
आमदनी के मामले में तो यह साल उम्मीद से कुछ बेहतर ही निकलने वाला है. यानी सरकार को सभी स्रोतों से कुल मिलाकर जो आमदनी होने का अनुमान पिछले बजट में लगाया गया था, अब लगता है कि सरकार के हाथ में उससे क़रीब 2.25 लाख करोड़ रुपए अधिक आने जा रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह टैक्स वसूली में आई तेज़ी है. आमदनी के मामले में तो यह साल उम्मीद से कुछ बेहतर ही निकलने वाला है. यानी सरकार को सभी स्रोतों से कुल मिलाकर जो आमदनी होने का अनुमान पिछले बजट में लगाया गया था, अब लगता है कि सरकार के हाथ में उससे क़रीब 2.25 लाख करोड़ रुपए अधिक आने जा रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह टैक्स वसूली में आई तेज़ी है.
सरकार के हाथ में क़रीब 2.25 लाख करोड़ रुपए अधिक आने जा रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह टैक्स वसूली में आई तेज़ी है.
पिछले छह महीनों में हर महीने औसतन 1.20 लाख करोड़ रुपए तो सिर्फ़ जीएसटी से ही आए हैं. इसका सीधा मतलब है कि कारोबार रफ़्तार पकड़ रहा है. उधर देश की सबसे बड़ी कंपनियों के नतीजे देखने से तो लगता है कि कहीं कोई दिक़्क़त है ही नहीं. कोरोना के बाद से ही इनके मुनाफ़े में रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखने को मिली है और आज भी मिल रही है. बजट और राजनीति का रिश्ता समझने वाले विद्वानों का मानना है कि भले ही लोकसभा चुनाव अभी दो साल दूर हों, लेकिन इन पांच राज्यों ख़ासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव के ठीक पहले जो बजट आ रहा है, उसे हर हाल में चुनावी बजट तो होना ही पड़ेगा.चुनावी बजट का ही दूसरा नाम होता है लोक लुभावन बजट. यानी जनता के लिए ऐसी योजनाएं और घोषणाएं जिन्हें सुनकर उनका दिल ख़ुश हो जाए.
ज़ाहिर है, हर तबके को लुभाने की कोशिश की जाएगी. ख़ासकर उन्हें जो अपनी नाराज़गी जता चुके हैं और ताक़त भी दिखा चुके हैं, और उन्हें भी जिनकी गिनती चुनाव के फ़ैसले में अहम भूमिका निभाती है. किसान, ग्रामीण, नौजवान, ग़रीब, महिलाएं, दलित, पिछड़े, अति-पिछड़े, अगड़े, सरकारी कर्मचारी, छोटे-बड़े व्यापारी, बड़े-छोटे उद्योगपति. ऐसे कई वर्ग हैं जिन्हें वोटबैंक की तरह देखा जा सकता है. स्वाभाविक है कि चुनाव से पहले सरकार इन लोगों को ख़ुश करने की पूरी कोशिश करेगी.
सरकार की कुल कमाई बजट अनुमान से लगभग 30 फ़ीसदी ज़्यादा होने के आसार दिख रहे हैं.
लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं. ज़्यादातर विशेषज्ञ मान रहे हैं कि समाज के एक बहुत बड़े तबके को सहारे की ज़रूरत है और अगर वो सहारा नहीं मिला तो फिर इकोनॉमी का रफ़्तार पकड़ना बहुत मुश्किल हो जाएगा.दूसरी तरफ़ ऐसा भी लग रहा है कि इस वक़्त सरकार को आमदनी की चिंता शायद नहीं करनी. उल्टे उसे यह सोचना है कि अपना ख़र्च कैसे बढ़ाए. ऐसे वक़्त में सरकार का ज़्यादा ख़र्च करना इकोनॉमी की सेहत के लिए भी बेहद ज़रूरी है और ख़ुद सरकार की साख के लिए भी.
इन्हीं का नतीजा है कि सरकार की कुल कमाई बजट अनुमान से लगभग 30 फ़ीसदी ज़्यादा होने के आसार दिख रहे हैं. इसमें बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट कर में 60 फ़ीसदी की और आयकर में 32 फ़ीसदी की बढ़त से आएगा. दोनों मिलाकर प्रत्यक्ष कर की वसूली 13.5 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान अर्थशास्त्री लगा रहे हैं, जो बजट में दिए गए अनुमान से क़रीब 46 फ़ीसदी ऊपर होगा.अभी कोरोना की तीसरी लहर का डर और उससे ज़्यादा यह आशंका बनी हुई है कि यह अर्थव्यवस्था को कितना झटका और दे सकती है. लेकिन सरकार की कमाई में 69.8 फ़ीसदी की बढ़ोतरी यह उम्मीद देती है कि सरकार के हाथ एकदम बंधे हुए तो नहीं हैं.
समाज के जो हिस्से और जो कारोबार इस ‘के शेप्ड रिकवरी’ में अब भी नीचे गिरते दिख रहे हैं, उनकी मदद करनी पड़ेगी.
कुछ तबके जहां तेज़ी से ऊपर जा रहे हैं, वहीं कुछ आज भी नीचे ही गिरते दिख रहे हैं. इसी को ‘के शेप्ड रिकवरी’ कहा जाता है. अंग्रेज़ी के अक्षर के (K) के दो डंडों की तरह समाज के कुछ तबके तेज़ी से ऊपर जा रहे हैं, जबकि कुछ आज भी गिरते ही दिख रहे हैं. चुनौती यह है कि नीचे वालों को सहारा देने का कौन सा रास्ता निकाला जाए कि ऊपर बढ़ने वालों से मदद भी ली जा सके और उनकी रफ़्तार पर ब्रेक भी न लग जाए.सरकार के पास इस वक़्त तक उद्योग, व्यापार और समाज के दूसरे तबकों से भी मांगों की लंबी-लंबी सूचियां पहुंच चुकी हैं कि किसे क्या चाहिए.
उद्योग संगठन, बड़े व्यापार घराने और विशेषज्ञ भी बजट से पहले अपनी अपनी तरफ़ से हालात का विश्लेषण और उससे निपटने के सुझाव सरकार के सामने रख चुके हैं. मांगों और सुझावों की एक नहीं अनेक लंबी-लंबी लिस्ट मौजूद हैं. लेकिन सबका सार यही है कि इस वक़्त सरकार को अपना ख़ज़ाना खोलना पड़ेगा. समाज के जो हिस्से और जो कारोबार इस ‘के शेप्ड रिकवरी’ में अब भी नीचे गिरते दिख रहे हैं, उनकी मदद करनी पड़ेगी. और अगर ज़रूरत पड़े तो जिन लोगों के कारोबार और कमाई में ज़बर्दस्त उछाल हुई है, उनसे कुछ मदद लेने का रास्ता निकालना पड़ेगा.
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