पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि राज्य में शराबबंदी लागू होने के कारण जमानत आवेदनों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है और लगभग 25 प्रतिशत नियमित जमानत याचिकाएं केवल बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम के तहत दायर की जा रही हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि वह अपनी स्वीकृत संख्या की आधी से भी कम क्षमता के साथ काम कर रहा है और जमानत आवेदन दाखिल करने में वृद्धि के कारण नियमित जमानत याचिकाओं के निपटान में देरी हो रही है।
जमानत आवेदनों का लगा ढेर
हाई कोर्ट ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि वर्तमान में 39,622 जमानत आवेदन हैं जिसमें 21,671 अग्रिम और 17,951 नियमित जमानत आवेदन शामिल हैं, जो निर्धारित पीठों के समक्ष लंबित हैं। इसके अलावा 20,498 अग्रिम और 15,918 नियमित जमानत आवेदनों सहित 36,416 ताजा जमानत आवेदनों पर अभी विचार किया जाना बाकी है। 11 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक अन्य मामले में बिहार सरकार की उन याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया था, जिसमें राज्य के कड़े शराब कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती दी गई थी।
25% नियमित जमानत के आवेदन शराबबंदी से जुड़े
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने हाई कोर्ट के समक्ष जमानत आवेदनों के लंबित होने में देरी और विचाराधीन कैदियों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई में देरी के कारण लंबे समय तक जेल में रहने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। अदालत ने मामले के पक्षकारों और अदालत में मौजूद अधिवक्ता शोएब आलम से सुझाव मांगे। बिहार में शराबबंदी लागू होने के कारण नियमित जमानत आवेदनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। मोटे तौर पर 25 फीसदी नियमित जमानत के आवेदन बिहार आबकारी अधिनियम के तहत आ रहे हैं। पटना हाईकोर्ट ने अपने हलफनामे में कहा है कि इससे नियमित जमानत याचिकाओं के निपटारे में देरी हुई है।
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