17 मई 2019 को डेविड बेल अपना ट्रक लेकर अमेरिका के जेफरसन सिटी से गुजर रहे थे। उनके मोबाइल में अचानक एक बीप के साथ इमरजेंसी अलर्ट का मैसेज मिला। उसमें लिखा था कि एक भीषण चक्रवाती तूफान शहर तक पहुंचने ही वाला है।
इमरजेंसी मैसेज देखते ही डेविड ने अपना ट्रक खड़ा किया और जमीन पर लेट गए। अगले कुछ सेकेंड में ही भीषण आंधी चलने लगी और बिजली चमकने लगी। ट्रक का पिछला हिस्सा तेज झोंके में उड़ गया। आगे केबिन का शीशा टूट गया। डेविड ने बाद में बताया कि अगर इमरजेंसी अलर्ट नहीं आया होता, तो शायद उनकी जान नहीं बचती।
अमेरिका में ये इमरजेंसी अलर्ट का सिस्टम 2012 में लॉन्च हुआ था। तब से दर्जनों मौकों पर इसका इस्तेमाल किया गया है। अब भारत सरकार भी एक ऐसा ही सिस्टम तैयार करने के लिए ट्रायल कर रही है। 14-15 सितंबर को करोड़ों मोबाइल पर आया ‘इमरजेंसी अलर्ट’ इसी ट्रायल का एक हिस्सा था।
भारत में यूजर्स के फोन पर क्या मैसेज भेजा जा रहा?
भारत के मोबाइल फोन यूजर्स के पास दूरसंचार विभाग रैंडम टेस्टिंग मैसेज भेज रहा है। तेज बीप की आवाज के साथ आने वाले मैसेज में मोबाइल के स्क्रीन पर ‘Emergency Alert: Severe’ लिखा होता है।इसके साथ ही यूजर्स को ये मैसेज इग्नोर करने के लिए भी कहा जाता है। इस मैसेज में साफ-साफ लिखा होता है कि इस मैसेज को लेकर आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है।
ये मैसेज नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के पैन-इंडिया इमरजेंसी अलर्ट सिस्टम का हिस्सा है। अभी ये मैसेज सिर्फ टेस्टिंग के लिए भेजे जा रहे हैं।इस तरह के मैसेज को भेजने का मुख्य उद्देश्य लोगों की सुरक्षा को बढ़ाना और समय रहते लोगों को आपातकालीन अलर्ट भेजना है। अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही भाषा में मोबाइल पर ये मैसेज भेजे जाते हैं।
भारत में इमरजेंसी अलर्ट सिस्टम की जरूरत क्या है?
ग्लोबल रिस्क इंडेक्स 2022 में प्राकृतिक आपदा के लिहाज से भारत को दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा खतरे वाला देश बताया गया है। इस रिपोर्ट में फिलीपींस पहले स्थान पर है।
राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के मुताबिक देश के 11 बड़े शहर भूकंप के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। इन शहरों में करोड़ों लोग रहते हैं।
मौसम विभाग के मुताबिक 2022 में पूरे देश में एक्सट्रीम वेदर की वजह से 2,770 लोगों की मौत हो गई। उनमें से 1,580 लोगों की मौत कथित तौर पर बिजली गिरने और तूफान की चपेट में आने से हुई है। जबकि एक साल में 1,050 लोगों की मौत बाढ़ और भारी बारिश के कारण हुई है।
यही वजह है कि भारत सरकार की नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है, जिससे सही समय पर लोगों तक आपदा के संबंध में जानकारी और जरूरी सूचना पहुंच सके।
इसे ऐसे समझें कि कोविड-19 के समय अगर ये सिस्टम काम कर रहा होता तो सरकार आसानी से लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाती। इससे सवा सौ करोड़ देशवासियों तक सावधानियां बरतने, जांच करवाने और वैक्सीन की जानकारी पहुंचाने में आसानी होती। वायरलेस इमरजेंसी अलर्ट सिस्टम का इस्तेमाल अमेरिका बड़े पैमाने पर करता है।
टीवी, रेडियो पर जारी होने वाले इमरजेंसी अलर्ट से ये वायरलेस मैसेजिंग कैसे अलग?
किसी आपदा के दौरान लोगों को अलर्ट करने के लिए अब तक टीवी, रेडियो और दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके अलावा सरकारी कर्मचारी स्थानीय स्तर पर अनाउंस करके लोगों को अलर्ट करते हैं।
रात के समय जब लोग सो रहे होते हैं, तब टीवी, रेडियो के जरिए भूकंप या किसी दूसरे इमरजेंसी को लेकर लोगों को अलर्ट करना मुश्किल है।
आज के समय में करीब 120 करोड़ भारतीय मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं। रात के समय में भी बीप की तेज आवाज के साथ अलर्ट करके लोगों की जान बचाई जा सकती है। इस सिस्टम की खास बात यह है कि ये स्मार्टफोन के साथ-साथ सामान्य कीपैड फोन में भी काम करता है।
वायरलेस अलर्ट के जरिए लोगों को ये 4 तरह के मैसेज भेजे जा सकते हैं…
1. राष्ट्रीय स्तर पर किसी राष्ट्रीय आपदा की स्थिति में पूरे देश में सरकार या NDMA इस तरह के अलर्ट मैसेज भेजेगी।
2. आम लोगों के जीवन को कोई खतरा देखते हुए क्षेत्रीय प्रशासन अलर्ट जारी कर सकता है।
3. बच्चों के अपहरण या दूसरे अपराध को लेकर लोगों को अलर्ट करने के लिए भी इस तरह के मैसेज भेजे जा सकते हैं।
4. किन्हीं वजहों से जानमाल की हानि को रोकने के लिए अलर्ट मैसेज भेजे जाते हैं।
इस अलर्ट सिस्टम से जुड़ी कुछ फुटकर, लेकिन काम की बातें…
- फ्री ऑफ कॉस्टः किसी इमरजेंसी की स्थिति में अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों की सरकार जनता को फ्री में अलर्ट मैसेज भेजती है। भारत में भी ये सर्विस फ्री ही रहने की संभावना है।
- लोकेशन ट्रेसिंगः वायरलेस इमरजेंसी अलर्ट एक्टिव होने के बावजूद यूजर्स की लोकेशन ट्रेस नहीं की जाती। अलग-अलग जोन के हिसाब से नंबर बंटे होते हैं।
- सब्सक्राइबः इस सर्विस के लिए लोगों को कहीं रजिस्टर करने या सब्सक्राइब करने की जरूरत नहीं होती है। सरकार अलर्ट मैसेज भेजकर पूछती है कि क्या आप किसी इमरजेंसी में इस तरह के मैसेज चाहते हैं। आसानी से ओके करके आप अपनी सहमति दे सकते हैं।
- अनसब्सक्राइबः अगर आप एंड्रॉयड मोबाइल यूजर हैं तो सेटिंग में जाकर इस तरह के अलर्ट मैसेज को डिसेबल किया जा सकता है।
जब अमेरिका में इमरजेंसी अलर्ट के जरिए फेक डरावने मैसेज भेजे गए
वायरलेस इमरजेंसी अलर्ट भेजने के लिए एक सॉफ्टवेयर के जरिए देश भर के करोड़ों लोगों के फोन जुड़े होते हैं। यही वजह है कि हैकर्स साइबर अटैक कर सॉफ्टवेयर हैक करने की कोशिश करते हैं। एक बार हैकर्स को इसमें सफलता मिल जाती है तो वो आम लोगों के मोबाइल पर फेक मैसेज भेजकर पैनिक की स्थिति पैदा कर सकते हैं।
यही वजह है कि अमेरिका में इमरजेंसी मैसेज भेजने वाली सरकारी एजेंसी ने अपने कर्मचारियों को पासवर्ड सिक्योर रखने और समय-समय पर चेंज करने की सख्त हिदायत दे रखी है।
फरवरी 2013 में अमेरिका में एक ऐसा ही वाक्या हुआ। अमेरिका के मोंटाना और मिशिगन जैसे शहरों में इमरजेंसी मैसेज भेजकर बताया गया कि जांबी वायरस के संक्रमण से मरने वाले लोगों के शव कब्र से निकलकर जिंदा लोगों पर हमले कर रहे हैं। इससे आम लोगों में पैनिक की स्थिति बनी। बाद में सरकार ने सफाई देकर कहा कि हैकर्स ने सिस्टम हैक कर इस तरह के मैसेज भेजे थे।
Source (Bhaskar)
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