कश्मीरी पंडितों का क्या हाल है .
आजकल विवेक अग्निहोत्री की फ़िल्म ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ सुर्ख़ियों में है. सिनेमा हॉल से लेकर सोशल मीडिया तक इस फ़िल्म पर ख़ूब प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.कश्मीरी पंडितों के संगठन ‘रिकंसीलिएशन, रिटर्न एंड रिहैबिलिटेशन ऑफ़ पंडित्स’ के अध्यक्ष सतीश महलदार ने भी ये फ़िल्म देखी है.सतीश कहते हैं कि फ़िल्म में कश्मीरी पंडितों के पलायन को तो दिखाया गया है लेकिन कई चीज़ें छिपा भी ली गई हैं.
कश्मीरी पंडितों के दर्द की दो तस्वीरें हैं. एक तस्वीर में वो लोग हैं जिन्हें 1990 के दशक में अपनी ज़मीन को छोड़कर जाना पड़ा. दूसरे में वो जो कभी घाटी छोड़कर गए ही नहीं, अनिश्चितता के साये में बरसों से घाटी में ही रहते आ रहे हैं.वैसे तो इनके अलग-अलग अनुभव और कहानियां हैं लेकिन एक बात ये एक साथ कहते हैं- ”सरकारों ने हमारे दर्द को कभी ठीक से समझा ही नहीं.”
आख़िर सरकार से कश्मीरी पंडित क्या चाहते हैं और अलग-अलग सरकारों ने इनके लिए क्या किया?
जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ उस वक्त बीजेपी समर्थित वीपी सिंह सरकार थी और अब क़रीब 8 साल से केंद्र में बीजेपी की सरकार है लेकिन पलायन किसकी वजह से और किन परिस्थितियों में हुआ, उसकी जांच नही किया गया है वो फ़िल्म में कहीं नहीं दिखता. आज कश्मीर में 808 कश्मीरी पंडितों के परिवार, जो कभी कश्मीर छोड़कर गए ही नहीं वो किस तरह गुज़र बसर कर रहे हैं, उनकी ज़िंदगियों की क्या कहानी है, इसे भी फिल्म में नहीं दिखाया गया है.
कुछ हिंसा को दिखाया गया है तो कुछ से बचा गया है, कुल मिलाकर विवेक अग्निहोत्री ने सेलेक्टिव तरीके से ये फ़िल्म पेश की है.
पिछले तीन दशकों से ज़्यादा समय से जो भी सरकारें आईं हैं वो एक एजेंडे पर चली हैं, वो एजेंडा है- ”पूरे भारत में मुद्दा चलाओ-मुद्दा चलाओ, पर इन्हें बसाओ नहीं. बीजेपी ने प्रचार कर दिया कि कश्मीरी पंडितों को बसाएंगे लेकिन पिछले 8 साल से एनडीए सरकार है तो भी ये नहीं हुआ. कांग्रेस ने भी खूब वादे किए लेकिन कुछ ख़ास नहीं किया. लेकिन कांग्रेस ने एक काम किया कि जम्मू में पक्के कैंप बना दिए, जहां विस्थापित रह सकते थे और पीएम पैकेज लेकर आई.”
मनमोहन सरकार के दौरान साल 2008 में कश्मीरी माइग्रेंट्स के लिए पीएम पैकेज का ऐलान किया गया था. इस योजना में कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए नौकरियां भी निकाली गईं थीं.अब तक कश्मीरी पंडितों समेत अलग-अलग वर्गों के लिए इस योजना के तहत 2008 और 2015 में 6000 नौकरियों का ऐलान हो चुका है. कुछ हज़ार विस्थापित ये नौकरियां कर भी रहे हैं. इन लोगों को कश्मीर में बनाए गए ट्रांज़िट आवासों में रहना होता है.
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