सच में मध्य प्रदेश अजब है, गजब है! कह सकते हैं यहां कुछ भी संभव है। अगर ऐसा नहीं होता तो असली अपराधी खुले में नहीं घुम रहे होते और भाड़े के कैदी जेल में बंद नहीं होते। है न हैरान करने वाला मामला। कुछ इसी तरह का फर्जीवाड़ा का मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर से सामने आया है।
दरअसल, 10 साल पुराने एक मामले में जब अपराधियों के पास बचाव का कोई रास्ता नहीं रहा तो, उन लोगों ने अपनी जगह दूसरे लोगों को कोर्ट में खड़ा कर दिया। कोर्ट ने सजा सुना दी और पुलिस ने पकड़कर जेल में बंद कर दिया और किसी को पता ही नहीं चला कि जेल में बंद में अपराधी असली नहीं, नकली हैं।
क्या है पूरा मामला
पूरा मामला मंडला जिले का है। जानकारी के अनुसार, बुधवार को एक शख्स जबलपुर एसपी ऑफिस पहुंचता है। एसपी के समक्ष अपनी बात रखता है। जब एसपी उसकी बात सुनते हैं तो उनका होश ही उड़ जाता है। पुलिस महकमा में हड़कंप मच जाता है। सभी हैरान हो जाते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है।
दरअसल, एसपी ऑफिस पहुंचे कोमल प्रसाद पांडे ने बताया कि उसके एक परिचय वाले अपनी पिता की जगह कोर्ट में पेशी के लिए कोर्ट भेजा था। उसी दिन कोर्ट ने सजा सुना दी। उसके बाद पुलिस ने उसे पकड़कर जेल भेज दिया। 84 दिन जेल में रहने के बाद जबलपुर हाईकोर्ट ( Jabalpur High Court ) से जमानत मिली, तब वह जेल से बाहर आया।
10 साल बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला
पूरा मामला सितंबर 2011 का है। बताया जा रहा है कि मंडला जिले में स्थित किसली के करीब वन विभाग के टोल का ठेकेदार अमित खंपरिया और अन्य के नाम पर ठेका था। आरोप था कि यहां पर पर्यटकों से ज्यादा वसूली की जाती थी। बाद मार्कर से अधिक शुल्क को मिटा दिए जाते थे। इसी के आलोक में 8 सितंबर 2011 को खटिया थाने में धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज किया गया था।
पुलिस ने इस मामले में अमित खंपरिया और उसके पिता अनिरुद्ध सिंह चतुर्वेदी, रामजी द्विवेदी और रिश्तेदार दशरथ प्रसाद तिवारी समेत रज्जन, उमेश पांडे, अमित पांडे, श्रीकांत शुक्ला, शनि ठाकुर, अजय वाल्मिकी को आरोपी बनाया था। लगभग 10 साल तक नैनपुर कोर्ट में केस चला। 22 सितंबर 2021 को कोर्ट इस मामले में फैसला सुनाया। कोर्ट ने दोषियों को पांच-पांच साल की सजा और जुर्माना लगाया।
कहां हुई पुलिस से गलती
कोर्ट रेकॉर्ड के अनुसार, 22 सितंबर 2021 को तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश डीआर अहिरवार की कोर्ट में अनिरुद्ध प्रसाद सिंह चतुर्वेदी (70) निवासी टिकुरी उमरिया, रामजी द्विवेदी (66) निवासी सोनवारी मैहर सतना और दशरथ प्रसाद तिवारी (60) निवासी टिकुरी उमरिया ही कोर्ट में पेश हुए। अभियुक्तों में उमेश पांडे की मौत हो चुकी है, जबकि 6 अन्य फरार थे। सजा निर्धारित होने के बाद पुलिस ने तीनों को जेल में डाल दिया। पुलिस ने तीनों को जेल भेजने से पहले किसी का डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन नहीं किया, जिस कारण असली अपराधियों की जगह निर्दाेष जेल चले गए।
कैसे हुआ मामले का खुलासा
दरअसल, अमित खंपरिया ने पिता अनिरुद्ध प्रसाद सिंह चतुर्वेदी समेत तीनों आरोपियों को बचाने के लिए साजिश रची। कोर्ट में पिता अनिरुद्ध की जगह कोमल प्रसाद पांडे, रामजी द्विवेदी की जगह श्यामसुंदर खंपरिया और दशरथ प्रसाद तिवारी के बजाय विराट तिवारी को कोर्ट में पेश कर दिया।
बताया जाता है कि विराट तिवारी को अमित खंपरिया स्टैंड में काम देता है। वर्तमान में वह शाहपुर टोल नाका में काम कर रहा है। वहीं, श्याम सुंदर खंपरिया उसका रिश्तेदार है। जबकि कोमल प्रसाद पांडे को उसने ब्राह्मण महासभा से जोड़ रखा था। आरोप है कि पिता के स्थान पर उसने कोमल प्रसाद को धमका कर कोर्ट में पेश किया था। ऐसा कोमल प्रसाद पांडे ने एसपी को दिए गए आवेदन में बताया है।
जबलपुर एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने बताया कि मामला गंभीर है। किसी को धोखे या धमकी से जेल भेजवाना गंभीर बात है। पूरे मामले की जांच ट्रेनी आईपीएस प्रियंका शुक्ला कर रही है। इस मामले को लेकर मंडला पुलिस से भी बात की जाएगी।
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