देश की आजादी की लड़ाई में अहिंसा के मंत्र से अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का लौहनगरी से भी नाता रहा है। वे दो बार जमशेदपुर आये थे और दोनों बार मजदूरों के आंदोलन को समाप्त कराने के लिए प्रबंधन के साथ मध्यस्थता की थी। वर्ष 1925 में जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन (अब टाटा वर्कर्स यूनियन) के तत्कालीन महामंत्री जी शेट्टी को प्रबंधन ने बर्खास्त कर दिया था। तब एसोसिएशन के अध्यक्ष सीएफ एंड्रयू थे। प्रबंधन के इस फैसले के खिलाफ मजदूरों में गुस्सा था।
8 अगस्त 1925 को पहली बार शहर पहुंचे
प्रबंधन और यूनियन के बीच चल रहे इस विवाद को सुलझाने के लिए वे 8 अगस्त 1925 को पहली बार शहर पहुंचे थे। उस समय यूनियन का कोई ऑफिस नहीं था। तब बिष्टूपुर में साउथ पार्क हॉस्पिटल के सामने किनारे वाले क्वार्टर को खुलवाया गया। वहां उन्होंने मजदूरों के साथ बैठक की थी और वहां मिठाई भी बंटी थी। इसके बाद वे प्रबंधन से बात करने के लिए डायरेक्टर बंगलो गए। फिर जमशेदपुर टेक्निकल इंस्टिट्यूट (अब यूनाइटेड क्लब) भी गए। उन्होंने बातचीत कर प्रबंधन और यूनियन के बीच के विवाद को सुलझाया।
मिलानी हॉल और तिलक पुस्तकालय भी गए
इस दौरान महात्मा गांधी मिलानी हॉल और तिलक पुस्तकालय भी गए थे। टाटा स्टील (तब टिस्को) के तत्कालीन जीएम सीए एलेक्जेंडर ने उन्हें प्रशस्ति पत्र भेंट किया था। दूसरी बार वे 1934 में शहर आए थे। तब शहर में हरिजन मूवमेंट चल रहा था। वे ठक्कर बप्पा से मिले थे। ठक्कर बप्पा टाटा स्टील के वेलफेयर कमेटी के बोर्ड में शामिल थे। गांधी जी ने टाटा स्टील द्वारा हरिजन के लिए चलाई जा रहीं कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जाना। उनके हस्तक्षेप के बाद वह मूवमेंट भी थम गया था।
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