सिलिकोसिस यानी फेफड़ा को खराब कर जानलेवा बीमारी। पूर्वी सिंहभूम से लेकर पश्चिम बंगाल तक इसके सैंकड़ों मरीज हैं, जो मौत के मुंह में जा रहे हैं। अकेले पूर्वी सिंहभूम में दो सौ मजदूरों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है तो 800 पीड़ित हैं। इन्हीं मजदूरों के हक की लड़ाई में एक शख्स ने अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया।
मानवाधिकार आयोग से लेकर प्रदेश सरकार के हर अधिकारी का चौखट खटखटाया और आखिरकार मजदूरों को उनका हक दिलाने में सफल रहे। अब बीमारी से मरनेवालों को प्रदेश सरकार चार लाख मुआवजा देती है। हम बात कर रहे हैं कि जमशेदपुर निवासी सुमित कुमार कर की। 20 साल से इन मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाले सुमित को विश्वास है कि एक दिन उनकी मेहनत रंग लायेगी और इन मजदूरों के चेहरे पर भी मुस्कान होगी।
महीन धूल कण फेफड़े में जाने से होती है सिलिकोसिस
सिलिकोसिस नामक बीमारी सांस के माध्यम से बेहद महीन धूल कण फेफड़े में जाने से होती है। पूर्वी सिंहभूम जिले में सफेद पत्थर पाए जाते हैं। रैमिंग मॉस मशीन पर उसकी पिसाई होती है। पीसकर उसे महीन बनाया जाता है। इस दौरान जो धूलकण उड़ते हैं, वे पिसाई करने वाले मजदूरों के फेफड़े में जाकर बैठ जाते हैं। बीमारी होने पर सांस लेने में समस्या होने लगती है। धीरे-धीरे वह बेहद कमजोर हो जाता है और जान चली जाती है।
समित के अनुसार पूर्वी सिंहभूम जिले में एक समय चार रैमिंग मॉस फैक्ट्री थी। फिलहाल एक है। पुरपानी, तेरेंगा, केंदाडीह और धालभूमगढ़ की चार फैक्ट्रियों में करीब एक हजार व्यक्ति काम कर चुके हैं। इनमें से करीब 200 की मौत हो चुकी है और 800 अभी पीड़ित हैं। उनका दावा है कि अगर कोई श्रमिक लगातार एक साल तक रैमिंग मॉस में काम करे तो उसे यह बीमारी हो जाएगी। हालांकि इसका पता तुरंत नहीं चलता। तीन-चार साल बाद इसके लक्षण प्रकट होते हैं।
ओसाज को ढाल बना खड़े हैं मजबूती से
आक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन ऑफ झारखंड (ओसाज) एकमात्र ऐसी संस्था है, जो सिलिकोसिस से पीड़ित बीमार मजदूरों के हक की लड़ाई के लिए लड़ रही है। संस्था के संस्थापक महासचिव हैं सुमित कुमार कर। धुन के पक्के। जब से संस्था खड़ी की, तभी से लगातार इस बीमारी से पीड़ितों के पक्ष में ईमानदारी से खड़े हैं। इसके लिए उन्होंने किसी विशेषज्ञ की तरह सिलिकोसिस से संबंधित बारीकियों का अध्ययन किया है। उनकी तार्किक लड़ाई का परिणाम है कि मानवाधिकार आयोग ने मामले में संज्ञान लिया और राज्य सरकार पर सिलिकोसिस पीड़ितों को मुआवजे के लिए दबाव बनाया। तब राज्य सरकार ने मई 2022 में इस बीमारी से मृतकों को चार-चार लाख मुआवजे का नियम बनाया। पीड़ितों के लिए दो करोड़ का फंड जारी किया।
अब तक 46 मृतकों को चार-चार लाख रुपये बांटे जा चुके हैं। उनका संगठन पश्चिम बंगाल में भी सक्रिय है। वहां भी 19 मृतकों के आश्रितों को चार-चार, जबकि 31 पीड़ितों को दो-दो लाख मुआवजा दिलाया है। वहां पेंशन देने की भी तैयारी है। सुमित के समर्पण और जानकारी को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भी सम्मान दिया। उसने उन्हें 2013 में रेफरेंस प्लेट देकर पुरस्कृत किया था। उनके प्रयास से अब धूलकण वाली फैक्ट्रियों में कुछ सुरक्षा उपाय भी अपनाए जाने लगे हैं। हालांकि उनकी लड़ाई हरियाणा की तरह झारखंड के श्रमिकों के लिए भी नियम बनाने को लेकर जारी है।
2003 में बनाया एनजीओ ओसाज
समित कुमार कर ने 24 नवंबर 2003 में ओसाज का गठन किया। हालांकि इसका रजिस्ट्रेशन हुआ 2007 में। रजिस्ट्रेशन में देर इसलिए हुई, क्योंकि उनकी जिद थी कि इसका अध्यक्ष कोई डॉक्टर होगा। टीएमएच के मेडिसिन के हेड डॉ. एचएस पॉल जब रिटायर हुए तो वे इसके पहले अध्यक्ष बने। वे इस पद पर 2020 तक रहे।
इसके दूसरे अध्यक्ष डॉ. तपन कुमार मोहंती बने। इसके वर्तमान अध्यक्ष डॉ. देवेश चंद्र राय हैं। इसकी स्थापना में जो लोग सहयोगी बने, उनमें शरत सिंह सरदार, पुनिता देव, स्व. सुभाष सरदार, यदुपति महतो आदि प्रमुख हैं। असंगठित मजदूरों के पक्ष में लड़ने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता शैलेश कुमार कर से मिली, जो टाटा स्टील के एविएशन सेवा में रहे।
छात्र व झारखंड आंदोलन में हिस्सा लिया
समित कुमार कर विद्यार्थी जीवन से ही लड़ाकू प्रवृत्ति के रहे। उन्होंने 1974 के जेपी के छात्र आंदोलन में हिस्सा लिया था। परीक्षा का बहिष्कार कर साकची पहुंच गए थे। इस आंदोलन में जान गंवाने वाले तीन छात्रों में से एक प्रणब मुखर्जी उनके मित्र थे और उनके प्रभाव में आकर ही उन्होंने आंदोलन में हिस्सा लिया। उनकी बसंत सिनेमा के पास पुलिस की गोली से मौत हो गई थी। इस घटना के बाद उनका पढ़ाई से ही मन उचाट हो गया। हालांकि उन्होंने निर्मल महतो के नेतृत्व में झारखंड आंदोलन में भी हिस्सा लिया।
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