ओल चिकी पुस्तकों की छपाई ठन्डे बस्ते में डाल दी गई है
माझी पारगना माहाल, संताली छात्र संघ, अनोलिया गांवता एंव आसेका पटमदा के संयुक्त तत्वधान में रविवार को शिक्षा सचिव के. रवि कुमार, किरण कुमारी पासी समेत सभी ओल चिकी विरोधियों का बेलटाँड़ चौक पर पुतला फूंका गया। इस दौरान कहा गया कि जहां एक ओर ओल चिकी पूरे विश्व के संथाल समाज को एक सूत्र में बांधने का काम कर रहा है, इसके लिए झारखंड शिक्षा विभाग ने ओल चिकी में पुस्तकें छपवाने पर सहमति भी जताई, पर केवल संथाल परगना में कुछ तथाकथित ओल चिकी विरोधियों द्वारा ईसाई मिशनरियों के इशारों पर ओल चिकी लिपि का विरोध की वज़ह से ओल चिकी पुस्तकों की छपाई ठन्डे बस्ते में डाल दी गई है।
ओल चिकी का विरोध यहां..
विगत दिनों संताल परगना स्टूडेंट्स यूनियन के एल्बिनस हेंम्ब्रम के नेतृत्व में दुमका परिसदन में बैठक कर ओल चिकी का विरोध किया गया था। वहीं दूसरी ओर सिदो-कान्हो मुर्मू विश्वविद्यालय के संथाली विभाग के प्रोफेसर सुशील टुडू ने भी ओल चिकी के विरोध में वहां के कुलपति को ज्ञापन सौंपा और कहा कि देवनागरी से ही संताली भाषा की पुस्तकों की छपाई हो।
यदि आप अपनी लिपि ,धर्म और संस्कृति भूल गये तो आपका अस्तित्व ही नहीं बचेगा
इस मौके पर पटमदा के मादाड़ीया दिवाकर टुडू ने कहा कि आज जहां पूरे विश्व में ओल चिकी को बढ़ावा मिल रहा हैं विश्व के अलग अलग विश्वविद्यालयों के छात्र ओल चिकी लिपि सिख रहे हैं ऐसे में ओल चिकी का विरोध समझ से परे हैं यह संताल समाज को विभाजित करने वाला काम हैं। वहीं समाजिक कार्यकर्ता दशरथ बेसरा ने कहा कि यह पूरा-पूरा ईसाई मिशनरियों का षड्यंत्र है, क्योंकि ओल चिकी गुरू गोमके रघुनाथ मुर्मू का कथन हैं कि ” यदि आपकी लिपि से संस्कृति और धर्म है तो आपका अस्तित्व है और यदि आप अपनी लिपि ,धर्म और संस्कृति भूल गये तो आपका अस्तित्व ही नहीं बचेगा।
ओनलाइन विकीपीडिया ने भी ओल चिकी लिपि को मान्यता प्रदान की है
पंडित रघुनाथ मुर्मू संतालों के मूल धर्म को बचाने के पक्षधर थे , यही बात ईसाई मिशनरियों को पच नहीं रही है। वहीं ओल चिकी की शिक्षिका ललीता ने कहा कि ओल चिकी पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि है. इसी लिपि से ही संताली भाषा को स्पष्ट रूप से लिखा जा सकता है. ओनलाइन विकीपीडिया ने भी ओल चिकी लिपि को मान्यता प्रदान की है और विकिपीडिया में भी आपको ओल चिकी लिपि में विभिन्न जानकारियां मिलेंगीस ,वहीं जब पहले ओल चिकी नहीं था तो संताल समाज के लोग देवनागरी और रोमन लिपि का उपयोग करते थे परंतु 1925 के बाद धीरे-धीरे इस लिपि ने एक पकड़ बनी ली संपूर्ण विश्व में , फ़िर भी विरोध षड्यंत्र है। हरिहर टुडू ने कहा कि झारखंड सरकार अविलंब ओल चिकी से केजी से लेकर पीजी तक किताबों की छपाई करें और पढ़ाई शुरू करें , अन्यथा संताल समाज पूरजोर आंदोलन को बाध्य होगा।
इस मौके पर मादाड़िया दिवाकर टुडू, हरिहर टुडू, सुनील हेम्ब्रम, पवन माण्डी, गुरुपद माण्डी, सुखदेव हेम्ब्रम, अजय मुर्मू, नारायण हेम्ब्रम विश्वनाथ महतो, दशरथ बेसरा, सुधीर चंद्र मुर्मू, रबिन्द्र मुर्मू, मनोहर हांसदा, सहदेव मुर्मू, सुभाष हेम्ब्रम, गुलाम बेसरा, गुलाचांद मुर्मू, सामंत मुर्मू, छुटु सोरेन, रतन हांसदा, बिभूतु मांझी, रबिन्द्र टुडू, अम्बुज मुर्मू, दीपक कुमार सिंह, लुसु हांसदा, जितेन सोरेन, कृष्ण हेम्ब्रम, संजय टुडू, राम चरन मुर्मू, समच माण्डी, सुनील मांझी आदि मौजूद थे।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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