एक तरफ जहां झारखंड के सरकारी प्रारंभिक स्कूलों को मिड डे मील योजना के संचालन के लिए राशि अब तक सरकार की ओर से मुहैया नहीं कराई गई है, तो वहीं दूसरी तरफ मिड डे मील बनाने वाली रसोइयों को पिछले 5 महीने से वेतन नहीं मिल पाया है. अपनी साड़ी के पल्लू से आंखों के आंसू पोछती फुलमनी देवी का कहना है कि वो पिछले 15 साल से नोनिहालों के लिए मिड डे मील के तहत खाना बना रही है. उम्मीद लगी रहती है कि अब सरकार की तरफ से वेतन मिलेगा. भले ही सरकार की तरफ से राशन के लिए पैसा नहीं मिलता हो लेकिन इस बात का एहसास हम बच्चों को नहीं होने देते और उधार लेकर भी स्कूल आए इन बच्चों का पेट भरते हैं.
स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों को मिड डे मील बनाकर खिलाने वाली महिला रसोइयों को महीनों से मानदेय नहीं मिला है. इस वजह से उनके परिवार के सामने आर्थिक संकट गहरा गया है. इनका कहना है कि उधारी लाकर बच्चों का पेट भर रहे हैं. कई बार स्कूल की प्रभारी से पैसे लेकर बच्चों के लिए खाना बनाते हैं. सरकार हमें समय पर वेतन और राशन के लिए राशी का भुगतान करें.
पिछले पांच महीने से नहीं दी गई वेतन
रसोइया आरती का कहना है कि हर महीने 2 हजार की राशी हमें वेतन के तौर पर दी जाती है लेकिन ये भी पिछले पांच महीने से नहीं दी गई है. ऐसी स्थिति में घर पर बच्चों का पेट पालना बहुत मुश्किल हो जाता है. गर्मी में अमूमन बच्चों में उल्टी, लू की चपेट में आना इस तरह की समस्या बनी रहती है. सरकार अगर हमें समय पर वेतन का भुगतान करें तो हमारी कई समस्याएं दूर हो जाएंगी.
रांची में जहां अप्रैल महीने में भी उधार के समान से ही मिड डे मील बनाया गया था वहीं मई के महीने में भी उधार पर ही राशन खरीद कर मिड डे मील का संचालन हो रहा है. एक तरफ तो राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो कहते हैं जब तक जगरनाथ महतो रहेंगे तब तक स्कूली शिक्षा में समस्याएं नहीं होगी. लेकिन जो महिलाएं अपने हाथों से खाना बनाकर बच्चों का पेट भरती थीं, वो पिछले 5 महीने से मानदेय का इंतजार कर रही हैं.
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