सम्मेद शिखर विवाद अभी थमा नहीं है। पर्यटन संबंधी गतिविधियों पर रोक को लेकर केंद्र सरकार द्वारा जारी पत्र के बाद जैन समाज शांत है लेकिन फैसले के खिलाफ आदिवासी लगातार आंदोलनरत हैं। इसी कड़ी में 17 जनवरी यानी आज से मरांग बुरु बचाओ भारत यात्रा की शुरुआत हो रही है। जमशेदुपर से शुरू हो रही इस यात्रा की अगुवाई पूर्व सांसद सह सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू करेंगे।
10 जनवरी को गिरिडीह में हुआ था आदिवासी महाजुटान
गौरतलब है कि 10 जनवरी को इसी मामले में गिरिडीह के मधुबन स्थित थाना मैदान में बकायदा आदिवासियों का महाजुटान हुआ था जिसमें सालखन मुर्मू, बाबूलाल मरांडी, गीता कोड़ा और जयराम महतो सरीखे नेताओं ने शिरकत की थी। देशभर से जुटे हजारों आदिवासियों ने केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी प्रकट करते हुए पारसनाथ को मरांग बुरु घोषित करने की मांग उठाई थी। ये सिलसिला अभी नहीं थमा है।
17 जनवरी से शुरू हो रही यात्रा फरवरी तक चलेगी
अब मरांग बुरु बचाओ भारत यात्रा शुरू हो रही है। सालखन मुर्मू ने बताया कि 17 जनवरी से जमशेदपुर से शुरू हो रही यात्रा 18 जनवरी को रांची, 19 जनवरी को रामगढ़, 20 जनवरी को हजारीबाग, 21 जनवरी को जामताड़ा, 22 जनवरी को दुमका और 23 जनवरी को गोड्डा पहुंचेगी। ये यात्रा देश के अलग-अलग हिस्सों से होती हुई फरवरी महीने के अंत तक चलेगी।
मरांग बुरु के साथ-साथ सरना धर्म कोड की भी उठेगी मांग
इस यात्रा के दौरान केवल पारसनाथ को मरांग बुरु घोषित करने की मांग ही नहीं उठाई जाएगी बल्कि 2023 में सरना धर्म कोड की मान्यता, कुड़मी को एसटी में शामिल करने के विरुद्ध आदिवासियों को जागृत करने, झारखंड में प्रखंडवार नियोजन नीति लागू करने तथा पहाड़ों में आदिवासी हितों की रक्षा करने संबंधी जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा। सालखन मुर्मू ने आरोप लगाया है कि झारखंड की मौजूदा हेमंत सरकार ने आदिवासियों को केवल वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया। चुनाव जीतने के बाद आदिवासियों के हितों की अनदेखी की गई।
बीते 2 महीने से जारी है सम्मेद शिखरजी का विवाद
गौरतलब है कि गिरिडीह के पारसनाथ स्थित सम्मेद शिखरजी को लेकर विवाद बीते 2 महीने से जारी है। दरअसल, साल 2019 में राज्य सरकार की अनुशंसा पर केंद्र ने पारसनाथ पहाड़ी को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया था। फरवरी 2022 में झारखंड सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने संबंधी अधिसूचना जारी की। जैन समाज पारसनाथ को पर्यटन स्थल बनाए जाने का विरोध कर रहा है। उनकी मांग थी कि सम्मेद शिखरजी के 50 किमी के दायरे में मांस और मदिरा का सेवन तथा बिक्री प्रतिबंधित की जाए। वहीं, आदिवासियों का कहना है कि पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी में उनके ईश्वर की पूजा होती है। जाहेरथान और मांझी थान के रूप में 2 पूजा स्थल हैं।
सोहराय और वंदना पर्व से पहले वहां मुर्गे और बकरियों की बलि दी जाती है। आदिवासियों का आरोप है कि सरकार ने पूरी पारसनाथ पहाड़ी को जैन समाज को सौंप दिया जोकि उनका मरांग बुरू है।
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