छठ पूजा का पावन पर्व देशभर में मनाया जा रहा है। यह पर्व कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। इसमें पहले दिन नहा-खा, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन षष्ठी को शाम में डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन सप्तमी को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस पर्व को बिहार, झारखंड और यूपी के लोग मुख्य रूप से मनाते हैं। माना जाता है कि सूर्यदेव और छठ की पूजा करने से उनकी कृपा सदैव आप पर बनी रहती है।
हम आपको बताएंगे कि कैसे छठ पर्व की शुरूआत हुई और कोसी क्यों भरी जाती है।
महाभारत में छठ पर्व को लेकर उल्लेख है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट कौरवों के हाथों हार गए थे, तब माता द्रौपदी ने राजपाट को वापस पाने के लिए षष्ठी मैया का चार दिन का व्रत किया था। उसके बाद पांडवों को उनका राजपाट वापिस मिल गया था। तब से ही छठ पर्व मनाया जाता है।
छठ पूजा पर कोसी भरने की प्राचीन परंपरा है। दरअसल जब कोई व्रती छठ के मौके पर सूर्यदेव और छठ मैया से कोई मन्नत मांगती है और वह पूरी हो जाती है, तो उसे अगली छठ पर कोसी भरनी पड़ती है। एक तरह से यह सूर्यदेव और छठ मैया का आभार प्रकट करने का तरीका होता है। कोसी षष्ठी पर शाम को सूर्य के अर्ग्घ देने के बाद घर जाकर भरी जाती है। कोसी में लाल कपड़ में ठेकुआ, फल और केराव को रखकर सात गन्नों से बांधकर एक छत्र बनाया जाता है। उसके अंदर एक घड़ी में हाथी की मूर्ति को रखा जाता है और फिर उसके चारों तरफ दीये जलाकर पूजा की जाती है।
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