अपनी साफ सुथरी छवि और सादगी के लिए प्रसिद्ध शास्त्री जी ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद नौ जून 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया था। वह करीब 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उनके नेतृत्व में भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
गरीबों की सेवा में समर्पित किया पूरा जीवन
लाल बहादुर शास्त्री गांधीवादी नेता थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया था। शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था। साल 1920 में लाल बहादुर शास्त्री भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते उन्हें कुछ समय के लिए जेल भी जाना पड़ा था।
भारत में दो कॉन्सपिरेसी थियरी सबसे मशहूर
भारत में दो कॉन्सपिरेसी थियरी सबसे मशहूर हैं। एक ये कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु प्लेन दुर्घटना में नहीं हुई। और दूसरी ये कि भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु नहीं नेचुरल थी। बल्कि उनकी हत्या की गई थी। किसी भी थियरी को प्रैक्टिकल में बदलने के लिए ज़रूरत होती है सबूत की, और सबूत हैं वो दस्तावेज जो भारत सरकार के पास हैं।
क्या हुआ था 1965 युद्ध के बाद?
1965 का भारत-पाक युद्ध. भारत लाहौर के मुहाने पे था। जनरल जे.एन. चौधरी ने PM लाल बहादुर शास्त्री को जानकारी दी कि भारत का गोला बारूद ख़त्म होने वाला है। युद्ध वहीं रोक दिया गया।
अब सवाल उठा कि आगे बात कैसे बढ़े। तो आगे आया सोवियत संघ। मध्यस्थता के लिए. तय हुआ कि जनवरी 1966 में ताशकंद में बैठक होगी। ताशकंद उज्बेकिस्तान में आता है। उस समय ये सोवियत संघ का हिस्सा था। इसके बाद अयूब जनवरी 1966 के पहले हफ्ते में ताशकंद पहुंचे। यहां उनकी मुलाकात हुई लाल बहादुर शास्त्री से। वही शास्त्री, जिन्हें ‘बौना’ कहकर अयूब उनका मजाक उड़ाया करते थे।
क्या हुआ समझौते के बाद?
10 जनवरी को ताशकंद में समझौता हुआ। जिसके तहत पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस कर कर दिया गया था। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर भी ताशकंद में मौजूद थे। BBC को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बाबत एक किस्सा भी बताया था।
समझौते के बाद प्रधानमंत्री ने अपने घर फ़ोन मिलाया। फ़ोन उनकी बेटी ने उठाया। तो शास्त्री जी ने कहा, अम्मा को फोन दो। तब उनकी बड़ी बेटी ने जवाब दिया, अम्मा फोन पर नहीं आएंगी। शास्त्री जी ने पूछा क्यों? जवाब आया इसलिए क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया। वो बहुत नाराज हैं।
शास्त्री की मृत्यु
परेशान हालत में शास्त्री जी कुछ देर अपने कमरे का चक्कर लगाते रहे। फिर उन्होंने उन्होंने अपने सचिव वैंकटरमन को बुलाया। उनसे कहा, पता लगाओ, भारत से और क्या प्रतिक्रिया आ रही हैं? वैंकटरमन ने उन्हें दो बयानों के बारे में बताया। एक अटल बिहारी वाजपेयी का और दूसरा कृष्ण मेनन का। दोनों ने ही उनके इस फैसले की आलोचना की थी।
सोर्सेज के मुताबिक़ उस रात शास्त्री जी काफी परेशान थे । तनाव के हालत में ही उन्होंने थोड़ा बहुत खाना खाया और सोने चले गए।करीब रात डेढ़ बजे पता चला कि शास्त्री जी चल बसे। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें हार्ट अटैक आया था।
भारत के प्रधानमंत्री की मृत्य,कोई मामूली बात नहीं
जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर भारत लाया गया।जहां उनकी अंत्येष्टि की गई। लगा कि मामला ख़त्म हो गया । लेकिन भारत के प्रधानमंत्री की मृत्य हुई थी। कोई आम बात नही थी। ये बात आसानी से शांत होने वाली नहीं थी। कोल्ड वॉर के दिन थे। ताशकंद समझौते पर अमेरिका भी नज़रें गढ़ाए बैठा था।
फिर शुरू हुआ बवाल। शास्त्री जी के परिवार ने आरोप लगाए कि शास्त्री जी की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं हुई थी। मुद्दा उठा कि उनका शरीर नीला पड़ चुका था। और शरीर में कई जगह चकत्ते भी पड़े थे। एक और बात सामने आई। वो ये कि उनके शरीर पर कुछ जगह चोट के निशान थे।
क्या शास्त्री जी को ज़हर दिया गया था?
कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब ‘बियोंड द लाइन’ में लिखते हैं,
उस रात मैं सो रहा था, अचानक एक रूसी महिला ने दरवाजा खटखटाया।उसने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं।मैं जल्दी से उनके कमरे में पहुंचा। मैंने देखा कि रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोस्गेन बरामदे में खड़े हैं, उन्होंने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे।
शास्त्री को जहां ठहराया गया था, वो काफी बड़ा कमरा था।उसमें लगा था एक बड़ा सा बिस्तर। जिसके ऊपर शास्त्री लेटे पड़े थे। फर्श पर कालीन बिछा था।उसके ऊपर शास्त्री की चप्पल रखी हुई थी।देखकर लगता था, मानो इस्तेमाल ही न हुई हों।कमरे के एक ओर एक ड्रेसिंग टेबल था. उसके ऊपर एक थर्मस रखा था, औंधे मुंह पलटा हुआ।शायद शास्त्री जी ने उसे खोलने की कोशिश की थी।आमतौर पर ऐसे कमरों में घंटी लगी होती है। ताकि कमरे में ठहरे इंसान को कोई जरूरत हो, तो वो घंटी बजाकर किसी को बुला सके।मगर शास्त्री जी के कमरे में कोई घंटी भी नहीं थी।
एक थियरी ये है कि शास्त्री जी को ज़हर दिया गया था।इस दावे के समर्थन में कुछ लोग खाने की तरफ़ इशारा करते हैं। आम तौर पर शास्त्री जी के लिए भोजन उनके निजी सहायक रामनाथ बनाते थे।लेकिन उस दिन खाना सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने पकाया था।खाना खाकर शास्त्री सोने चले गए थे। उनकी मौत के बाद शरीर के नीला पड़ने पर लोगों ने आशंका जताई थी कि शायद उनके खाने में जहर मिला दिया गया था।
राज नारायण कमिटी का गठन
1977 में जनता पार्टी सरकार में आई। उन्होंने जांच के लिए राज नारायण कमिटी का गठन किया। पूछताछ के लिए शास्त्री जी के निजी डॉक्टर आरएन चुघ को बुलाया जाना था। लेकिन उससे पहले ही एक सड़क हादसे में परिवार सहित उनकी मौत हो गई।
शास्त्री जी के निजी सहायक रामनाथ के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ।उनकी भी एक सड़क हादसे में याददाश्त चली गई। ये दोनों लोग शास्त्री के साथ ताशकंद के दौरे पर गए थे। राज नारायण कमिटी की रिपोर्ट का क्या हुआ।किसी को नहीं पता और न हि आज तक इसे पेश नहीं किया गया है।
शास्त्री जी एक नोट छोड़कर गए थे!
साल 2018 में एक बार दुबारा ये मुद्दा उठा।जब सेंट्रल इन्फ़ॉर्मेशन कमीशन, CIC ने PMO को निर्देश दिया कि शास्त्री जी की मृत्यु से जुड़े दस्तावेज पब्लिक को उपलब्ध कराए जाएं।CIC ने राज नारायण कमिटी की रिपोर्ट भी पब्लिक करने की बात कही। सरकार ने जवाब दिया कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (ए) के तहत ये दस्तावेज क्लासीफाइड हैं।इसलिए पब्लिक को नहीं दिए जा सकते।
तब CIC ने एक और निर्देश दिया कि रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाए।ताकि यह फैसला हो सके कि रिपोर्ट में से क्या रिलीज़ किया जा सकता है और क्या नहीं। मामला वहीं अटका रहा।और दस्तावेज अभी तक यानी साल 2022 तक पब्लिक में नहीं आ पाए हैं।
साल 2018 में ही शास्त्री जी के छोटे बेटे अशोक की पत्नी नीरा शास्त्री ने एक और दावा किया। उन्होंने बताया कि शास्त्री जी एक ग्लास केस में नोट छुपाकर छोड़ गए थे। जिसे उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने देखा था। नीरा के अनुसार इस नोट में लिखा था कि एक लोकल रसोईये ने उन्हें दूध दिया, जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ी। नीरा शास्त्री के अनुसार ये बात ललिता शास्त्री से उन्हें खुद बताई थी।
क्या शास्त्री जी को बचाया जा सकता था?
इस मामले में कुछ बातें विदेशी मीडिया में भी उछली।1991 में सोवियत के विघटन के बाद की बात है। वहां की एक मैगजीन ने एक पूर्व केजीबी (सोवियत की खुफिया एजेंसी) अधिकारी के हवाले से बताया था।इसके मुताबिक-
केजीबी ताशकंद पहुंचे भारतीय और पाकिस्तान प्रतिनिधिमंडल, दोनों पर नजर रख रहा था। ये देखने के लिए समझौते के लिए कौन कितना गंभीर है।कौन कितना आगे बढ़ने को राजी है। जब शास्त्री को अपने कमरे में दिल का दौरा आया, तब केजीबी एजेंट्स ये देख रहे थे।वो चाहते, तो वक्त रहते शास्त्री को इलाज मिल सकता था।मगर उन्होंने किसी को अलर्ट नहीं किया।उन्हें लगा कि अगर वो ये बात बताएंगे, तो सबको पता चल जाएगा।कि वो शास्त्री की जासूसी कर रहे थे।
केस हल करने के सबसे आसान तरीक़ा होता पोस्टमार्टम रिपोर्ट
शास्त्री जी की मृत्यु का केस हल करने के सबसे आसान तरीक़ा होता उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट। और यहीं पर सबसे बड़ा पेंच फंसा। MEA के अनुसार ना ताशकंद में उनका पोस्टमार्टम करवाया गया,ना भारत लौटकर। अगर सही तरीक़े से चीजें की गई होती। और उस समय पोस्टमार्टम कराया गया होता तो उनके निधन का असली कारण पता चल जाता। और इतना बड़ा मसला बनता ही नहीं।
बहरहाल केस अनसुलझा ही रहा। और आज तक अनसुलझा ही है। देश के प्रधानमंत्री की मृत्यु एक गम्भीर मसला ना रहकर गॉसिप का हिस्सा बनकर रह गई है।होना तो ये चाहिए था कि सरकार इससे जुड़े सभी दस्तावेज पेश कर मुद्दे को फ़ाइनल करती। लेकिन इसके बजाय ये बात उन लोगों के हाथ में चली गई है, जो कोविड को साधारण जुकाम और वैक्सीन को बिल गेटस की साज़िश मानती है। अपन तो यही कहेंगे कि मानो नहीं जानो। निष्कर्ष पहले से निकले हुए हैं तो चाहे जितना धुआं दिखा लो।
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