंक को अपने जेब में करने की पूरी कोशिश करेगी ।
हिंदू वोट बैंक पर सियासी दलों की निगाह
अब पंजाब में हिंदू वोट बैंक की बात करे तो करीब 39 फ़ीसद हिंदू और 33 फीसद अनुसूचित जाति (हिंदू और सिख) चुनाव में जीत दर्ज करने में अहम भूमिका हैं। पंजाब की सियासत में यह देखा भी गया है कि हिंदू वोट बैंक जिसके जेब में जाता है सरकार उसी पार्टी की बनती है। हालांकि पंजाब कांग्रेस के पास जट्ट नेताओँ की कमी नही हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब से अपनी सियासी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई है, तब से पंजाब में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गईं हैं।
कांग्रेस के लिए चुनौती
चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने से पंजाब कांग्रेस के पास अनुसूचित जाति का चेहरा तो आ गया, लेकिन कैप्टन की कमी पूरा करने के लिए कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। ऐसा चेहरा जो पूरे पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसी पकड़ रखता हो। पंजाब कांग्रेस में हिंदू चेहरे के तौर पर अगर भारत भूषण आशु की बात जाए तो उनका दायरा सिर्फ़ लुधियाना तक ही सीमित है। हिंदू चेहरा के तौर पर पंजाब में कांग्रेस ने उन्हें प्रोजेक्ट भी करेगी तो ज़्यादा फ़ायदा नहीं मिलेगा । कांग्रेस के लिए हिंदू वोटर को अपने पाले में बनाए रखना एक चुनौती साबित हो सकती है।
किसान आंदोलन से हुई डैमेज BJP, कर रही कंट्रोल
बात करते है भारतीय जनता पार्टी की तो उनका ज़्यादातर चुनावी एजेंडा हिंदुत्व पर रहता है। किसान आंदोलन की वजह से भारतीय जनता पार्टी का पक्ष कमज़ोर तो हुआ लेकिन भाजपा डैमेज कंट्रोल में कामयाब होती नज़र आ रही है। इसी के साथ अपनी पार्टी में किसान नेताओं को भी जोड़ने की क़वायद तेज़ कर रही है। जैसा कि हम जानते है कि किसान आंदोलन की शुरूआत पंजाब से ही हुई थी, भारतीय जनता पार्टी बहुत ही अच्छे से जानती है कि कृषि कानून के विरोध की वजह से उन्हें गांवों में और सिखों के वोट नहीं मिलेंगे ।इसलिए भाजपा ने पंजाब की उन सीटों को चुना है जहां पर हिंदू और दलित आबादी 60 फीसद से ज़्यादा है।
यहां भी पढ़ें : नए साल पर पड़ेगी महंगाई की मार, बदलने बाले हैं कई नियम
क्या है अकाली दल की चुनावी रणनीति
अब अगर शिरोमणि अकाली दल की बात की जाए तो शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल हिंदु वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में एक साथ चुनाव लड़ रही है। तो इस बाबता सुखबीर सिंह बादल ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी की सरकार में एक अनुसूचित जाति और एक हिंदू मुख्यमंत्री होगा। वहीं सुखबीर सिंह बादल ने हिंदू वोट बैंक का साधने की कोशिश में अपनी घोषणाओं में भी हिंदूओं पर ख़ास ध्यान दे रहे हैं।
भाजपा से निकले अनिल जोशी ने थामा अकाली दल का हाथ
अब एक और गणित ये भी है कि भाजपा से निकाले जाने के बाद शिरोमणि अकाली दल ने अनिल जोशी को पार्टी में शामिल लिया। पंजाब में अनिल जोशी की छवी बतौर हिंदू नेता काफ़ी अच्छी रही है। हिंदू वोट बैंक को साधने के लिए हि सुखबीर सिंह बादल हिंदुत्व छवी को तरजीह दे रहे हैं। भाजपा के साथ गठबंधन में शिरोमणि अकाली दल को बिना मेहनत किए ही हिंदू समुदाय के वोट मिल जाते थे, लेकिन भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद समीकरण बदले चुके हैं।
हिंदू वोट बैंक को साधने के लिए हि सुखबीर सिंह बादल हिंदुत्व छवी को तवज्जो दे रहे हैं। भाजपा के साथ गठबंधन में शिरोमणि अकाली दल को बिना मेहनत किए ही हिंदू समुदाय के वोट मिल जाते थे, लेकिन भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद अब समीकरण बदले चुके हैं।
AAP मजबूत कर रही सियासी ज़मीन
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सियासी पकड़ की बात की जाए तो पहले पंजाब मे आम आदमी पार्टी अपनी पकड़ नहीं बना पाई थी। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपनी रैलियों गारंटी घोषणाओं का पिटारा खोलना शुरू किया आप की सियासी पकड़ मजबूत होती चली गई। केजरीवाव लोगों के बीच दिल्ली मॉडल को भुनाने में कामयाब होते हुए नज़र आ रहे हैं।
यही वजह है कि चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब की 32 फीसदी आबादी आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाती दिख रही है। पंजाब विधानसभा चुनाव में जिस तरह के समीकरण बनते हुए नज़र आ रहे हैं। इससे यह तो साफ़ लग रहा है कि कोई भी सियासी पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार नहीं बना पाएगी। यह देखने वाली बात होगी की भारतीय जनता पार्टी अपना हिंदुत्व कार्ड को किस तरह से कैश करती है। कांग्रेस सीएम चन्नी के कार्य को कितना भुना पाती है। शिअद-बसपा दलित गठबंधन वजूद में आता है या फिर आम आदमी पार्टी दिल्ली मॉडल की तर्ज़ पर सत्ता में काबिज़ होती है।
यहां भी पढ़ें : कोविड 19: भारत को मिले, दो वैक्सीन और एक पिल की मंजूरी
Join Mashal News – JSR WhatsApp Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!