टाटा स्टील के पूर्व एमडी पद्म भूषण डॉ जेजे ईरानी का सोमवार की रात निधन हो गया। ‘स्टील मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध डॉ0 ईरानी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वे टाटा मुख्य अस्पताल में इलाजरत थे। दो अक्टूबर को घर में तबीयत खऱाब होने के बाद उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया था। ईरानी के परिवार में उनकी पत्नी डेज़ी ईरानी और उनके तीन बच्चे, जुबिन, नीलोफ़र और तनाज़ हैं। सोमवार की रात के 10 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। उनके निधन पर कॉरपोरेट जगत के साथ-साथ राजनितिक जगत में शोक की लहर फैल गई है।
आर्थिक उदारीकरण के दौर में भारत का नेतृत्व किया
उन्हें एक दूरदर्शी लीडर के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में भारत के आर्थिक उदारीकरण के दौरान टाटा स्टील का नेतृत्व किया और भारत में इस्पात उद्योग के उन्नति और विकास में अत्यधिक योगदान दिया। डॉ ईरानी भारत में गुणवत्ता आंदोलन के पहले लीडर थे। उन्होंने टाटा स्टील को गुणवत्ता और ग्राहकों की संतुष्टि पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ दुनिया में सबसे कम लागत वाला स्टील उत्पादक बनने में सक्षम बनाया, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सके। प्रसिद्ध मैल्कम बाल्ड्रिज परफॉर्मेंस एक्सीलेंस मानदंड से अपनाए गए कैलिब्रेटेड दृष्टिकोण के माध्यम से शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के लिए 2003 में टाटा एजुकेशन एक्सीलेंस प्रोग्राम शुरू करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
खिलाड़ी की भूमिका भी निभाई
वे एक उत्सुक खिलाड़ी थे, जिन्होंने अपने आखिरी समय तक क्रिकेट खेला और उसे फॉलो किया। साथ ही डाक तथा सिक्का संग्रह भी उनका जुनून था। धातुकर्मी होने के नाते, धातुओं और खनिजों के अनुसंधान, विकास और संग्रह में उनकी रुचि थी।
टाटा स्टील से 2011 सेवानिवृत हुए
डॉ ईरानी चार दशकों से अधिक समय तक टाटा स्टील से जुड़े रहे। 43 साल की विरासत को पीछे छोड़ते हुए वे जून 2011 में टाटा स्टील के बोर्ड से सेवानिवृत्त हुए, जिसने उन्हें और कंपनी को विभिन्न क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई।
2 जून 1936 में नागपुर में जन्म हुआ
2 जून, 1936 को नागपुर में जिजी ईरानी और खोरशेद ईरानी के घर जन्म हुआ। डॉ ईरानी ने 1956 में साइंस कॉलेज, नागपुर से विज्ञान स्नातक की डिग्री और 1958 में नागपुर विश्वविद्यालय से भूविज्ञान में मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री पूरी की। इसके बाद वे यूके में यूनिवर्सिटी ऑफ शेफ़ील्ड से जे एन टाटा स्कॉलर के रूप में पढ़ाई करने गए, जहां उन्होंने 1960 में धातुकर्म में मास्टर्स और 1963 में धातुकर्म में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
1968 में टाटा स्टील से जुड़े
उन्होंने 1963 में शेफील्ड में ब्रिटिश आयरन एंड स्टील रिसर्च एसोसिएशन के साथ अपने पेशेवर करियर की शुरुआत की, लेकिन हमेशा राष्ट्र की प्रगति में योगदान देने के लिए तरसते रहे और 1968 में तत्कालीन टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (अब टाटा स्टील) में अनुसंधान और विकास के प्रभारी निदेशक के सहायक के रूप में शामिल होने के लिए भारत लौट आए। वह 1978 में जनरल सुपरिंटेंडेंट, 1979 में जनरल मैनेजर और 1985 में टाटा स्टील के प्रेसिडेंट बने। वह 1988 में टाटा स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक, 1992 में प्रबंध निदेशक बने और 2001 में सेवानिवृत्त हुए।
कई उपाधि मिले
वह 1981 में टाटा स्टील के बोर्ड में शामिल हुए और 2001 से एक दशक तक नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी रहे। टाटा स्टील और टाटा संस के अलावा, डॉ ईरानी ने टाटा मोटर्स और टाटा टेलीसर्विसेज सहित टाटा समूह की कई कंपनियों के निदेशक के रूप में भी काम किया। डॉ ईरानी 1992-93 के लिए भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। उन्हें कई सम्मानों से सम्मानित किया गया, जिसमें 1996 में रॉयल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग के इंटरनेशनल फेलो के रूप में उनकी नियुक्ति और 1997 में क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की ओर से भारत-ब्रिटिश व्यापार और सहयोग में उनके योगदान के लिए मानद नाइटहुड की उपाधि शामिल है।
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित
2004 में, भारत सरकार ने भारत के नए कंपनी अधिनियम के गठन के लिए विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ ईरानी को नियुक्त किया। उद्योग में उनके योगदान के लिए उन्हें 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। धातु विज्ञान के क्षेत्र में उनकी सेवाओं को मान्यता के रूप में उन्हें 2008 में भारत सरकार की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
रतन टाटा ने जब जेजे ईरानी को दी सलाह
एक बार की बात है। रतन टाटा जमशेदपुर दौरे पर थे। उन्होंने टाटा स्टील प्लांट के अंदर डा. ईरानी से मजदूरों को देखकर पूछा, ये कौन है। डा. ईरानी ने कहा, सर, ये कॉन्ट्रैक्ट लेबर हैं। इस पर उन्होंने तुरंत कहा, नहीं वे हमारे मजदूर हैं। उनकी मेहनत की बदौलत ही आज हम इस मुकाम पर हैं। उन्होंने सभी ठेकेदारों से मजदूरों का ब्योरा मंगवाया।
आंकड़े देखकर काफी असंतुष्ट हुए। तभी से कंपनी के ठेका मजदूरों को बैंक के माध्यम से वेतन दिया जाने लगा ताकि उन्हें न्यूनतम मजदूरी मिल सके। लेकिन कंपनी के हजारों ठेका मजदूर ईएसआई, पीएफ जैसी सुविधा से अब भी वंचित हैं। मजदूरों में वे जिस तरह की खुशहाली देखना चाहते थे, उसके लायक व्यवस्था नहीं बन पाई है।
खुलकर फैसले लेने के लिए थे मशहूर
टाटा को शुरू में अपने समूह में खुल कर फैसले लेने की आजादी मिलने में काफी समय लग गया। टाटा संस को करीब से देखने वाले एक वित्तीय कंपनी के शीर्ष अधिकारी मानते हैं कि जेआरडी टाटा के कार्यकाल में रूसी मोदी, दरबारी सेठ जैसे लोग ज्यादा प्रभावशाली थे। रतन को फ्रीहैंड 1991 में मिला जब रूसी मोदी को उनके रिटायरमेंट से एक महीने पहले जबरन हटा दिया गया। 1992 में डा. जेजे ईरानी को टाटा स्टील का प्रबंध निदेशक बनाया गया।
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