केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने पर कहा कि यह राज्यों का विषय है, इसलिए इन मामलों पर संबंधित राज्य सरकारें फैसला करेंगी. उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने के लिए प्रधानमंत्री ने कमेटी की गठन की घोषणा की है, उनकी रिपोर्ट आते ही उस पर भी कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने तीनों कृषि कानूनों की वापसी का बिल संसद में पेश करने से पहले आज शनिवार, 27 नवंबर को कहा कि सरकार ने किसानों द्वारा पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. उन्होंने किसानों की इस मांग को केंद्र सरकार द्वारा मान लेने का ऐलान किया.
उन्होंने कहा कि किसानों की लगभग सभी मांगें पूरी हो चुकी हैं. ऐसे में उन्हें अब घर वापस लौट जाना चाहिए. कृषि मंत्री ने कहा कि जब तीनों कृषि कानून वापसी की घोषणा प्रधानमंत्री कर चुके और संसद में बिल लाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तो ऐसे में किसानों के आंदोलन का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है. उन्होंने कहा कि किसान अब बड़े मन का परिचय दें.
सोमवार यानि 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही सरकार कृषि कानून वापसी बिल पेश करने वाली है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर उक्त बिल पेश करेंगे. उसी दिन सदन में कृषि कानूनों की वापसी विषय पर चर्चा होगी और इसे पास कराया जाएगा. भाजपा ने अपने सभी सांसदों को तीन लाइन का व्हिप जारी कर उस दिन सदन में उपस्थित रहने को कहा है, जबकि राज्यसभा सांसदों को पहले ही व्हिप जारी किया जा चुका है.
ज्ञात हो कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिसंबर 2015 में फसल अवशेषों को जलाने पर रोक लगाते हुए इसका उल्लंघन करने वाले किसानों पर दंड लगाने का प्रावधान किया था. NGT के आदेशानुसार पराली जलाते पकड़े जाने पर 2 एकड़ भूमि तक 2,500 रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5,000 रुपये और पांच एकड़ से ज्यादा की भूमि पर 15,000 रुपये का तक का जुर्माना लगाया जा सकता था. अब सरकार द्वारा किसानों द्वारा इस विषय पर उठाई गई मांग मान लिए जाने की स्थिति में NGT द्वारा लगाया गया नियम स्वतः ही निरस्त हो जाएगा. इससे किसानों को बड़ी राहत मिलेगी. उधर किसान नेता राकेश टिकैत के मुताबिक सिर्फ घोषणा से किसानों का काम पूरा नहीं हो जाता. जब तक विधिवत संसद में तीनों कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता और किसानों की अन्य मांगें नहीं मान ली जाती, काम अधूरा है और किसान अपना काम अधूरा छोड़कर घर नहीं लौटने वाले है. अब देखना यह है कि 29 नवम्बर को संसद में क्या होता है और उसके बाद किसानों का रूख क्या होता है ?
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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