21 वीं सदी में तेजी से दौड़ता हुआ आज पुरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. लेकिन दुसरी तरफ देश के कई कोने आज भी विकास से कोसो दुर मूलभूत सुविधाओं के अभाव में विकास की आजादी की राह तक रहे हैं. उन्हीं में से एक गांव है सिमडेगा जिला के कोलेबिरा प्रखंड स्थित रैसिया पंचायत में जहां विकास का दुर दुर तक नाम नहीं है. ग्रामीण विकास से दुर बदहाली की आंसु बहा रहे हैं. जिसे पोछने की जहमत आजतक किसी ने नहीं उठाई.
मूलभूत सुविधाओं से कोसो दुर है सिमडेगा का पंडराटोली गांव
आजादी के 75 वर्ष बाद भी नहीं पंहुची बिजली. गांव के नदी में नहीं है पुल. बरसात में गांव बन जाता है टापू. बांस का पुल बना नदी पार करते हैं ग्रामीण. बीमार होने पर खटिया बनता है इनका एंबुलेंस. हम बात कर रहे हैं सिमडेगा के कोलेबिरा प्रखंड के रैसिया पंचायत का पंडराटोली गांव की. जो देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी आज अपने विकास के आजादी की बाट जोह रहा है. गांव में आज तक नहीं पंहुची है बिजली. ढिबरी युग में जीवन बिता रहे हैं लोग. बिजली नहीं रहने से गांव में घुस जाते हैं हाथी. बच्चों की पढाई बिन बिजली होने लगी है बाधित. इन ग्रामीणों का दर्द यहीं खत्म नहीं होता इस गांव में पानी की भी है असुविधा.
15 घर के गांव में है एक चापाकल. जो चंद बाल्टी पानी देने के बाद ड्राई हो जाता है. इसके बाद पानी आवश्यकता पुरी करने के लिए एक मात्र कुंआ है. लेकिन इस बार की भीषण गर्मी के कारण गांव का ये कुंआ भी पहले आओ पहले पाओ वाले तर्ज पर पानी दे रहा है. मतलब तलहटी तक चले गए इस कुंआ का जल स्तर चंद बाल्टी पानी निकालने के बाद सुख जाती है और फिर रात भर पानी थोडी थोडी इक्कठा होती है. अहले सुबह जो कुंआ तक आया पानी उसका. उसके बाद फिर पानी के लिए घंटों इंतजार. आज पुरा गांव एक एक बुंद पानी के लिए सफर कर रहा है. ग्रामीणों की समस्या का दर्द यहीं खत्म नहीं होती.
प्रखंड मुख्यालय तक जाने के रास्ते पडने वाली नदी में पुलिया भी नहीं
गांव से प्रखंड मुख्यालय तक जाने के रास्ते पडने वाली नदी में पुलिया भी नहीं है. जिससे ग्रामीणों को काफी परेशानी होती है. ग्रामीण इस नदी पर बांस के सहारे एक चचरी पुल बनाए हैं. जो नदी में पानी रहने पर पैदल पार करने में सहायक होती है. गांव में जब कोई बीमार पड जाता है तो गांव वाले मरीज को कंधे पर या खटिया पर उठाकर इस नदी को पार करते हैं तब गाड़ी की सुविधा मिलती है. गांव से नदी तक लगभग ढेड़ किलोमीटर तक पैदल सफर करनी पडती है.
अगर तब तक मरीज जीवीत रहा तो ठीक नहीं थो भगवान हीं उसका सहारा है.बरसात में गांव के बच्चे नदी पार कर स्कुल नहीं जा पाते हैं. चुकीं बरसात में यह नदी उफान पर होती है. जिसमें बहने का खतरा बना रहता है. ग्रामीणों ने बताया कि बरसात में नदी पार करते गांव के कई लोग अपने प्राण न्योछावर कर चुके हैं. उसके बाद से बरसात में गांव की मांएं बच्चों को स्कुल नहीं जाने देती है. गांव के सुदर्शन सिंह ने बताया कि नदी की परेशानी के कारण गांव के कई बच्चे पढाई छोड दिए हैं. गांव के कई बच्चे अनपढ हैं.
हर दिन कष्ट भरी जिन्दगी बिता रहे हैं
गांव वाले हर दिन कष्ट भरी जिन्दगी बिता रहे हैं. ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को लिखित आवेदन देकर गांव में पुल, बिजली और पानी के सुविधा की मांग की लेकिन आज तक किसी ने इनकी नहीं सुनी. ग्रामीण अब सरकार से गांव पर नजरे इनायत करने की गुहार लगा रहे हैं. गांव की सावित्री देवी ने कहा कि सिमडेगा के प्रतिनिधि और प्रशासन को बार बार दुख दुर करने को कहे लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी. उन्होने सुबे के मुखिया हेमंत सोरेन से गुहार लगाई है कि उनके गांव में बिजली पानी और पुल की सुविधा दे दें. जिससे वे भी विकास की आजादी पर ताली बजा सकें.
आज भले पुरा देश आजादी के अमृत महोत्सव मनाते हुए विकासशील देश के दंभ भर रहा है. लेकिन इन गाँव वालों के लिए आजादी महोत्सव तो तब होगी जब गांव तक मूलभूत सुविधा पंहुचेगी. अब देखना होगा कि सरकार इनके कष्ट भरे गुहार कब तक सुनती है और ये ग्रामीण कब तक विकास की आजादी देख और उसका उपभोग कर सकते हैं.
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