मांग थी कि मजदूरी का समय 8 घंटे निर्धारित किया जाए
आज 1 मईहै यानी मजदूर दिवस. इसे मई दिवस और इंटरनेशनल लेबर डे के रूप में भी जाना जाता है। इसका एक इतिहास रहा है, जिसे प्रति वर्ष याद किया जाता है, विशेष रूप से समूचे विश्व के मजदूरों और मजदूर संगठनों द्वारा. साल 1886 में 1 मई को अमेरिका के शिकागो शहर में हजारों मजदूरों ने एकजुटता दिखाते हुए प्रदर्शन किया था।
उनकी मांग थी कि मजदूरी का समय 8 घंटे निर्धारित किया जाए और हफ्ते में एक दिन छुट्टी हो। इससे पहले मजदूरों के लिए कोई समय-सीमा नहीं थी। उनके लिए कोई नियम-कायदे ही नहीं होते थे। लगातार 15-15 घंटे काम लिया जाता था।
138 साल पहले शिकागो में उग्र प्रदर्शन
आज से करीब 138साल पहले शिकागो का यह प्रदर्शन उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने 4 मई को पुलिस को निशाना बनाकर बम फेंका। पुलिस की जवाबी फायरिंग में 4 मजदूरों की मौत हो गई और करीब 100 मजदूर घायल हो गए। इसके बाद भी आंदोलन चलता रहा। 1889 में जब पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस हुई तो 1 मई को मजदूरों को समर्पित करने का फैसला किया।
इस तरह धीरे-धीरे पूरी दुनिया में 1 मई को मजदूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। आज अगर कर्मचारियों के लिए दिन में काम के 8 घंटे तय हैं तो वह शिकागो की आंदोलन की ही देन है। वहीं, हफ्ते में एक दिन छुट्टी की शुरुआत भी इसके बाद ही हुई। दुनिया के कई देशों में 1 मई को राष्ट्रीय अवकाश के तौर पर मनाया जाता है।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत
भारत में एक मई को मजदूर दिवस सब से पहले चेन्नई में 1 मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। उस समय इस को मद्रास दिवस के तौर पर प्रामाणित कर लिया गया था। इसकी शुरुआत भारतीय मज़दूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलु चेट्यार ने शुरू की थी। भारत में मद्रास के हाईकोर्ट सामने एक बड़ा प्रदर्शन किया और एक संकल्प के पास करके यह सहमति बनाई गई कि इस दिवस को भारत में भी कामगार दिवस के तौर पर मनाया जाये और इस दिन छुट्टी का ऐलान किया जाये। भारत समेत लगभग 80 मुल्कों में यह दिवस पहली मई को मनाया जाता है।
किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। किसी भी उद्योग में कामयाबी के लिए मालिक, कामगार और सरकार अहम धड़े होते हैं। इसमें कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढांचा खड़ा नहीं रह सकता
समस्याएं
खेतिहर मजदूरों को अल्प रोज़गार और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे वर्ष के केवल कुछ भाग के लिए ही काम करते हैं, और बाकी समय, वे बेकार रहते हैं क्योंकि खेत पर कोई काम नहीं होता है या उनके लिए कोई वैकल्पिक काम उपलब्ध नहीं होता है।
यदि हम भारत की बात करें तो यहाँ असंगठित श्रमिकों की बड़ी तादाद है, जिसके समक्ष कई चुनौतियां हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, 2018 में भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था कुल रोजगार का 82% थी। अनौपचारिक क्षेत्र में कृषि, घरेलू काम, निर्माण और स्ट्रीट वेंडिंग में काम करने वाले श्रमिक शामिल हैं। इन श्रमिकों को अक्सर नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और बुनियादी अधिकारों और लाभों तक पहुंच का अभाव होता है।
चुनौतियाँ:
अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें कम वेतन, लंबे काम के घंटे, नौकरी की सुरक्षा की कमी और सामाजिक सुरक्षा तक सीमित पहुंच शामिल है। इन श्रमिकों को अक्सर श्रम कानूनों और विनियमों से बाहर रखा जाता है, जिससे शोषण और दुर्व्यवहार होता है। भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों के सामने आने वाली कुछ मुख्य चुनौतियाँ ये हैं।
कम वेतन
अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक अक्सर कम वेतन कमाते हैं, जिससे उनके लिए अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो जाता है। ILO के अनुसार, भारत में 60% अनौपचारिक अर्थात असंगठित श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से भी कम मिलता है।
लंबे समय तक काम करना
भारत में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक अक्सर लंबे समय तक काम करते हैं, कभी-कभी दिन में 16 घंटे तक, बिना किसी ओवरटाइम वेतन या छुट्टियों पर काम करने के मुआवजे के।
मई दिवस की मांगें
आठ घंटे काम के दिन के लिए एकता, नस्लवाद और अंधराष्ट्रवाद के खिलाफ एकता, और साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ एकजुटता पूरे पूंजीपति वर्ग के खिलाफ मजदूर वर्ग की मांगे हैं। इस वजह से मई दिवस, यानी अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस आज भी धन्नासेठों और थैलीशाहों को उतना ही डराता है जितना कि यह दुनिया के करोड़ों मजदूरों को प्रेरणा देता है।
भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीटू) के द्वारा बनाया गया “किसान मजदूर एकता दिवस”
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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