हमारे समाज में महिलाएं शिक्षित होने के बावजूद भी अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं, सभी शिक्षित या अशिक्षित महिलाएं नहीं पर हाँ भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी अपने कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं इसलिए महिला विकास मंच की कोल्हन अध्यक्ष और मशाल न्यूज़ की लेखिका मैं निशात का एक उपयोगी लेख यहां साझा कर रही हूँ| मंच पर सभी लोग बुद्धिजीवी हैं, इस लेख में लिखित जानकारी कुछ समय पहले की है अगर इनमें कोई संशोधन हुआ है या और भी महिलाओं के कानूनी अधिकारों के बारे में आपलोगों को जानकारी हो तो कृपया साझा करें|
आज महिलाएं कामयाबी की बुलंदियों को छू रही हैं| हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं| इन सबके बावजूद उन पर होने वाले अन्याय, बलात्कार, प्रताड़ना, शोषण आदि में कोई कमी नहीं आई है और कई बार तो उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी तक नहीं होती| इसी सिलसिले में मंच के एडवाइजरी सेल द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर महिलाओं के अधिकारों से जुड़े विभिन्न कानूनी पहलुओं के बारे में जाने|
महिलाओं के कानूनी अधिकार घरेलू हिंसा [डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट २००५]
१. शादीशुदा या अविवाहित स्त्रियाँ अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रताड़ना को घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत दर्ज कराकर उसी घर में रहने का अधिकार पा सकती हैं जिसमे वे रह रही हैं l
२. यदि किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध उसके पैसे, शेयर्स या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किया जा रहा हो तो इस कानून का इस्तेमाल करके वह इसे रोक सकती है|
३. इस कानून के अंतर्गत घर का बंटवारा कर महिला को उसी घर में रहने का अधिकार मिल जाता है और उसे प्रताड़ित करने वालों को उससे बात तक करने की इजाजत नहीं दी जाती|
४. विवाहित होने की स्थिति में अपने बच्चे की कस्टडी और मानसिक/शारीरिक प्रताड़ना का मुआवजा मांगने का भी उसे अधिकार है|
५. घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती है, इसके लिए वकील को लेकर जाना जरुरी नहीं है| अपनी समस्या के निदान के लिए पीड़ित महिला- वकील प्रोटेक्शन ऑफिसर और सर्विस प्रोवाइडर में से किसी एक को साथ ले जा सकती है और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सकती है|
६. भारतीय दंड संहिता ४९८ के तहत किसी भी शादीशुदा महिला को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करना कानूनन अपराध है| अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा पाने की अवधि बढाकर आजीवन कर दी गई है|अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा पाने की अवधि बढाकर आजीवन कर दी गई है|
७. हिन्दू विवाह अधिनियम १९९५ के तहत निम्न परिस्थितियों में कोई भी पत्नी अपने पति से तलाक ले सकती है- पहली पत्नी होने के वावजूद पति द्वारा दूसरी शादी करने पर, पति के सात साल तक लापता होने पर, परिणय संबंधों में संतुष्ट न कर पाने पर, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने पर, धर्म परिवर्तन करने पर, पति को गंभीर या लाइलाज बीमारी होने पर, यदि पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और उन्हें अलग रहते हुए एक वर्ष से अधिक समय हो चुका हो तो|
८. यदि पति बच्चे की कस्टडी पाने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले याचिका दायर कर दे, तब भी महिला को बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है|
९. तलाक के बाद महिला को गुजाराभत्ता, स्त्रीधन और बच्चों की कस्टडी पाने का अधिकार भी होता है, लेकिन इसका फैसला साक्ष्यों के आधार पर अदालत ही करती है|
१०. पति की मृत्यु या तलाक होने की स्थिति में महिला अपने बच्चों की संरक्षक बनने का दावा कर सकती है|
११. भारतीय कानून के अनुसार, गर्भपात कराना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन गर्भ की वजह से यदि किसी महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो तो वह गर्भपात करा सकती है| ऐसी स्तिथि में उसका गर्भपात वैध माना जायेगा| साथ ही कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे गर्भपात के लिए बाध्य नहीं कर सकता| यदि वह ऐसा करता है तो महिला कानूनी दावा कर सकती है|
१२. तलाक की याचिका पर शादीशुदा स्त्री हिन्दू मैरेज एक्ट के सेक्शन २४ के तहत गुजाराभत्ता ले सकती है| तलाक लेने के निर्णय के बाद सेक्शन २५ के तहत परमानेंट एलिमनी लेने का भी प्रावधान है| विधवा महिलाएं यदि दूसरी शादी नहीं करती हैं तो वे अपने ससुर से मेंटेनेंस पाने का अधिकार रखती हैं| इतना ही नहीं, यदि पत्नी को दी गई रकम कम लगती है तो वह पति को अधिक खर्च देने के लिए बाध्य भी कर सकती है| गुजारेभत्ते का प्रावधान एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट में भी है|
१३. सीआर. पी. सी. के सेक्शन १२५ के अंतर्गत पत्नी को मेंटेनेंस, जो कि भरण-पोषण के लिए आवश्यक है, का अधिकार मिला है| यहाँ पर यह जान लेना जरुरी होगा कि जिस तरह से हिन्दू महिलाओं को ये तमाम अधिकार मिले हैं, उसी तरह या उसके समकक्ष या सामानांतर अधिकार अन्य महिलाओं [जो कि हिन्दू नहीं हैं] को भी उनके पर्सनल लॉ में उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग वे कर सकती हैं|
लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े अधिकार
१४. लिव इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर को वही दर्जा प्राप्त है, जो किसी विवाहिता को मिलता है|
१५. लिव इन रिलेशनशिप संबंधों के दौरान यदि पार्टनर अपनी जीवनसाथी को मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना दे तो पीड़ित महिला घरेलू हिंसा कानून की सहायता ले सकती है|
१६. लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुई संतान वैध मानी जाएगी और उसे भी संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार होगा|
१७. पहली पत्नी के जीवित रहते हुए यदि कोई पुरुष दूसरी महिला से लिव इन रिलेशनशिप रखता है तो दूसरी पत्नी को भी गुजाराभत्ता पाने का अधिकार है|
बच्चों से सम्बंधित अधिकार
१८. प्रसव से पूर्व गर्भस्थ शिशु का लिंग जांचने वाले डॉक्टर और गर्भपात कराने का दबाव बनानेवाले पति दोनों को ही अपराधी करार दिया जायेगा| लिंग की जाँच करने वाले डॉक्टर को ३ से ५ वर्ष का कारावास और १० से १५ हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है| लिंग जांच का दबाव डालने वाले पति और रिश्तेदारों के लिए भी सजा का प्रावधान है|
१९. १९५५ हिन्दू मैरेज एक्ट के सेक्शन २६ के अनुसार, पत्नी अपने बच्चे की सुरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा के लिए भी निवेदन कर सकती है|
२०. हिन्दू एडॉप्शन एंड सेक्शन एक्ट के तहत कोई भी वयस्क विवाहित या अविवाहित महिला बच्चे को गोद ले सकती है|
२१. यदि महिला विवाहित है तो पति की सहमति के बाद ही बच्चा गोद ले सकती है|
२२. दाखिले के लिए स्कूल के फॉर्म में पिता का नाम लिखना अब अनिवार्य नहीं है| बच्चे की माँ या पिता में से किसी भी एक अभिभावक का नाम लिखना ही पर्याप्त है|
जमीन जायदाद से जुड़े अधिकार
२३. विवाहित या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है| इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजराभात्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है|
२४. हिन्दू मैरेज एक्ट १९५५ के सेक्शन २७ के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है| इसके अलावा पत्नी के अपने ‘स्त्री-धन’ पर भी उसका पूरा अधिकार रहता है|
२५. १९५४ के हिन्दू मैरेज एक्ट में महिलायें संपत्ति में बंटवारे की मांग नहीं कर सकती थीं, लेकिन अब कोपार्सेनरी राइट के तहत उन्हें अपने दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से भी अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है| यह कानून सभी राज्यों में लागू हो चुका है|
कामकाजी महिलाओं के अधिकार
२६. इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट रूल- ५, शेड्यूल-५ के तहत यौन संपर्क के प्रस्ताव को न मानने के कारण कर्मचारी को काम से निकालने व एनी लाभों से वंचित करने पर कार्रवाई का प्रावधान है| २७. समान काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन पाने का अधिकार है|
२८. धारा ६६ के अनुसार, सूर्योदय से पहले [सुबह ६ बजे] और सूर्यास्त के बाद [शाम ७ बजे के बाद] काम करने के लिए महिलाओं को बाध्य नहीं किया जा सकता|
२९. भले ही उन्हें ओवरटाइम दिया जाए, लेकिन कोई महिला यदि शाम ७ बजे के बाद ऑफिस में न रुकना चाहे तो उसे रुकने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता|
३०. ऑफिस में होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ महिलायें शिकायत दर्ज करा सकती हैं|
३१. प्रसूति सुविधा अधिनियम १९६१ के तहत, प्रसव के बाद महिलाओं को तीन माह की वैतनिक [सैलरी के साथ] मेटर्निटीलीव दी जाती है| इसके बाद भी वे चाहें तो तीन माह तक अवैतनिक [बिना सैलरी लिए] मेटर्निटी लीव ले सकती हैं|
३२. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६ के तहत, विधवा अपने मृत पति की संपत्ति में अपने हिस्से की पूर्ण मालकिन होती है| पुनः विवाह कर लेने के बाद भी उसका यह अधिकार बना रहता है|
३३. यदि पत्नी पति के साथ न रहे तो भी उसका दाम्पत्य अधिकार कायम रहता है| यदि पति-पत्नी साथ नहीं भी रहते हैं या विवाहोत्तर सेक्स नहीं हुआ है तो दाम्पत्य अधिकार के प्रत्यास्थापन [रेस्टीट्यूशन ऑफ़ कॉन्जुगल राइट्स] की डिक्री पास की जा सकती है|
३४. यदि पत्नी एचआईवी ग्रस्त है तो उसे अधिकार है कि पति उसकी देखभाल करे|
३५. बलात्कार की शिकार महिला अपने सेक्सुअल बिहेवियरमें प्रोसिंक्टअस [Procinctus] तो भी उसे यह अधिकार है कि वह किसी के साथ और सबके साथ सेक्स सम्बन्ध से इनकार कर सकती है, क्योंकि वह किसी के या सबके द्वारा सेक्सुअल असॉल्ट के लिए असुरक्षित चीज या शिकार नहीं है|
३६. अन्य समुदायों की महिलाओं की तरह मुस्लिम महिला भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १२५ के तहत गुजाराभत्ता पाने की हक़दार है| मुस्लिम महिला अपने तलाकशुदा पति से तब तक गुजाराभत्ता पाने की हक़दार है जब तक कि वह दूसरी शादी नहीं कर लेती है| [शाह बानो केस]
३७. हाल ही में बोम्बे हाई कोर्ट द्वारा एक केस में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया कि दूसरी पत्नी को उसके पति द्वारा दोबारा विवाह के अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह बात नहीं कल्पित की जा सकती कि उसे अपने पति के पहले विवाह के बारे में जानकारी थी|
अधिकार से जुड़े कुछ मुद्दे ऐसे भी
३८. मासूम बच्चियों के साथ बढ़ते बलात्कार के मामले को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर महत्वपूर्ण निर्देश दिया है| अब बच्चियों से सेक्स करनेवाले या उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेलने वाले लोगों के खिलाफ बलात्कार के आरोप में मुकदमें दर्ज होंगे, क्योंकि चाइल्ड प्रोस्टीट्यूशान बलात्कार के बराबर अपराध है|
३९. कई बार बलात्कार की शिकार महिलायें पुलिस जाँच और मुकदमें के दौरान जलालत व अपमान से बचने के लिए चुप रह जाती है| अतः हाल ही में सरकार ने सीआर. पी. सी. में बहुप्रतीक्षित संशोधनों का नोटिफिकेशान कर दिया है, जो इस प्रकार है- बलात्कार से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई महिला जज ही करेगी| ऐसे मामलों की सुनवाई दो महीनों में पूरी करने के प्रयास होंगे| बलात्कार पीडिता के बयान महिला पुलिस अधिकारी दर्ज करेगी| बयान पीडिता के घर में उसके परिजनों की मौजूदगी में लिखे जायेंगे|
४०. रुचिका-राठौड़ मामले से सबक लेते हुए कानून मंत्रालय अब छेड़छाड़ को सेक्सुअल क्राइम्स [स्पेशल कोटर्स] बिल २०१० नाम से एक विधेयक का एक मसौदा तैयार किया| इसके तहत छेडछाड को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना जायेगा| यदि ऐसा हुआ तो छेड़खानी करने वालों को सिर्फ एक शिकायत पर गिरफ्तार किया जा सकेगा और उन्हें थाने से जमानत भी नहीं मिलेगी|
४१. यदि कोई व्यक्ति सक्षम होने के बावजूद अपनी माँ, जो स्वतः अपना पोषण नहीं कर सकती, का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी नहीं लेता तो कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर सेक्शन १२५ के तहत कोर्ट उसे माँ के पोषण के लिए पर्याप्त रकम देने का आदेश देता है|
४२. हाल में सरकार द्वारा लिए गए एक निर्णय के अनुसार अकेली रहने वाली महिला को खुद के नाम पर राशन कार्ड बनवाने का अधिकार है|
४३. लड़कियों को ग्रेजुएशन तक फ्री-एजुकेशन पाने का अधिकार है|
४४. यदि अभिभावक अपनी नाबालिग बेटी की शादी कर देते हैं तो वह लड़की बालिग होने पर दोबारा शादी कर सकती है, क्योंकि कानूनी तौर पर नाबालिग विवाह मान्य नहीं होती है|
पुलिस स्टेशन से जुड़े विशेष अधिकार
४५. आपके साथ हुआ अपराध या आपकी शिकायत गंभीर प्रकृति की है तो पुलिस एफआईआर यानी फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट दर्ज करती है|
४६. यदि पुलिस एफआईआर दर्ज करती है तो एफआईआर की कॉपी देना पुलिस का कर्तव्य है|
४७. सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद किसी भी तरह की पूछताछ के लिए किसी भी महिला को पुलिस स्टेशन में नहीं रोका जा सकता|
४८. पुलिस स्टेशन में किसी भी महिला से पूछताछ करने या उसकी तलाशी के दौरान महिला कॉन्सटेबल का होना जरुरी है|
४९. महिला अपराधी की डॉक्टरी जाँच महिला डॉक्टर करेगी या महिला डॉक्टर की उपस्थिति के दौरान कोई पुरुष डॉक्टर|
५०. किसी भी महिला गवाह को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता| जरुरत पड़ने परको ही उसके घर जाना होगा|
अगली कड़ी में पढ़िए : क्यों नहीं बदल रही भारत में महिलाओं की स्थिति?
पहली कड़ी यहाँ पढ़े : कोरोना महामारी के दौरान घरों में घुटता रहा भारतीय महिलाओं का दम !
दूसरी कड़ी यहाँ पढ़े : क्या 2021 में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं?
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