पंजाब में एक के बाद एक ‘बेअदबी’ मामलों को लेकर राजनीति गर्म हो गई है। पहले अमृतसर के श्री दरबार साहिब और फिर कपूरथला के गांव निजामपुर में गुरुद्वारा साहिब में बेअदबी की कोशिश किए जाने की बातें सामने आई हैं। दोनों ही मामलों में आरोपियों की हत्या किए जाने की बात सामने आई है। ऐसे में हर तरफ इस बात को लेकर सवाल हैं कि आखिर क्या है ये बेअदबी, जिसकी वजह से पंजाब में पिछले छह सालों से तनाव बना हुआ है।
क्या है ये बेअदबी, जिसकी आग आज तक सुलग रही है
सिख धर्म में बेअदबी के मामले तब से सामने आ रहे हैं, जब सिखों के पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन हुआ था। इसे सिखों के पांचवें गुरु- गुरु अर्जन देव जी की तरफ से संकलित किया गया था।
गुरु ग्रंथ साहिब के असल शब्दों के साथ छेड़छाड़ या इस पवित्र ग्रंथ को किसी तरह से नुकसान पहुंचाने की घटना को बेअदबी कहा जाता है।
क्यों सिखों के लिए है ये इतना खास?
इतिहास के पन्नो पर देखा जाए तो यह सामने आता है कि गुरु ग्रंथ साहिब के साथ ‘बेअदबी’ शुरुआत से ही बड़ा अपराध रहा है। सिखों के सातवें गुरु- गुरु हरीराय ने अपने बेटे राम राय का ही बहिष्कार कर दिया था, जो कि अपने पिता के उत्तराधिकारी बनने के दावेदार थे।
इसकी वजह यह थी कि रामराय ने मुगल शासक औरंगजेब को खुश करने के लिए गुरु ग्रंथ साहिब के कुछ वाक्यों से छेड़छाड़ कर उसके शब्द बदल दिए थे। सिखों के पवित्र ग्रंथ से छेड़छाड़ करने पर बहिष्कृत किए जाने का यह पहला मामला नहीं था। ऐसे और भी कई उदाहरण बाद में मिलते रहे है।
19वीं सदी में हुए थे सामुदायिक विवाद
एक लोकप्रिय इतिहासकार ने अपने एक अखबार में हिंदुओं और सिखों के बीच ‘बेअदबी’ को लेकर उठे तनाव का भी जिक्र किया है। उन्होंने 19वीं सदी की घटनाओं का जिक्र किया, जिसमें आर्य समाज के गुरुओं ने पंजाब में सार्वजनिक बैठक के दौरान गुरु ग्रंथ साहिब को सामान्य किताबों की तरह ही मेज पर रख दिया था।
पंजाब में ईसाई मिशनरियों और आर्य समाज की बढ़ती गतिविधियां भी सिखों की चिंता का विषय था। जिस वजह से ‘सिंह सभा आंदोलन’ की शुरुआत हुई थी। बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) का गठन किया गया था।
सिखों और निरंकारी संप्रदाय के बीच विवाद भी गुरु ग्रंथ साहिब पर हमलों को लेकर रही है। इसके अलावा डेरा सच्चा सौदा पर भी गुरु ग्रंथ साहिब के शब्दों से छेड़छाड़ करने का आरोप भी लग चुका है।
कांग्रेस से लेकर अकाली दल भी निशाने पर
1984 के दौर की कुछ घटनाओं में बताया जाता है कि इस दौरान सत्ता में रही कांग्रेस सिखों के गुस्से का शिकार बनी। हालांकि, पंजाब के फरीदकोट स्थित बुर्ज जवाहर सिंहवाला में 2015 में जब बेअदबी का मामला सामने आया, तब शिरोमणि अकाली दल की सरकार सत्ता में थी। इस घटना ने सिखों को गुस्से से भर दिया।
ताजा समय में यह मामला इकलौती घटना नहीं रही। जून 2015 में ही बुर्ज जवाहर सिंहवाला गांव से चार किमी दूर बंगारी गांव में लोगों को दीवारों पर इस पवित्र ग्रंथ के खिलाफ टिप्पणियां लिखी मिली थीं। मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच भी शुरू की गई थी।
फरीदकोट में इस मामले की जांच बादल सरकार ने बाद में सीबीआई को सौंपी, लेकिन मामले में कोई खास कामयाबी नहीं मिली। इसीलिए 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में इस मामले ने फिर से काफी जोर पकड़ा जिससे अकाली दल को काफी नुकसान हुआ। पार्टी को 117 विधानसभा सीटों में से 15 पर ही जीत मिली, जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की।
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