असल में यह भाजपा का 2024 के संसदीय चुनाव की प्रचार-यात्रा है
13 नवम्बर 2023 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 15 नवम्बर को बिरसा मुंडा के गाँव उलीहातु (खूंटी) से विकसित भारत संकल्प यात्रा शुरु करने वाले हैं। कहने को यह सरकारी उपलब्धियों को बताने का अभियान है । असल में यह भाजपा का 2024 के संसदीय चुनाव की प्रचार-यात्रा है । कार्यक्रम को भाजपाई रंग देने के लिए सरकारी अधिकारियों को रथ प्रभारी का नाम दिया गया था । जन दबाव के बाद उन्हें नोडल पदाधिकारी का नाम वापस दिया गया। यह यात्रा और कुछ नहीं, मोदी की छवि चमकाने के लिए पैसे की बरबादी है, सरकारी कामकाज में बाधा है। मोदी सरकार तो प्रचार का विश्व कीर्तिमान बनाती ही रहती है। ये बातें लोकतंत्र बचाओ अभियान 2024 (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) के द्वार एक प्रेस-विज्ञप्ति के माध्यम से कही गई हैं।
बिरसा आदिवासियों के राष्ट्रीय नायक
आगे प्रेस-विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रधानमंत्री द्वारा यह यात्रा जान-बूझकर झारखंड से, वह भी बिरसा मुंडा की जन्मस्थली से शुरू की जा रही है। बिरसा आदिवासियों के राष्ट्रीय नायक हैं। इस महानायक को दिखावटी सम्मान देकर वे आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित करने की फिर से नयी चाल चल रहे हैं । इस यात्रा के जरिये वे झारखंड में फिर से ज्यादा से ज्यादा संसदीय सीटों को जीतकर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं।
मोदीआदिवासियों की स्वतंत्र पहचान मान्य ही नहीं करते
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को उलीहातु से इस यात्रा के शुभारंभ का नैतिक हक ही नहीं है। वे आदिवासियों की स्वतंत्र पहचान मान्य ही नहीं करते हैं । उन्हें वनवासी नाम में समेट देते हैं। वे स्वतंत्र आदिवासी धर्म और संस्कृति को सनातन धर्म में शामिल कहकर मिटा देना चाहते हैं। वे सरना और ईसाई आदिवासी का झगड़ा लगाकर आदिवासियों की एकता और शक्ति घटाकर जाति व्यवस्था आधारित ब्राह्मणवाद का दबदबा बनाना चाहते हैं। मोदी सरकार ने मणिपुर में आदिवासियों पर राज्य समर्थित नरसंहार होने दिया। झारखंड में भाजपा के नेता मणिपुर को उदाहरण बनाकर समुदाय व धर्म-आधारित नफरत फैलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद भी वे “जनजाति गौरव दिवस” के नाम पर आदिवासियों को जुमला देने की कोशिश कर रहे हैं।
मोदी सरकार को तो भूमि अधिग्रहण 2013 का आंशिक अच्छा कानून भी मंजूर नहीं था
झारखंड की आदिवासी मूलवासी जनता जल, जंगल, खनिज , जमीन पर हक की लड़ाई लड़ रही है और मोदी सरकार इन हकों को मिटा रही है। मोदी सरकार को तो भूमि अधिग्रहण 2013 का आंशिक अच्छा कानून भी मंजूर नहीं था। उसे खत्म करने के लिए मनमाना भूमि अधिग्रहण का अध्यादेश बार बार व्यापक जनवविरोध के बावजूद लाया था। वन संरक्षण कानून में संशोधन कर वन अधिकार कानून के तहत मिले और मिलनेवाले वनभूमि और संसाधनों पर ग्रामसभा के अधिकारों को छीनकर पूंजीपतियों को वन सौंपने का फैसला मोदी सरकार ने लिया है।
गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे तो पॉंचवीं अनुसूची और CNT-SPT कानून के खात्मे का संकल्प जाहिर करते रहे हैं
भूमि स्वामित्व कार्ड योजना, जिसका पायलट खूंटी में ही किया गया, के जरिये गाँव की सार्वजनिक भूमि को ग्रामीणों के नियंत्रण से छीनने की एवं CNT-SPT कानून और खूंटकट्टी व्यवस्था को खतम करने साजिश रची गयी है। नरेन्द्र मोदी के प्रिय गौतम अडाणी के अनुचर गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे तो पॉंचवीं अनुसूची और CNT-SPT कानून के खात्मे का संकल्प जाहिर करते रहे हैं। खूंटी में 2017-18 में भाजपा की डबल इंजन सरकार ने पत्थलगड़ी करनेवाले हजारों आदिवासियों को देशद्रोही घोषित कर उन पर दमन ढाहा था , उन्हें जेल में डाला था। भाजपा की डबल इंजन सरकार ने CNT-SPT कानून के संशोधन का विरोध करने वालों पर भी दमन किया था। 2019 के खूंटी लोकसभा चुनाव में जनता के अनुसार तो भाजपा की जीत तो वोट गणना में गड़बड़ी कर के हुई थी।
अगर थोड़ी भी शर्म बची है, तो जनता के सामने न आयें
पिछले नौ सालों में मोदी ने विकसित झारखंड या विकसित भारत बनाने की जगह भारत और खासकर झारखंड को विनाश की ओर धकेला है । गरीब, वंचितों, मजदूर और किसानों के अधिकारों को कमजोर किया गया है। जीवन-रेखा समान कल्याणकारी योजनाओं जैसे मनरेगा, पेंशन, आँगनवाड़ी आदि के बजट में व्यापक कटौती की गयी है। विकास पूंजीपतियों और उसमें भी सबसे ज्यादा अंबानी – अडानी की दौलत में हुआ है । भाजपा की सम्पत्ति में व्यापक बढ़ौतरी हुई है । दूसरी ओर ग्रामीण मजदूरों के मजदूरी दर में नौ सालों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है व गैर बराबरी और बढ़ी है । साथ ही, सामाजिक-धार्मिक ताने-बाने को छिन-भिन्न किया।
‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ को शुरू करने से पहले ‘लोकतंत्र बचाओ 2024’ अभियान प्रधान मंत्री मोदी को नौ सालों के नौ जन विरोधी कार्यों को याद दिलाना चाहता है, जिनका झारखंड के लोगों पर सीधा कुप्रभाव पड़ा है। अगर थोड़ी भी शर्म बची है, तो जनता के सामने न आयें।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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