झारखंड के सिमडेगा जिले के चेरंगा गांव में आजादी के 76 वर्ष बाद भी शिक्षा का दीप नहीं जल पाया है। इस गांव के बच्चों अथवा युवाओं में शिक्षा के स्तर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गांव से आज तक केवल एक युवा ने ही मैट्रिक पास किया है। बाकी कोई भी छात्र मैट्रिक की परीक्षा में शामिल तक नहीं हो पाया है। यह इलाका कुरडेग प्रखंड मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर जंगल-पहाड़ के बीच में बसा चेरंगा गांव है। यहां अशिक्षा के कई कारण हैं। यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।
वहीं, गड़ियाजोर पंचायत में स्थित चेरंगा गांव से महज आधा किमी दूर स्थित छत्तीसगढ़ राज्य के गांव में बिजली, पानी, सड़क की व्यवस्था दुरुस्त है। चेरंगा गांव में 27 परिवार निवास करते हैं। यहां की आबादी 127 के लगभग है। यहां अधिकतर आदिम जनजाति कोरवा के लोग निवास करते हैं, जबकि कुछ परिवार उरांव जनजाति समुदाय के भी हैं।
पगडंडी के सहारे ग्रामीणों का आवागमन
गांव में आवागमन के लिए सड़क ही नहीं है। ग्रामीण संकीर्ण पगडंडी के रास्तों से होकर आवागमन करते हैं। किसी के बीमार होने पर मरीज को खाट पर लाद कर सड़क तक ले जाना भी किसी मुसीबत से कम नहीं है। गांव में बिजली का नामोनिशान नहीं है। शुद्ध पेयजल की भी कोई व्यवस्था नहीं है।
डाड़ी के पानी से बुझती है ग्रामीणों की प्यास
गांव में गर्मी के मौसम में पानी की भारी किल्लत झेलनी पड़ती है। गांव में एक भी चापाकल नहीं है। इस गांव में मात्र दो कुएं हैं, जो गर्मियों में सूख जाते हैं। ग्रामीण खेतों में बने डाड़ी के पानी से प्यास बुझाते हैं। गांव में एक सोलर जलमीनार लगा है, जिसमें कुएं का पानी चढ़ाया जाता था। वहां से कुछ घरों तक नल से पानी पहुंचाया जाता है, लेकिन वह भी कई महीनों से खराब पड़ा है।
गांव में नहीं है आंगनबाड़ी केंद्र
वैसे तो सरकार द्वारा आदिम जनजाति को शिक्षित करने और उनके संरक्षण व विकास के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन चेरंगा गांव में बसे आदिम जनजाति समुदाय के लिए सुविधा शून्य है। गांव में एक भी आंगनबाड़ी अथवा स्कूल नहीं है। गांव के बच्चे दो किलोमीटर दुर्गम रास्तों से होते हुए कालोअम्बा प्राथमिक स्कूल जाते हैं। कुछ बच्चे गांव से दो किलोमीटर दूर ढोढ़ी तेतरटोली प्राथमिक स्कूल जाते हैं। मिडिल स्कूल में पढ़ने के लिए चार किमी पैदल डोड़ापानी मध्य विद्यालय जाना पड़ता है।
आज तक गांव नहीं पहुंचे हैं कोई भी जनप्रतिनिधि
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में खेती के अलावा रोजगार का कोई साधन नहीं है। मनरेगा के काम में मजदूरी देर से मिलती है। कभी-कभी तो मजदूरी भी नहीं मिलती। आज तक कोई भी जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक पदाधिकारी गांव में नहीं आए हैं।
सड़क के लिए जमीन नहीं
पूर्व मुखिया चोन्हास बरला ने बताया कि चेरंगा गांव में मुख्य रूप से सड़क की समस्या है। सड़क बनाने वाली जमीन दूसरे टोला के लोगों की है, जो नहीं देना चाहते हैं। दो बार सड़क पास कराई गई, लेकिन जमीन विवाद के कारण सड़क निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया।
क्या कहती हैं मुखिया?
मुखिया प्रतिभा कुजूर ने कहा कि दो किमी सड़क एवं बिजली के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। गांव में सड़क निर्माण के लिए जमीन विवाद चल रहा है। जल्द ग्रामीणों के साथ बैठक कर समझौता कराने का प्रयास किया जाएगा।
क्या कहते हैं बीडीओ?
कुरडेग बीडीओ ज्ञानमनी एक्का ने कहा कि चेरंगा गांव पहाड़ों के बीच बसा है। गांव तक सड़क बनवाने के लिए दो बार प्रयास किया गया। सड़क के लिए स्वीकृति भी मिल चुकी थी। इसको लेकर कई बार ग्रामीणों के साथ बैठकर जमीन संबंधी मामले को सुलझाने का प्रयास किया गया, लेकिन समस्या का समाधान नहीं होने के कारण दोनों ही बार सड़क नहीं बन पाई। सड़क नहीं रहने के कारण गांव तक बुनियादी सुविधा बहाल नहीं हो पा रही है।
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