विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की कंपनियों को विशाल प्रतिमाएं बनाने में महारत हासिल है. उन्हें विशाल कांस्य प्रतिमाओं के निर्माण के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है.चीन की कंपनियां ढलाई के पारंपरिक तरीक़े के साथ आधुनिक तकनीक मिलाकर बड़े पैमाने पर मूर्तियां बना रही हैं. विशाल प्रतिमाएं बनाने के लिए उसके विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग ढाला जाता है. चीन में ढलाई के बड़े बड़े कारखाने हैं, जिसके चलते मूर्तियों के टुकड़ों को बहुत कम समय में ढालकर उनकी डिलिवरी कर पाना संभव है.
रामानुजाचार्य की ‘स्टैच्यू ऑफ़ इक्वैलिटी’ का डिज़ाइन भारत में ही तैयार किया गया, लेकिन इसे बनाने का ठेका चीन की एक कंपनी को सौंप दिया गया.
वहां की कंपनियां लंबे समय से विशाल प्रतिमाएं बना रही हैं. चीन में ‘स्प्रिंग टेंपल बुद्धा’ जैसी कई विशाल प्रतिमाएं इसके उदाहरण हैं. यही वजह है कि विशाल प्रतिमाओं के लिए हर कोई चीन की कंपनियों का ही रुख़ करते हैं.हालांकि रामानुजाचार्य की ‘स्टैच्यू ऑफ़ इक्वैलिटी’ का डिज़ाइन भारत में ही तैयार किया गया, लेकिन इसे बनाने का ठेका चीन की एक कंपनी को सौंप दिया गया. आंध्र प्रदेश सरकार ने भी विजयवाड़ा में आंबेडकर की एक विशाल प्रतिमा स्थापित करने के लिए चीन की कंपनियों से संपर्क किया है.
चीन में आधुनिक तकनीक का उपयोग करके बड़े पैमाने पर प्रतिमा के टुकड़ों को बड़े पैमाने ढालना आसान है.
वहीं सरदार पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ का डिज़ाइन प्रसिद्ध मूर्तिकार राम वी सुतार ने तैयार किया था. उस प्रतिमा की मुख्य ठेकेदार एलएंडटी कंपनी थी, जिसने चीन की एक कंपनी को मूर्ति ढालने का काम सौंप दिया था.इसका कारण यह है कि चीन में आधुनिक तकनीक का उपयोग करके बड़े पैमाने पर प्रतिमा के टुकड़ों को बड़े पैमाने ढालना आसान है. हालांकि ढलाई के काम में भारतीयों को उन्हें निर्देश देते रहना पड़ता है.
इसलिए जब कभी किसी विशाल प्रतिमा का ठेका किसी चीनी कंपनी को मिलता है, तो उन्हें निर्देशित करने के लिए यहां के मूर्तिकार चीन भेजे जाते हैं. इन मूर्तिकारों की देखरेख में चीन की कंपनियां मूर्तियों के हिस्सों को बनाती, ढोती और जोड़ती हैं.संत रामानुजाचार्य की हाल में स्थापित प्रतिमा के मामले में भी ऐसा ही हुआ.
सैकड़ों फ़ीट ऊंची प्रतिमाएं बनाने के लिए विशेष तकनीक और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है.
भारत में विभिन्न धातुओं से मूर्तियां बनाने की कला काफ़ी पुरानी है. यहां सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान बनी कांस्य प्रतिमाएं भी मिली हैं.भारत में धातु से बनी देवी-देवता की मूर्तियां बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं.सैकड़ों फ़ीट ऊंची प्रतिमाएं बनाने के लिए विशेष तकनीक और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है. भारत में बुनियादी ढांचे की भारी कमी है,यदि सरकार इसके निर्माण को प्रोत्साहित करें और ज़रूरी सुविधाएं प्रदान करें तो भारत में भी विशाल प्रतिमा बनायीं जा सकती है .
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