राहुल गांधी के सांप्रदायिक मुद्दों को लगातार आड़े हाथों लेने के बावजूद कांग्रेस पार्टी के भीतर छटपटाहट साफ दिख रही है. चाहे हिजाब मुद्दे पर कर्नाटक कांग्रेस की औपचारिक स्थिति हो या उत्तर प्रदेश में धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण, बाकी पार्टी इससे सहमत नजर नहीं आ रही है.कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को वैचारिक रूप से हल करने में विफल रही है. 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (Cultural Nationalism) ने मुख्यधारा की राजनीति में संवैधानिक राष्ट्रवाद को किनारे कर दिया.
नतीजा यह हुआ कि सार्वजनिक भाषणों या चर्चा में सांप्रदायिक बातें मुख्यधारा में आ गईं. बीजेपी के लिए मुसलमानों को एक खास रंग-रूप देना आसान और सामान्य हो गया. इसने विरोधी पार्टियों को पब्लिक स्पेस से साइडलाइन कर दिया और अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दों को उठाने वाली मुख्यधारा की पार्टियों को रक्षात्मक बना दिया.
सांप्रदायिक राजनीति मुद्दे पर कांग्रेस का रुख साफ नहीं
सांप्रदायिक राजनीति से कैसे निपटें इस मुद्दे पर कांग्रेस का रुख साफ नहीं है. कांग्रेस पार्टी के कई नेता सोचते हैं कि सार्वजनिक वाद-विवाद या चर्चा में सांप्रदायिकता का मुकाबला आर्थिक मुद्दों को उठाकर किया जा सकता है. इसके पीछे भावना यह है कि इससे बीजेपी को सार्वजनिक चर्चा के दौरान ध्रुवीकरण करने का मौका नहीं मिलेगा.
कांग्रेस ने जो सोचा, हुआ उल्टा
मुख्य ध्येय आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना है. मगर यह चाल काम नहीं आई. कांग्रेस ने जो सोचा था उसका उलटा हुआ. जिसे वो रणनीतिक चुप्पी मान रहे थे वह वैचारिक आधार पर कमजोरी माना गया. इसी वजह से राहुल गांधी को अयोध्या पर सलमान खुर्शीद की किताब पर उनका बचाव करने के लिए आगे आना पड़ा. बीजेपी ने हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म का पर्याय बना दिया है. पहले ऐसा नहीं था.इस तरह के वाकयों में किसी भी तरह की असहमति को बीजेपी हिन्दू विरोधी के रूप में पेश कर देती है. राहुल गांधी इसी के शिकार हैं.
हिजाब कोई मुद्दा नहीं था पर बीजेपी ने मुस्लिम पहचान बना दिया
हालांकि यह रणनीति थोड़े समय के लिए सफल हो सकती है लेकिन लंबी दौड़ में ये समाज के एक बड़े वर्ग को पूरी राजनीतिक प्रक्रिया के हाशिए पर ला देगी. यह अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर कट्टरपंथियों के हाथ को मजबूत करेगा. हिजाब कोई मुद्दा नहीं था मगर बीजेपी ने रूढ़िवादी तत्वों के माध्यम से इसे मुस्लिम पहचान के मुद्दे के रूप में स्थापित कर दिया.
यह एक बड़ा सवाल भी पैदा करता है. कर्नाटक में मुख्यधारा की पार्टियां कब तक कट्टरता को लेकर बीजेपी को सीधे-सीधे चुनौती नहीं देंगी? समस्या यह है कि मुख्यधारा की पार्टियां असली मुद्दों से मुंह मोड़ रही हैं. जवाहरलाल नेहरू ने पहला चुनाव सांप्रदायिक सद्भाव के मुद्दे पर लड़ा था. कांग्रेस को एक नारे के रूप में सांप्रदायिक सद्भाव पर जोर देने की जरूरत है. अगर कांग्रेस ऐसा करने से भागती है तो वो एक तरह से अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रही है.
हिजाब विवाद पार्टी में गहरे बंटवारे को दर्शाता है. पार्टी के नेता का वैचारिक रुख तभी फलदायी हो सकता है जब पूरा संगठन उसे माने और तालमेल बिठाए. यदि यह केवल नेता के भाषणों तक ही सीमित रहता है तो अप्रभावी हो जाता है.
भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता पर आधारित
भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है. भारतीय संविधान राष्ट्र को बनाने में लगे सभी संस्थापकों की सर्वसम्मति को दर्शाता है. भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण को अपनी तरह से परिभाषित करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दोषी हैं. राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस अलग दिखे. ऐसे में धर्मनिर्पेक्षता पर उनकी पार्टी का स्टैंड ग्लानिहीन और साहसिक होना चाहिए.
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