पुलिस की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में प्रेम संबंध में इस साल पहले छह माह में शादी के लिए भागने वाले ऐसे 1870 मामले सामने आए है. ज्यादातर मामलों में लड़की, लड़के को लेकर भागी
बिहार में हाल के महीनों में ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ीं हैं, जिसमें लड़की के घरवाले उसके गायब होने पर अपहरण की प्राथमिकी दर्ज करवाते हैं. लेकिन, मामला जब सुलझता है तो वह प्रेम प्रसंग से जुड़ा होता है जिसमें लड़की खुद ही अपने प्रेमी के साथ फरार हुई होती है. ऐसे प्रकरणों से पुलिस तंग-तबाह है. इन्हीं मामलों को हनीमून किडनैपिंग यानि शादी के लिए अपहरण की संज्ञा दी गई है. यह शब्द पुलिस द्वारा गढ़ा गया है जिसका उपयोग वे शादी के लिए घर से लड़के-लड़कियों के भागने वाले मामले के लिए करते थे.
समय के साथ परिदृश्य बदल रहा है, पहले लड़की को लेकर लड़का फरार होता था, अब प्रेमिका ही प्रेमी को लेकर भाग रही है. वे खुलेआम इसका एलान कर पुलिस से हड़बड़ी में लड़के के परिवार वालों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने का अनुरोध भी कर रही हैं. सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वायरल ऐसे मामलों से समाज विज्ञानी हतप्रभ हैं.
औसतन हर रोज भाग रहीं दस लड़कियां
पुलिस की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में प्रेम संबंध में इस साल पहले छह माह में शादी के लिए भागने वाले ऐसे 1870 मामले सामने आए. अगर प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो औसतन ऐसे दस मामले रोजाना सामने आ रहे हैं. इस प्रकार औसतन हर ढाई घंटे में एक प्रेमी युगल घर से फरार हो रहा है. इस साल अब तक हनीमून किडनैपिंग के 2778 मामले दर्ज हो चुके हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार इस मामले में बिहार दूसरे नंबर पर है. जहां 2020 में 5308 ऐसी घटनाएं हुईं थी, वहीं 2021 में 6589 मामले सामने आए.
पुलिस अधिकारी एमपी सिंह कहते हैं, ‘‘ऐसे मामले काफी परेशान करते हैं. कभी-कभी तो विधि व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाते हैं. दूसरे राज्यों का चक्कर भी काटना पड़ता है, लेकिन जब केस सुलझता है तो मामला कुछ और ही निकलता है.”
प्रेम विवाह को सामाजिक मान्यता नहीं
समाजशास्त्र के जानकार इसे नारी सशक्तिकरण के परिणाम के तौर पर देखते हैं. प्रोफेसर एससी महतो कहते हैं, ‘‘इस स्थिति को आप एक तरह की सामाजिक क्रांति कह सकते हैं, जो तकनीक के बढ़ते प्रयोग तथा महिलाओं की बढ़ती साक्षरता दर की वजह से देखने को मिल रही है. गांव-गांव की महिलाएं कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद स्मार्टफोन व इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहीं हैं, यह क्या है. पीछे झांक कर देखें, महिलाएं तो अपनी वाजिब बात भी नहीं कह पाती थीं.”
इंटरनेट के प्रसार के कारण युवा अब 15-16 साल में ही सब कुछ जानने लगे
उनका मानना है कि स्मार्टफोन व इंटरनेट के प्रसार के कारण युवा अब 15-16 साल में ही सब कुछ जानने लगे हैं, क्योंकि इंटरनेट पर हर अच्छी-बुरी चीज उपलब्ध है. वे इसी से दिग्भ्रमित हो रहे हैं. इसलिए गायब होने वाली अधिकतर लड़कियां 15 से 20 साल की होती हैं. वे कहते हैं, ‘‘प्रेम विवाह को अभी हमारा समाज मान्यता नहीं देता है. लोकलाज के भय से लड़की के माता-पिता उसे समझाने की बजाय डांटते हैं, धमकाते हैं. इससे स्थिति और बिगड़ती है और अंतत: वे घर से भागकर प्रेमी के पास पहुंच जाती है.”
मनोचिकित्सक डॉ. अनामिका कहती हैं, ‘‘जिंदगी की भागदौड़ के कारण माता-पिता व बच्चों के बीच संवादहीनता की स्थिति बन जाती है. किशोरावस्था में वैसे ही शारीरिक परिवर्तन की वजह से लड़के-लड़कियां तनाव में होते हैं, वे ज्यादा एग्रेसिव रहते हैं. डांट-फटकार के बाद माता-पिता की हर बात बुरी लगती है और धीरे-धीरे वे विद्रोही हो जाते हैं.”
ऐसी स्थिति में इमोशनल होने के कारण बाहरी व्यक्ति जो उनकी बात सुनता है, प्यार जताता है वह उन्हें अच्छा लगने लगता है. उन पर उनका भरोसा बना जाता है और फिर इमोशनल अटैचमेंट के कारण वह फीलिंग्स के आधार पर निर्णय लेने लगता है. उसे सही-गलत का एहसास नहीं हो पाता है. जिसकी परिणति ऐसी ही घटनाओं के रूप में होती है.
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