5 दिसंबर को 1942 लोगों पर किए एक सर्वेक्षण में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. सर्वेक्षण में शामिल आधे उत्तरदाताओं के करीब, 48.2 प्रतिशत ने महसूस किया कि सोशल मीडिया ने समुदायों के बीच की खाई को काफी हद तक बढ़ा दिया है. लगभग 23 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि सोशल मीडिया ने कुछ हद तक खाई को बढ़ा दिया है. वास्तव में 71 प्रतिशत से अधिक भारतीय सोशल मीडिया को दोनों समुदायों के बीच हाल के संघर्ष के लिए जिम्मेदार मानते हैं.
सोशल मीडिया प्लेटफार्म की भूमिका
इसके विपरीत 28.6 प्रतिशत की राय थी कि इस घटना में सोशल मीडिया की कोई भूमिका नहीं है. अगर आप राजनीतिक विभाजन को देखें, तो एनडीए के 40.7 प्रतिशत मतदाताओं ने सोशल मीडिया को काफी हद तक जिम्मेदार माना, जबकि 53.6 प्रतिशत विपक्षी मतदाताओं ने ऐसा ही महसूस किया.
भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गलत सूचना, फर्जी खबरें, अपमानजनक और मानहानिकारक सामग्री फैलाने और हिंसा को सीधे भड़काने में उनकी कथित भूमिका के लिए देर से जांच के दायरे में आ गए हैं. तनाव और हिंसा की आशंका वाले क्षेत्रों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुंच पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगाना राज्य और स्थानीय स्तर के प्रशासन के लिए नियमित हो गया है.
भारत में आधी से ज़्यादा आबादी इंटरनेट पर
एक संसदीय समिति ने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के लिए सिफारिशों का एक सेट प्रस्तुत किया है. एक प्रमुख सिफारिश उन्हें प्रकाशकों के रूप में मानने की है जबकि दूसरी उनकी गतिविधियों को विनियमित करने के लिए भारतीय प्रेस परिषद की तर्ज पर एक नियामक निकाय बनाने की है.
स्टैटिस्टा के मुताबिक भारत में दो करोड़ 20 लाख से ज्यादा ट्विटर यूजर्स हैं. भारत की आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट की पहुंच है और 30 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं. 20 करोड़ से ज्यादा लोग वॉट्सऐप इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी अन्य देश से ज्यादा है. कई अन्य देशों की तरह भारत ने भी हाल ही में फर्जी खबरों को रोकने और सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री पर नियंत्रण करने के लिए नए कानून लागू किए हैं.
पहली कड़ी यहाँ पढ़े : दुआ में भी साजिश देखने वाली सोच, क्या समाज को ही फूंक रही है !
तीसरी कड़ी में पढ़िए : क्या इंसान के व्यवहार पर असर डाल रहे सोशल मीडिया चैनल ?
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