कोल्हान के जंगलों में अबतक लाल पलाश ही मिलते रहे हैं, लेकिन अब पीले पलाश के फूल भी नजर आने लगे हैं। वन विभाग इसके संरक्षण की तैयारी में जुट गया है। उसे नर्सरी में ले जाकर उसकी संख्या बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। पीले पलाश को लेकर उद्यानों में अध्ययन भी जारी है। पलाश राजस्थान की महत्वपूर्ण प्रजातियों में एक है, जो मुख्यतः दक्षिणी अरावली एवं दक्षिणी-पूर्वी अरावली के आसपास दिखाई देती है। यह प्रजाति उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों का महत्वपूर्ण अंश है।
इन जगहों पर मिले पीले पलाश के पेड़
हाल के दिनों में पूर्वी सिंहभूम के राखामाइंस के पास रोआम गांव में फॉरेस्ट गार्ड अजीत मुर्मू और सरायकेला-गम्हरिया रिसर्च सेंटर के पास गार्डेनर प्रेमा की नजर पीले पलाश के पेड़ पर पड़ी। फॉरेस्टर राजा घोष की माने तो यह बहुत ही दुलर्भ प्रजाति है। इसके अलावा भीतरदाड़ी, मोहाली मुरूम स्टेशन के पास भी इक्का-दुक्का पीला पलाश के पेड़ हैं।
कई बीमारियों में कारगर होता है पीला पलाश
पीला पलाश कई बीमारियों को ठीक करने में कारगर होता है, लेकिन अब यह विलुप्त होता जा रहा है। कोल्हान के जंगलों में इक्का-दुक्का पीले पलाश के पेड़ हैं। कई औषधीय गुण होने की वजह से यह दुर्लभ प्रजाति में शामिल है। इसका विकास धीमा होता है। यह पेड़ साल में एक फीट तक ही बढ़ता है। ढाक या पलाश के नाम से पहचाने जाने वाले इस पेड़ का बॉटनीकल नाम ब्यूटिया मोनोस्परमा (वर-ल्युटिया) है। चिकित्सा और स्वास्थ्य से इसका गहरा ताल्लुक है।
वन विभाग के जैव विविधता के तकनीकी पदाधिकारी हरिशंकर लाल पेड़, पौधों में फूलों का रंग आनुवांशिक विविधता की वजह से बदलता है। पौधों में फूलों का रंग वर्णकों की वजह से होता है। यह हर प्रजाति में विविधता को दर्शाता है। इनके संरक्षण को लेकर प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं, ताकि पीले पलाश की संख्या में बढोतरी हो सके।
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