टॉपर्स ऐसे ही तैयार नहीं होते। इसके लिए हर संभावित टॉपर पर स्कूल में खास मेहनत की जाती है। स्कूल पहले ही ऐसे विद्यार्थियों का चयन आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर कर लेते हैं, जिनमें टॉपर बनने की संभावना होती है। इसके बाद उन विद्यार्थियों को विशिष्ट ग्रुप बनाकर उन्हें पढ़ाया जाता है।
पिछले दिनों जमशेदपुर ने आईसीएसई में नेशनल टॉपर से लेकर स्टेट टॉपर दिए। इन टॉपरों पर की गई खास मेहनत ने इनकी सफलता की राह आसान की। हिल टॉप स्कूल से आईसीएसई के तीन टॉपर निकले, इनमें से रुशील कुमार नेशनल टॉपर बना। इस बार हिल टॉप स्कूल टॉपर मशीन बनकर सामने आया, जिसने कई टॉपर दिए। जब प्रिंसिपल उमा तिवारी से टॉपर बनाने की पूरी प्रक्रिया में स्कूल की भूमिका के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इसके पीछे विद्यार्थियों की मेहनत तो है ही साथ ही साथ स्कूल में शिक्षकों की पूरी प्लानिंग व लक्ष्य आधारित शिक्षण प्रणाली की अहम भूमिका है। प्रिंसिपल ने बताया कि पहले ही ऐसे बच्चों की पहचान स्कूल में कर ली जाती है, जिनमें टॉपर बनने की संभावना होती है।
बच्चों की क्षमताओं को जानते हैं शिक्षक
प्रिंसिपन के अनुसार, स्कूल में शिक्षक दस वर्षों से उन बच्चों के संपर्क में होते हैं और उनकी क्षमताओं से वाकिफ होते हैं। इस आधार पर वैसे बच्चों का अलग ग्रुप बना लिया जाता है, जिसके बाद उन्हें अलग से खास तौर पर तैयार किया जाता है। ऐसे बच्चों को ज्यादा असाइनमेंट दिए जाते है, अधिक जटिल सवाल लगातार हल कराए जाते हैं। साथ ही साथ उनकी पढ़ाई का नजदीक से फॉलोअप किया जाता है।
शत प्रतिशत अंक लाने के लिए किया जाता है तैयार
प्रिंसिपल ने बताया कि ऐसे विद्यार्थियों को मॉक टेस्ट समेत अन्य जटिल प्रक्रिया से गुजार कर 100 में 100 अंक लाने के लिए तैयार किया जाता है। पूरे सिलेबस से हर सवाल का उत्तर देने के लिए तैयार किया जाता है। इसकी तैयारी एक साल पहले से शुरू कर दी जाती है। इस बीच अभिभावकों से भी लगातार संपर्क में रहा जाता है। इतना करने के बाद टॉपर निकलते हैं।
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