अग्निपथ योजना से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई हुई। इस दौरान शीर्ष न्यायालय ने योजना को चुनौती दे रही याचिकाओं को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया है। सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए लाई गई नई नीति का सड़कों से शुरू हुआ विरोध कोर्ट तक पहुंच गया था। हालांकि, जून में ही केंद्र सरकार की तरफ से कैविएट दायर किया गया था, जिसमें योजना के खिलाफ कोई भी कार्रवाई से पहले सुनवाई की मांग की गई थी।
इन मामलों को दिल्ली हाईकोर्ट में ले जाने के निर्देश दिए
कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को इन मामलों को दिल्ली हाईकोर्ट में ले जाने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना योजना को चुनौती दे रहीं याचिकाओं पर सुनवाई की। इसके अलावा शीर्ष न्यायालय ने केरल, पंजाब और हरियाणा, पटना और उत्तराखंड उच्च न्यायालयों से भी अग्निपथ के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट लाने के लिए कहा है।
4 जुलाई को एड्वोकेट कुमुद लता ने हर्ष अजय सिंह की याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की थी। वहीं, एक अन्य याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने अग्निपथ योजना की वैधता पर सवाल उठाए थे। नई नीति के लिए एक सैनिक का कार्यकाल 4 वर्ष का होगा। हालांकि, कुल अग्निवीरों में से 25 फीसदी को विस्तार दिए जाने की बात भी कही गई है।
योजना के सामने आते ही देश के कई राज्यों में जमकर विरोध प्रदर्शन
14 जून के केंद्र ने अग्निपथ योजना का ऐलान किया था। इसके तहत 17.5 साल से 21 साल के बीच के युवाओं को सशस्त्र बलों में भर्ती किया जाना था। हालांकि, इस योजना के सामने आते ही देश के कई राज्यों में जमकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इसके बाद केंद्र ने कई रियायतों का ऐलान किया था। इसमें साल 2022 के लिए आयुसीमा बढ़ाने, अग्निवीरों के लिए कई मंत्रालयों और भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में नौकरी के अवसर शामिल थे।
सदन में गूंजा अग्निपथ का मुद्दा
सशस्त्र बलों में भर्ती की नई प्रक्रिया का विरोध जारी है। सोमवार से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में भी इसका जमकर विरोध देखने को मिला। भाषा के अनुसार, सत्र के पहले दिन लोकसभा में कई विपक्षी दलों के सदस्यों ने सेना में भर्ती की ‘अग्निपथ’ योजना और महंगाई को लेकर सदन में हंगामा किया जिस कारण कार्यवाही एक बार के स्थगन के बाद दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई।
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