मध्य प्रदेश के उज्जैन से आई कुछ तस्वीरों ने इंसानियत के मुंह पर ऐसी कालिख पोती है कि अगर इंसानियत भी सचमुच की कोई इंसान होती, तो कब की शर्म से डूब मरी होती. महज 12 साल की एक छोटी सी बच्ची अर्धनग्न हालत में उज्जैन की सड़कों पर भटक रही थी, लोगों से मदद मांग रही थी, और लोग हैं कि बच्ची की मदद करने की जगह बस तमाशा देख रहे थे. कुछ मुंह फेर रहे थे और कुछ मदद के नाम पर उसे चंद रुपये थमा कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे थे.
लेकिन सच्चाई ये है कि उस बच्ची की हालत बेहद खराब थी. उसके निजी अंगों से लगातार खून बह रहा था. वो अपने पास मौजूद कपड़े के एक छोटे से टुकड़े से बार-बार अपने तन को ढंकने की कोशिश कर रही थी. दरअसल, उस बच्ची की ये हालत अपने-आप में उसके साथ हुई किसी अनहोनी की कहानी बयां कर रही थी. ये सब सीसीटीवी कैमरे में कैद हुआ. तस्वीरें थीं सोमवार, 25 सितंबर की. वक्त था सुबह के करीब पौने छह बजे. सुबह सवेरे वो बच्ची यूं ही शहर के सांवराखेड़ी सिंहस्थ बायपास की कॉलोनियों में करीब ढाई घंटे तक भटकती रही, जब तक कि इस बच्ची को दंडी सेवा आश्रम के गुरुकुल संचालक आचार्य राहुल शर्मा ने नहीं देखा.
आचार्य शर्मा का कहना है कि जब पहली बार बच्ची उनके सामने से गुजरी तो वो अवाक रह गए, बच्ची के पांव पूरी तरह से बिना कपडों के थे और वो बार-बार एक छोटे से कपड़े से खुद को ढंकने की कोशिश कर रही थी. ऐसे में उन्होंने बच्ची को सबसे पहले तो तन ढंकने के लिए कपड़ा दिया और फिर आश्रम ले जाकर नाश्ता करवाया. चूंकि बार-बार पूछने के बाद भी बच्ची अपने साथ हुई किसी वारदात के बारे में साफ-साफ नहीं बता पा रही थी, तो उन्होंने महाकाल थाने में इसकी खबर दी और बच्ची को पुलिसवालों के हवाले कर दिया.
पुलिसवालों ने बच्ची से पूछताछ करने के साथ-साथ इस सिलसिले में रिपोर्ट दर्ज की और मामले की छानबीन शुरू कर दी. शुरुआती तफ्तीश से ही ये साफ हो चुका था कि बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसी कोई जघन्य वारदात हुई है. ऐसी वारदात, जिसमें ना सिर्फ गुमनाम दरिंदों ने बच्ची को बुरी तरह से नोंचा था, बल्कि उसके निजी अंगो भी जख्मी कर दिया था चूंकि बच्ची की हालत बेहद खराब थी, पुलिस ने बच्ची को ना सिर्फ फौरन मेडिकल जांच और इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया, बल्कि उसकी हालत को देखते हुए उसे बेहतर इलाज के लिए इंदौर भिजवाया. जहां डॉक्टरों ने उसका ऑपरेशन किया और पुलिसवालों ने उसके लिए ब्लड भी डोनेट किया.
लेकिन ये तो रही बच्ची को राहत पहुंचाने वाली बात. मामले की तफ्तीश के लिए पुलिस ने सबसे पहले बच्ची से एक काउंसिलर के जरिए बातचीत शुरू की, ताकि वो बिना डरे अपने साथ हुई दरिंदगी की कहानी सुना सके. इधर धीरे-धीरे बच्ची खुलने लगी और उधर पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे के सहारे बच्ची के गुनहगारों की तलाश शुरू कर दी.
वारदात वाले रोज यानी सोमवार को बच्ची पूरे शहर में करीब आठ किलोमीटर तक भटकती रही थी. ऐसे में पुलिस ने बच्ची के भटकने के पूरे रूट को ट्रैक करना शुरू किया. और इसी कड़ी में पुलिस को इस भयानक वारदात के सिलसिले में तब पहला क्लू मिला, जब बच्ची सुबह करीब 4 से 5 बजे के बीच शहर के जीवनखेडी इलाके में एक ऑटो रिक्शा में बैठती हुई नजर आई. पुलिस ने फौरन इस ऑटो रिक्शा डाइवर की पहचान की और उसे हिरासत में लिया. उसकी ऑटो रिक्शा की जांच करने पर पुलिस को उसमें खून के धब्बे भी नजर आए, जो इस वारदात में ऑटो वाले के शामिल होने का एक बड़ा सबूत था.
ये ऑटो 38 साल के राजेश का था. पुलिस ने जब राजेश से पूछताछ शुरू की, तो उसने बताया कि बच्ची तो उसे लहूलुहान मिली थी और उसने तो उसकी मदद करने की कोशिश की थी. लेकिन जब पुलिस ने उससे पूछा कि अगर इरादा मदद का ही था तो उसने पुलिस को फोन क्यों नहीं किया या फिर बच्ची को लेकर किसी अस्पताल में क्यों नहीं गया, तो उसके पास कोई जवाब नहीं था, वो बातें बनाने लगा. और तब पुलिस ने इस दरिंदगी के सिलसिले में राजेश की सूरत में पहली गिरफ्तार की.
पुलिस ने फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स की मदद से ऑटो की जांच करवाई और सबूत इकट्ठा किए. इसी कड़ी में जब पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाई, तो पुलिस को वारदात में एक और ऑटो रिक्शा के इस्तेमाल किए जाने का पता चला. पुलिस ने उस ऑटो रिक्शा की भी पहचान और एक-एक कर तीन और लोगों को हिरासत में लिया. इन तीन लोगों में एक और ऑटो रिक्शा ड्राइवर था.
अपने साथ हुई ज्यादती के बाद बच्ची इतनी घबराई हुई थी कि वो खुल कर कुछ बता भी नहीं पा रही थी. ऊपर से उसकी भाषा भी ज्यादातर लोगों के समझ में नहीं आ रही थी. ऐसे में लोगों ने अनुमान लगा लिया शायद बच्ची यूपी के प्रयागराज या फिर आस-पास के इलाके से है. लेकिन जब जांच हुई तो पता चला कि बच्ची प्रयागराज की नहीं बल्कि मध्य पदेश के ही सतना की है. सतना के जैतवारा पुलिस स्टेशन में बच्ची के दादा ने वारदात से एक रोज पहले यानी 24 सितंबर को उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी.
पुलिस सूत्रों की मानें तो बच्ची की मां बचपन में ही उसे छोड़ कर चली गई थी, जबकि बच्ची के पिता की दिमागी हालत ठीक नहीं है. ऐसे में बच्ची अपने दादा और बड़े भाई के साथ रहती है. बच्ची ट्रेन से उज्जैन पहुंची और 25 सितंबर को सुबह करीब 3 बच्चे रेलवे स्टेशन से बाहर निकली, जिसके बाद उसने ऑटो वालों से बात की और मौका देख कर ऑटो वालों ने बच्ची को अगवा कर लिया. उसे सुबह सवा तीन बजे से पांच बजे तक शहर के अलग-अलग ठिकानों में घुमाते रहे और उसके साथ ज्यादती करते रहे.
वैसे उज्जैन में कुछ लोगों ने जहां आगे बढ़ कर पीड़ित बच्ची की मदद की, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद ही ज्यादा रही, जिन्होंने सड़क पर बिना कपड़ों के बच्ची को लहूलुहान भटकता देख कर भी मुंह फेर लिया. पुलिस ने सीसीटीवी के जरिए उस पूरे रूट की स्कैनिंग की, अपने साथ हुए दुष्कर्म के बाद बच्ची जिन रास्तों से होकर गुजरी थी. तकरीबन 8 किलोमीटर के इस रास्ते बच्ची ने पूरी की पूरी दो रिहायशी कॉलोनियों को पार किया, दो ढाबों और टोल नाके से होकर गुजरी, लेकिन हद देखिए कि इतने लोगों की आंखों के सामने से गुजरने के बावजूद हर किसी ने बच्ची को देख कर भी अनदेखा कर दिया, उसकी मदद नहीं की.
सोचिए अगर पहले ही शहर के लोगों ने सडकों पर भटकती एक ऐसी लाचार और बेबस बच्ची को देख कर उसकी मदद के लिए हाथ बढाया होता, तो बच्ची को कितनी जल्दी इस बेबसी, दर्द और तकलीफ से राहत मिल सकती थी. गुनहगार भी शायद और पहले पकड़े जाते. लेकिन अक्सर बलात्कारियों के लिए फांसी की मांग करनेवाले हमारे समाज ने एक पीड़ित बच्ची को देख कर भी जिस तरह से अनदेखा कर दिया, वो समाज को दोहरेपन को बेनकाब करने के लिए काफी है.
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