पूर्वी सिंहभूम जिले में अवैध पत्थर खदान का संचालन धड़ल्ले से हो रहा है। इससे हर साल 50 करोड़ का नुकसान हो रहा है। एमएमडीआर एक्ट, फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट, सीएनटी एक्ट समेत अन्य कानूनों का उल्लंघन करते हुए जिले में 300 से अधिक स्थनों पर अवैध तरीके से पहाड़ काटे जा रहे हैं। इन खदानों से सरकार को राजस्व की हानि हो रही है। वहीं, इलाके के जंगल, पहाड़ भी नष्ट होने के कगार पर पहुंच गए हैं। खुफिया विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, इस धंधे में अफसरों और नक्सलियों की मिलीभगत है।
अवैध खनन के लिए सक्रिय हैं सिंडिकेट
अवैध खदानों के संचालन के लिए इलाके में सिंडिकेट गठित है, जो संबंधित विभागों के नीचे से लेकर ऊपर तक अधिकारियों को मैनेज करती है। अवैध खदानों पर जिला टास्क फोर्स ने कई बार कार्रवाई की, लेकिन कुछ दिनों बाद पुन खनन शुरू हो जाता है। सूत्रों के अनुसार, गुड़ाबांदा, डुमरिया, हेसलाडीह, हाता, जादूगोड़ा, मुसाबनी, डुमरिया सहित अन्य इलाकों में 10 से लेकर 20 एकड़ तक क्षेत्र में अवैध पत्थर खनन का काम हो रहा है।
रोज 2000 टन से ज्यादा पत्थर निकाले जा रहे
जिले में 300 से ज्यादा पत्थर खदान संचालित हैं और इन खदानों से प्रतिदिन दो हजार टन से अधिक पत्थर निकाले जा रहे हैं। इन खदानों में किस ढंग से पत्थर खनन होता है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक खदान में रोज तीन-चार पोकलेन, ड्रिल मशीन व दर्जनों हाईवा काम करते रहते हैं। सूत्रों के अनुसार, अवैध खनन कारोबार की रिपोर्ट स्पेशल ब्रांच द्वारा कई बार मुख्यालय भेजी गई है। रिपोर्ट में खनन माफिया, वन, प्रदूषण विभाग समेत इलाके में सक्रिय नक्सलियों की मिलीभगत का भी जिक्र किया गया है।
खनन राजस्व संग्रम में पूर्वी सिंहभूम सबसे नीचे
खनन राजस्व संग्रह में इस बार पूर्वी सिंहभूम राज्य में सबसे निचले पायदान पर रहा। 2022-23 में जिला खनन पदाधिकारी कार्यालय को 111 करोड़ राजस्व वसूली का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन विभाग सिर्फ 56 फीसदी लक्ष्य हासिल कर सका। यह वित्तीय वर्ष 2021-22 की तुलना में लगभग एक करोड़ कम है। वित्त वर्ष 2021-22 में जिला खनन पदाधिकारी कार्यालय का लक्ष्य 149 करोड़ था, लेकिन 63 करोड़ का राजस्व संग्रह हुआ था। यह कुल लक्ष्य का 42 प्रतिशत था। अवैध खनन कारोबार में जिला खनन पदाधिकारी कार्यालय की बड़ी हिस्सेदारी रहती है। इसमें विभाग को प्रति माह 40 से 50 लाख मिलते हैं। पुलिस व स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भी हिस्सेदारी रहती है। इसका सीधा असर सरकार के राजस्व संग्रह पर पड़ता है।
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