राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। वक्त आने पर धुर विरोधी भी दोस्त बन जाते हैं और साथ चलने वाला प्रतिद्वंद्वी की श्रेणी में आ जाता है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के पूर्व में झारखंड में यह देखने को मिला।
भाजपा के कद्दावर नेता सरयू राय को पार्टी ने जब टिकट नहीं देने का फैसला लिया तो उन्होंने तत्काल अपना रास्ता अलग कर लिया। सबको चकित करते हुए वे तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव मैदान में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी खड़े हो गए।
कुछ ही दिनों में चुनावी हवा उनके पक्ष में बहने लगी। चुनाव का परिणाम आया तो एकबारगी राजनीतिक गलियारे में सनसनी फैल गई। सरयू राय ने भाजपा के मजबूत गढ़ में रघुवर दास को मात दे दी। हालांकि, भाजपा से अलग होने के बाद भी उनका दल के प्रति मोह समाप्त नहीं हो रहा है। इसका उदाहरण हाल ही में देखने को मिला।
जब पार्टी के कुछ नेताओं समेत हिंदूवादी संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को पुलिस ने जेल भेजा तो वे न सिर्फ उनसे मिलने पहुंचे, बल्कि खुलकर उनके साथ खड़े हो गए। इस मामले में भाजपा पीछे रह गई। ऐसे में उनके फिर से भाजपा में शामिल होने की अटकलों को बल मिल रहा है।
भाजपा छोड़ी है, नीति और सिद्धांत वही है
सरयू राय इससे स्पष्ट इनकार करते हैं कि वे भाजपा में वापस लौटेंगे। उनका कहना है कि अटकलों के बारे में वे कुछ नहीं कहना चाहते, लेकिन अब यह संभव नहीं है। वे कहते हैं- मैंने भाजपा छोड़ी है, नीति और सिद्धांत वही है।
भाजपा के कार्यकर्ताओं को मैं कभी महसूस नहीं होने देता कि जमशेदपुर और इसके आसपास के क्षेत्र में उनका कोई विधायक नहीं है। भाजपा के कार्यकर्ता भी उनसे उतना ही स्नेह रखते हैं। वे समस्याएं लेकर आते हैं तो तत्काल समाधान करने का प्रयास भी करता हूं।
भाजपा के सिर्फ एक गुट के कारण समस्या
सरयू राय का कहना है कि वे हमेशा भाजपा के नेताओं से भी मुलाकात करते हैं। बाबूलाल मरांडी से अक्सर बातचीत होती है। संघ की शाखाओं में भी वे अक्सर जाते हैं। संघ से जुड़े सीनियर लोगों से भी मुलाकात होती है। कुछ माह पूर्व संघ प्रमुख मोहन भागवत से भी मुलाकात की थी।
उनके मुताबिक, भाजपा के सिर्फ एक गुट के कारण समस्या है। भाजपा अलग है और रघुवर दास अलग हैं। जमशेदपुर में मंत्री बन्ना गुप्ता के प्रति भाजपा का सॉफ्ट कॉर्नर दिखता है। कोई उनके बारे में नहीं बोलता।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और स्थानीय सांसद विद्युत वरण महतो जेल में बंद पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलने गए, लेकिन प्रशासन ने उन्हें लौटा दिया। इसपर पार्टी को एकजुट होना चाहिए था। वापस लौटने की बजाय ये नेता वहीं धरने पर बैठ सकते थे।
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