जिले में खून की कमी वाली गर्भवती महिलाओं का इलाज सबसे कम हो रहा है। 2022 में सबसे अधिक इलाज जुलाई माह में हुआ था। इस माह 4 प्रतिशत वैसी गर्भवती महिलाओं का इलाज हुआ था, जिनका हीमोग्लोबिन 7 ग्राम से कम था। एनीमिया मुक्त भारत अभियान की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। जुलाई को छोड़ बाकी किसी माह में इलाज 2 प्रतिशत से अधिक नहीं हुआ। जिले में औसतन हर 10 महिलाओं में 4 का हीमोग्लोबिन 7 ग्राम से कम होता है। हीमोग्लोबिन कम होने से प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की मौत तक हो जाती है।
46.9 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार : रिपोर्ट के मुताबिक, 2015-16 में जिले में 64.6 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार थी। 2022 में यह घट कर 46.9 प्रतिशत पर आ गयी है। एनिमिया मुक्त भारत अभियान के असर के कारण छह साल में 17.7 प्रतिशत की कमी है। फिर भी इलाज का प्रतिशत काफी कम है।
गर्भावस्था में हीमोग्लोबिन 12 ग्राम से कम न हो : गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को हीमोग्लोबिन की ज्यादा जरूरत पड़ती है। एनीमिया होने से हेल्दी ब्लड सेल्स नहीं बनते हैं। यानी ब्लड सेल्स में हीमोग्लोबिन की मात्रा बहुत कम हो जाती है। चूंकि हीमोग्लोबिन ही ऑक्सीजन को शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाता है, इसलिए इसकी कमी से ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न अंगों और बच्चे तक पहुंचने में दिक्कत होती है। गर्भावस्था में शरीर में खून ज्यादा बनता है,ताकि बच्चे का विकास हो सके। जब शरीर में आयरन या अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है तो खून का बनना भी कम हो जाता है। गर्भवती महिलाओं में हीमोग्लोबिन का लेबल 12 ग्राम से कम नहीं होना है। अगर 11 ग्राम है तो इसका मतलब एनीमिया है।
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