प्राचीन काल में हमारे समाज में नारी का महत्व नर से कहीं बढ़कर होता था। फिर मुगल साम्राज्य के बाद नारी का अस्तित्व घटा। वर्तमान समय में नारी का स्थान इतना बढ़ गया है कि पिता के नाम के स्थान पर माता का ही नाम प्रधान होकर परिचित का सूत्र बन गया है। शैक्षणिक संस्थानों में माता के नाम को पहले रखा जाता है।
पहले पति की फरमाइशें पूरी करने के लिए नारी को इस्तेमाल में लाया जाता था
समय के बदलाव के साथ नारी की दशा में अब बहुत परिवर्तन आ गया है। यों तो नारी प्राचीन काल से अब तक भार्या के रूप में जानी जाती थी। इसके लिए उसे गृहस्थी के मुख्य कार्यों में व्यस्त रखा जाता था। पति की फरमाइशें पूरी करने के लिए नारी को इस्तेमाल में लाया जाता था, लेकिन शिक्षा के प्रचार-प्रसार के फलस्वरुप अब नारी कि वह दुर्दशा में नहीं है, जो कुछ अंधविश्वासों ,रूढ़िवादी विचारधाराओं या अज्ञानता के फलस्वरुप हो गई थी। नारी को पुरुष के समानांतर लाने के लिए समाज सुधारों, समाज चिंतकों ने इस दिशा में सोचना और कार्य करना प्रारंभ कर दिया।
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नारी में किसी प्रकार की शक्ति और क्षमता की कमी नहीं, बस उसे अवसर मिले
नारी आज समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है अब वह घर की लक्ष्मी ही नहीं रह गई है, अपितु घर के बाहर समाज का दायित्व निर्वाह करने के लिए आगे बढ़ गई है। वह घर की चारदीवारी से अपने कदम को बढ़ाती हुई समाज की दशा को सुधारने के लिए कार्य कर रही है। इसके लिए वह पुरुष के समानांतर पद, अधिकार को प्राप्त करती हुई उसको चुनौती दे रही है। वह पुरुष को यह अनुभव करने के साथ-साथ उसमें चेतना भर रही है कि नारी में किसी प्रकार की शक्ति और क्षमता की कमी नहीं है, केवल अवसर मिलने की देर होती है।
इस विषय में चर्चा होनी चाहिए
अब मेरे मन में यह प्रश्न आया कि नारी अगर इतना सब कर सकती है, तो हमारे समाज में नारी को पुरोहित या यजमान के रूप में क्यों नहीं रखा गया है, यह सोचने का विषय है? क्या नारी या महिलाएं पुरोहित, मंदिर में पुजारी, घर में किसी पूजा, किसी मांगलिक कार्य के शुभारंभ आदि में क्यों अपनी भूमिका नहीं निभा सकती, यह सोचने का विषय है। इस विषय में चर्चा होनी चाहिए। आज समाज में नारी प्रतिष्ठित है, तो पौरोहित्य के कार्य में नारी क्यों पीछे रहेगी ?
(उक्त लेख में लेखक के अपने विचार हैं)
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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