ऐसी कौन सी चीज थी जिसने शिक्षकों को पिछले दो सालों तक प्रेरित किया? उन्होनें कैसे इस महामारी का सामना किया, वे स्कूल न जा पाने की स्थिति में थे और अचानक आई ऑनलाइन की ज़रूरतों और सीखने और सिखाने की इस मिश्रित तरीके की आवश्यकता से कैसे जूझे? इस अप्रत्याशित स्थिति से तालमेल बैठाने के लिए शिक्षकों ने किन रणनीतियों का उपयोग किया? सबसे महत्वपूर्ण, ये सभी रणनीतियां और अभ्यास भविष्य में शिक्षकों की बेहतर मदद के संदर्भ में हमें क्या बताती हैं?
जब कोविड-19 के समीकरण से स्कूलों को हटा दिया गया था तब यह शिक्षकों को इस डिजिटल रूप में चलाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। बिना कक्षा वाले अभ्यास के साथ शिक्षक किस विषय पर सोचेंगे? अधिकारी और उनके सहकर्मी किस चीज पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे?
एक तरफ सरकारी आदेश , दूसरी तरफ चुनौती
जहां एक तरफ यह एक कड़ा आदेश था, वहीं शिक्षकों ने यह चुनौती स्वीकार की। वे सीखने और सिखाने की ऐसी रणनीतियों के साथ आए जिन्हें लेकर उन्हें लगता था कि इससे उनकी गुणवत्ता में सुधार हुआ है और एक शिक्षक के रूप में वे समृद्ध हुए हैं। छात्रों को सीखने में सहायता देने के लिए नए तरीकों को खोजने वाले शिक्षकों और जिला एवं प्रखण्ड-स्तर के अधिकारियों की इच्छा और कोशिशों को देखकर हम आश्चर्यचकित थे। अब जब वे स्कूल वापस लौट गए हैं, फिर भी शिक्षकों का कहना है कि वे इनमें से कुछ अभ्यासों को जारी रखना चाहते हैं। चूंकि स्कूल अब दोबारा से खुलने लगे हैं, नीति निर्माता सरकारी स्कूल के शिक्षकों के लिए एक सहायक और अधिक मज़बूत शिक्षक समुदाय के निर्माण के लिए ये छ: कदम उठा सकते हैं।
1. शिक्षकों की स्वायत्ता को बढ़ाया जाए
बहुत लंबे समय तक भारत के शिक्षक अतिरिक्त भार वाले पाठ्यक्रम, पहले से तय किताबें, और सेवा में दी जाने वाले एक ही आकार में निहित सभी सोच का अनुसरण करने वाली शिक्षक प्रशिक्षण स्वरूपों द्वारा सीमित हैं। हालांकि, ऐसा नहीं था कि इसमें चुनौतियां नहीं थी लेकिन फिर भी इस महामारी ने शिक्षकों को स्वायत्ता दी है जिससे कि वे विभिन्न तरीकों से अपने छात्रों तक पहुंच पाते हैं। शिक्षक कई सामग्री आधारित प्रारूपों के साथ सामने आए जिनमें बुकलेट, वर्कशीट, छोटे ऑडियो रिकॉर्डिंग शामिल थे और जिन्हें व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा जा सकता था और इसके लिए पाठ्यपुस्तकों और आमने-सामने बैठकर पाने वाली शिक्षण की जरूरत नहीं थी। लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद शिक्षकों ने समुदायों का दौरा करना शुरू कर दिया और मिलने वाले बच्चों के बीच पढ़ाई की सामग्री को बांटा।
जिन बच्चों के पास फोन और इंटरनेट की उपलब्धता थी वहां शिक्षकों ने ऑनलाइन कक्षाओं का आयोजन किया। छात्रों को अपनी भावनाओं को साझा करनेवाली और उसके बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करने वाली हमारी एक गतिविधि के दौरान हमने देखा कि शिक्षकों ने इसे छात्रों की जरूरत के संदर्भ में बदल दिया था। कुछ बच्चों ने चित्रकारी की, कुछ ने लिखा, कुछ ने ऑडियो रिकॉर्ड किया और कुछ बच्चों ने अपनी डायरियां टाइप कीं।हालांकि, शिक्षकों ने पढ़ाने के नए तरीके ढूंढ लिए हैं लेकिन वे अक्सर बिना किसी तैयारी के इसमें बदलाव कर देते हैं।
2. शिक्षकों को उनके अपने सीखने के लिए सुविधा देना
शिक्षकों को भौतिक कक्षाओं के लिए तैयार किए गए पाठों को बहुत ही तेजी से ऑनलाइन माध्यम के अनुसार बदलना पड़ गया था। इसे सफलता से करने के लिए एक अलग तरह के कौशल की जरूरत होती है और इसलिए शिक्षकों को अपने तकनीकी कौशल और वर्चुअल उपकरणों के बारे में ठीक से जानना होता है। हालांकि, जहां एक तरफ यह अनिवार्य नहीं था, फिर भी हमारे नेटवर्क के कई शिक्षकों ने डिजिटल कौशल और वर्चुअल उपकरणों के बारे में सीखने को लेकर हमारी सोच पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
उन्होनें अपनी तरफ से सक्रिय पहल करके अपने सहकर्मियों और छात्रों के साथ मिलकर सीखने के अभ्यास को सभी तक पहुंचाने के लिए आवश्यक रणनीति के अभ्यास के काम में मदद की पेशकेश की थी। चाहे वह ऑनलाइन मीटिंग के लिए लिंक से जुड़ना हो, ऑनलाइन क्लास लेना हो, वीडियो और ऑडियो की रिकॉर्डिंग करनी हो या फिर फॉर्म्स, शिक्षकों ने सीखने का जिम्मा हो उन्होंने सबकुछ अपने ऊपर ले लिया था।
3. अभ्यास के समुदायों का निर्माण करना
कई शिक्षकों ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे कोविड-19 का डर और उससे पैदा होने वाली अनिश्चितता ने उन्हें भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण स्थिति में ला दिया था। उन्होनें इससे उबरने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीतियों के बारे में भी बात की और एक दूसरे को सुझाव और समर्थन दिया।
अभ्यास के ये समुदाय प्रखण्ड और जिला स्तर के ऐसे अधिकारियों के लिए भी खुले थे जिन्होने विभिन्न जिलों में हो रही गतिविधियों के बारे में समझने के लिए अपने साथियों की तरफ रुख किया और सर्वश्रेष्ठ अभ्यासके बारे में बातचीत की। स्कूल और जिला स्तर पर अभ्यास के ऐसे समुदायों के निर्माण में राज्य सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। स्कूल की रोज की समयसारिणी में इन अभ्यासों के लिए जगह बनाने से सहकर्मियों का सहयोग बढ़ेगा और अधिकारियों और शिक्षकों को अकादमिक, सामाजिक और भावनात्मक समर्थन मिलेगा।
4. मिश्रित शिक्षा के लिए कौशल और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना
महामारी के दौरान शिक्षकों को इस बात का एहसास हुआ कि प्रति दिन पढ़ाने के अभ्यास में तकनीक विभिन्न रूपों में सहायक हो सकती है। उन्होंने पाया कि कक्षा के बाद अतिरिक्त सामग्री के रूप में छोटे-छोटे ऑडियो और वीडियो बनाकर छात्रों को भेजे जा सकते हैं। कुछ शिक्षकों ने अभिभावकों के लिए निजी वॉइस नोट भी रिकॉर्ड किए थे। इससे अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ बैठकर उनका काम पूरा करवाने और उस वीडियो को शिक्षकों को वापस भेजने के लिए प्रेरणा मिली।
मिश्रित व्यवस्था में चूंकि शिक्षक और छात्र दोनों ही कक्षा तक सीमित नहीं रह जाते हैं इसलिए इससे शिक्षक और छात्र दोनों को ही सीखने की प्रक्रिया के दौरान एक तरह के लचीलेपन का एहसास होता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक ने किसी विषय पर कई छोटे-छोटे वीडियो तैयार किए और इसे पूरे महीने तक बच्चों को भेजती रही। उसने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “चूंकि मैं अब 45 मिनट वाली समयसारिणी से नहीं बंधी थी इसलिए मैंने इस विषय पर उपलब्ध विभिन्न सामग्रियों के साथ प्रयोग करने की छूट ली। लेकिन मैं इस काम को बेहतर तरीके से करने के लिए आधिकारिक प्रशिक्षण लेना चाहती हूँ।”
5. विभेदित शिक्षण प्रणाली को सक्षम बनाने के लिए शिक्षकों की रिक्तियों को भरना
महामारी के दौरान शिक्षक लचीले हो गए और उन्होनें छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने शिक्षण रणनीतियों में बदलाव कर दिया। उदाहरण के लिए, कई छात्र ऐसे थे जिनके पास फोन की उपलब्धता सिर्फ शाम के समय ही होती थी और हमनें कर्नाटक और तमिलनाडु में देखा कि शिक्षक कक्षाओं का आयोजन शाम में करते थे। कुछ बच्चों के पास पुराने फोन थे और इसलिए शिक्षक उनके लिए पाठ और गृहकार्य को रिकॉर्ड करते थे। वे एक-एक बच्चे को फोन करके उसके निजी विकास की जांच करते थे। पिछड़ रहे बच्चों को अलग से समय देकर पढ़ाया जाता था।
अधिक शिक्षकों की नियुक्ति करके और शिक्षक-छात्र के अनुपात को बेहतर करके सरकार शिक्षकों पर बिना किसी अतिरिक्त बोझ के इस तरह की गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकती है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि विशेष रूप से कमजोर और हाशिये के समुदायों के छात्रों पर अधिक ध्यान दिया जाए। इसमें सीखने के परिणामों को बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षक और छात्र दोनों की प्रेरणा में सुधार लाने की संभावना भी है।
6. शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना
महामारी ने दुनिया भर में शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रकाश डालने का काम किया है। शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर आयोजित हमारे सत्रों को पहले की तुलना में ढाई गुना अधिक लोगों ने सुना था। पहली बार व्यवस्थित ढंग से शिक्षकों ने इन सत्रों में शामिल होकर अपने अनुभव साझा किए थे। कई शिक्षक समुदायों और छात्रों के घरों के दौरे पर गए थे जिससे उन्हें अपने छात्रों की पृष्ठभूमि को बेहतर ढंग से समझने का अवसर मिला।
हमारी शिक्षण प्रणाली को इन लाभों का फायदा उठाने और इन्हें लंबे समय तक टिकाऊ बनाने के लिए शिक्षकों का समर्थन करने की आवश्यकता है। बच्चों को स्कूल वापस लाना, सीखने की प्रणाली में आई असमानता को दूर करना और उनकी सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना हमारी व्यवस्था और खास कर शिक्षकों के लिए एक मुश्किल और लंबी अवधि वाला काम है। ऐसा करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने में लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा।
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