यूक्रेन युद्ध में भारतीय छात्र फंसे तो नेताओं को पता चला कि इतने सारे भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश जाते हैं l उसके बाद मुख्यमंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री तक ने हैरानी जताई l लेकिन हैरानी से ज्यादा जरूरी दो सवाल हैं l पहला ये कि क्यों भारतीय छात्र विदेश पढ़ने जाते हैं और दूसरा ये कि क्या वाकई भारत से विदेश जाकर पढ़ना इतना बुरा है l
पिछले साल जुलाई में भारत सरकार ने संसद को सूचित किया था कि विदेशों में भारत के 11 लाख 33 हजार 749 छात्र पढ़ रहे हैं l यह संख्या उस समय की है जब कोविड महामारी अपने चरम पर थी और कई लाख भारतीय छात्र विदेश जा ही नहीं पाए थे l वरना तो हालत यह है कि सिर्फ पिछले तीन महीने में ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने के लिए करीब एक लाख छात्र पहुंचे हैं l जिनमे से अधिकतर भारतीय हैं l
22 जुलाई को भारत के केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने एक सवाल के जवाब में जो जानकारी संसद को दी थी, उसके मुताबिक कनाडा में सबसे ज्यादा दो लाख 15 हजार 720 छात्र पढ़ रहे थे l अमेरिका में दो लाख 11 हजार 930 छात्र थे l ऑस्ट्रेलिया में 92 हजार से ज्यादा और सऊदी अरब में लगभग 81 हजार भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे थे l सूडान में दस और ब्राजील में सबसे कम 4 भारतीय छात्र मौजूद थे l
बढ़ रहे हैं विदेश जाने वाले
जिस देश में करीब चार करोड़ छात्र उच्च शिक्षा के लिए नामांकित हों, उसके लिए 11 लाख की संख्या नाममात्र से ज्यादा नहीं है l लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि बड़ी संख्या में भारतीय छात्र पढ़ने विदेश जाना चाहते हैं l रेडसीयर नाम की कंसल्टिंग फर्म की एक रिपोर्ट ‘हायर एजुकेशन अब्रॉड’ के मुताबिक 2024 तक विदेश में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या लगभग 20 लाख हो जाएगी l
रिपोर्ट कहती है, “हमारी रिसर्च के मुताबिक इस वक्त 7,70,000 भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं जो 2016 की संख्या 4,40,000 से 20 प्रतिशत ज्यादा है l दूसरी तरफ घरेलू क्षेत्र में वृद्धि सिर्फ 3 प्रतिशत हुई है l”
यूं तो भारत के छात्रों का विदेश जाकर पढ़ने का चलन कोई नया नहीं है l अगर कुछ बदला है तो वह है बाहर जाने वालों का वर्ग और ठिकाना l पहले अमीर परिवारों के बच्चे ही विदेश जा पाते थे और वे अमेरिका या ब्रिटेन की ओर रुख करते थे l उनका मकसद होता था ऑक्सफर्ड, हार्वर्ड या केंब्रिज जैसे नामी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करना l लेकिन अब कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है l ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड तो कमोबेश नए ठिकाने हैं, जो मध्यमवर्गीय छात्रों ने बनाए हैं l और इससे पता चलता कि छात्र सिर्फ पढ़ाई की वजह से विदेश नहीं जा रहे हैं l
विशेषज्ञों का मानना है कि विदेश जाने के पीछे दो तरह की वजह हैं l एक तो यह कि अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सस्ती हुई है, जिस कारण मध्यमवर्गीय छात्र भी विदेश में पढ़ना वहन कर पा रहे हैं और दूसरी वजह है भारत से बाहर एक बेहतर जिंदगी की तलाश l
पढ़ाई का खर्च
मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन का चुनाव छात्र कई सालों से करते आ रहे हैं l रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किए जाने से पहले 20 हजार से ज्यादा भारतीय यूक्रेन में रह रहे थे जिनमें सबसे बड़ी संख्या छात्रों की ही थी l युद्ध शुरू होने के बाद यूक्रेन से लौटीं जमशेदपुर के कुछ छात्रों से बात करने पर उन्होंने बताया की कि भारत की NEET की परीक्षा में वह कुछ ही अंकों से सीट पाने से चूक गई थीं जिसके बाद उन्होंने यूक्रेन का रुख किया l वह बताते हैं, “एक-एक दो-दो नंबर से हम नीट के जरिए भारत में सीट पाने से चूक जाते हैं l किसी अच्छे कॉलेज में ऐडमिशन नहीं हो पाता l प्राइवेट कॉलेज इतने महंगे हैं कि वहां से सस्ता तो यूक्रेन जाना है l”
देखा जाए तो इनकी बात गलत नहीं है l भारत छोड़कर यूक्रेन, रूस या चीन जैसे देशों में पढ़ने जाने के पीछे वजह भारत में सीटों की कमी और गुणवत्ता भी है l मसलन, मेडिकल की पढ़ाई के लिए भारत में सरकारी और निजी विद्यालयों को मिलाकर 80 हजार सीटें हैं जबकि हर साल NEET की परीक्षा पास करने वालों की संख्या 7 लाख है l
दूसरी बड़ी वजह…
दूसरी बड़ी वजह है महंगाई, जो छात्रों को यूक्रेन जैसे छोटे देशों की ओर जाने को मजबूर करती है. अमेरिका में मेडिकल पढ़ने के लिए 18 से 30 लाख रुपये के बीच खर्च करने होते हैं l ब्रिटेन में किसी अच्छी यूनिवर्सिटी से डॉक्टरी पढ़ने के लिए 20 से 25 लाख रुपये लगते हैं l लीसेस्टर यूनिवर्सिटी विदेशी छात्रों से लगभग 12 लाख रुपये सालाना फीस लेती है. इसके उलट भारत में अगर छात्र को सरकारी कॉलेज में दाखिला ना मिले तो एक से डेढ़ करोड़ में भी निजी कॉलेज में सीट मिल जाना गनीमत होगी l वहीं यूक्रेन, चीन, रूस, जॉर्जिया आदि में 17 लाख से लेकर अधिकतम 45 लाख रुपये में काम चल जाता है l
पढ़ाई की गुणवत्ता
जो छात्र विदेश जाते हैं, वे आमतौर पर बाहर ही बस जाने के मकसद से देश छोड़ते हैं, और यह एक आम चलन है l सिर्फ छात्र ही नहीं, पिछले कुछ सालों में भारत छोड़कर विदेश जाने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है l भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि बीते छह सालों में ही आठ लाख से ज्यादा लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता ग्रहण की है l
डॉ. विनोद मिश्रा कहते हैं कि इसकी अपनी-अपनी वजह हो सकती हैं लेकिन आमतौर पर बेहतर लाइफस्टाइल एक साझी वजह मानी जाती है l वह कहते हैं, “अक्सर जो भारतीय विदेश में बसते हैं, वे बेहतर लाइफस्टाइल की खातिर ऐसा करते हैं l ऐसा ज्यादा कमाई के कारण भी हो सकता है और करियर के लिए उपलब्ध बेहतर अवसरों के कारण भी l” वह कहते हैं, “एक तो ये छात्र भारत से बाहर निकलते हैं तो भारतीय संस्थानों पर बोझ कम होता है l वहां पहले ही सीटों की कमी है, तो मामूली ही सही, राहत तो मिलती है. दूसरी बात ये है कि जितने लोग भारत में बसते हैं वे स्किल और धन के रूप में भारत को जितने संसाधन लौटाते हैं, उसकी कोई तुलना नहीं है l
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