अयोध्या की बाबरी मस्जिद और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, दोनों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें मुगल शासकों के आदेश पर, वहां पहले से मौजूद मंदिरों को तोड़ कर उन्हीं के ध्वंसावशेषों पर बनाया गया.
बाबरी मस्जिद की जगह राम जन्मभूमि और मंदिर होने की बात कहते हुए वहां हिंदुओं ने पूजा-पाठ करने की मांग करते हुए कोर्ट का सहारा लिया. मामला पचास साल तक इस कोर्ट और उस कोर्ट घूमता रहा, और एक दिन यानी 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद ढहा दी गई.
अयोध्या में रामलला, काशी में शिवलिंग
वहीं, वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का मामला पहली बार कोर्ट में 1991 में गया था लेकिन तभी धर्मस्थल कानून बन जाने की वजह से ठंडा पड़ गया. अब एक बार फिर यह मामला कोर्ट में पहुंच गया है. सोमवार को कोर्ट के आदेश पर मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण के दौरान कथित शिवलिंग कुछ उसी तरह मिलने का दावा किया जा रहा है जैसे 1949 में अयोध्या में रामलला की मूर्ति मिलने का दावा किया गया था. मुस्लिम पक्ष ने तब भी इस दावे को खारिज किया था और अब भी खारिज कर रहा है.
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पहला मुकदमा 1991 में वाराणसी कोर्ट में दाखिल हुआ था जिसमें ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई थी. प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय इस मुकदमे में बतौर वादी शामिल थे.
क्या है धर्मस्थल कानून 1991?
तब मुकदमा दाखिल होने के कुछ महीने बाद ही केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बना दिया जिसके मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है.
इस याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी
इसी कानून का हवाला देकर ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने इस याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया. इसी दौरान साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश यह आया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी और उसके बाद आदेश प्रभावी नहीं रहेगा. इसी आदेश का हवाला देते हुए 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई. पिछले साल यानी 2021 में वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दे दी.
मुसलमानों की आशंका
एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण गैरकानूनी है और इसे बिल्कुल वही रूप दिया जा रहा है जैसे अयोध्या में बाबरी मस्जिद के साथ किया गया था. एक न्यूज चैनल से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद की तरह इसे भी पहले कोर्ट में ले जाया जा रहा है और उसके बाद मस्जिद को ढहाने की साजिश की जा रही है. उन्होंने सवाल उठाया, “1991 के धार्मिक स्थल कानून का उल्लंघन करते हुए सर्वेक्षण की इजाजत कैस दी जा रही है?”
शुरुआती दौर में दोनों मामले समान दिख रहे
अयोध्या विवाद पर चर्चित पुस्तक ‘एक रुका हुआ फैसला’ के लेखक, वकील और पत्रकार प्रभाकर मिश्र कहते हैं, “ज्ञानवापी के अस्तित्व को लेकर कुछ लोग इसलिये आशंकित हैं, क्योंकि उन्हें इस मामले में बाबरी मस्जिद वाली क्रोनोलॉजी याद आ रही है और शुरुआती दौर में दोनों मामले समान दिख रहे हैं. हालांकि 1991 के धार्मिक स्थल कानून का हवाला देते हुए इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करने की कोशिश की जा रही है लेकिन कानून के रहते हुए भी जिस तरह से यह मामला धीरे-धीरे अदालती कार्रवाई के दायरे में आ गया, उसे देखते हुए उनकी आशंकाएं और मजबूत हो रही हैं.”
बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि विवाद
ऐसा कहा जाता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में मुगल सम्राट बाबर के कहने पर मीर बाकी ने कराया था. वहीं हिंदुओं को दावा था यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पहले एक मंदिर था. साल 1853 से लेकर 1949 तक यहां कई बार विवाद हुए और 1859 में ब्रिटिश प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी. मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई.
असली विवाद तब शुरू हुआ जब 23 दिसंबर 1949 को भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं. हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं. सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया.
1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई
अगले साल यानी 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई. एक में रामलला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे जाने की अनुमति मांगी गई. 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह उन्हें सौंपने और मूर्तियां हटाने की मांग की. मामला अभी कोर्ट में चल ही रहा था कि 1984 में इसमें विश्व हिन्दू परिषद का प्रवेश हुआ और परिषद ने विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए एक कमिटी गठित की.
1986 में एक याचिका की सुनवाई के बाद फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया. इस बीच, विश्व हिन्दू परिषद का आंदोलन चल ही रहा था. 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा के बाद ढांचा ढहा दिया गया और लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2019 में वहां मंदिर बनाने का फैसला सुनाया और मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दूसरी जगह जमीन दी.
शिवलिंग मिलने के दावे पर सवाल?
ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने शिवलिंग मिलने के दावे को खारिज किया है और इस बात पर भी आपत्ति की है कि 17 मई को कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने से पहले ही कुछ लोग कैसे कोर्ट पहुंच गए और कोर्ट ने जगह सील करने के आदेश दे दिए. इंतजामिया कमेटी के वकील का कहना है कि वो इस फैसले को चुनौती देंगे.
बताया जा रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के ऊपरी हिस्से में जहां नमाज पढ़ी जाती है, वहीं वजू करने के लिए एक छोटा सा तालाब बना है. इसी तालाब में शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है.
सोमवार को शिवलिंग मिलने की खबर आने के तुरंत बाद हिंदू पक्ष जिला अदालत पहुंचा और शिवलिंग को संरक्षित करने और उस जगह को सील करने की मांग की. कोर्ट ने यह मांग स्वीकार करते हुए वाराणसी जिला प्रशासन को आदेश दिया कि जिस जगह शिवलिंग मिला है, उसे सील किया जाए. कोर्ट ने शिवलिंग मिलने वाली जगह पर किसी के भी आने जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.
रिपोर्ट आने से पहले शिवलिंग की बात कैसे आई?
दरअसल, कोर्ट के आदेश पर हो रहे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण मामले में नियुक्त कमिश्नरों की टीम मंगलवार को अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेगी. सोमवार को सर्वेक्षण का तीसरा दिन था और सर्वेक्षण का काम भी पूरा हो चुका है. कोर्ट ने अजय कुमार मिश्र, विशाल कुमार सिंह और अजय सिंह को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था.
सर्वेक्षण टीम में कोर्ट कमिश्नरों के अलावा दोनों पक्षों से कुल 52 लोग शामिल थे और इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी कराई गई है. टीम के किसी भी सदस्य को सर्वेक्षण की कोई जानकारी लीक ना करने की हिदायत दी गई थी. मुस्लिम पक्ष ने इस बात पर आपत्ति दर्ज कराई है कि जब 17 मई को रिपोर्ट सौंपी जानी थी तो उसके पहले ही शिवलिंग मिलने की बात कैसे फैल गई.
हम सभी कानूनी उपाय करेंगे
मुस्लिम पक्ष की ओर के वकील अभयनाथ यादव कहते हैं, “हम तालाब को सील करने के आदेश को रद्द करने के लिए अदालत का रुख करेंगे. हम सभी कानूनी उपाय करेंगे. हमने अदालत के निर्देश के अनुसार सर्वेक्षण में पूरी तरह से सहयोग किया है लेकिन सर्वेक्षण टीम के अन्य सदस्यों को भी अदालत के निर्देशों का पालन करना चाहिए था.”
मुस्लिम पक्ष के एक अन्य वकील रईस अहमद ने को बताया कि जिसे शिवलिंग कहा जा रहा है वह दरअसल, फव्वारा है जो कि नीचे चौड़ा होता है और ऊपर संकरा होता. इस वजह से उसकी आकृति शिवलिंग जैसी होती है.
सर्वेक्षण रोकने की मांग
रईस अहमद का आरोप है कि कथित शिवलिंग मिलने के बाद कोर्ट ने इकतरफा परिसर सील करने के आदेश दे दिए और मस्जिद इंतजामिया कमेटी को अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया. वो कहते हैं, “सोमवार को कोर्ट बैठी भी नहीं थी, फिर भी प्रार्थना पत्र दिया गया और इस बारे में हमें कोई सूचना भी नहीं दी गई. सिर्फ एक पक्ष की बातों को सुनकर आदेश पारित कर दिया गया.”
ज्ञानवापी में सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण के खिलाफ मस्जिद की इंतजामिया कमेटी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में भी मंगलवार को सुनवाई होनी है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ इस याचिका पर सुनवाई करेगी. ज्ञानवापी विवाद मामले में याचिकाकर्ता अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने ज्ञानवापी में सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग की है. हालांकि अब तो सर्वेक्षण का काम हो चुका है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद यह तय होगा कि सर्वेक्षण आगे भी जारी रहेगा या फिर उस पर रोक लग जाएगी.
दूसरी ओर वादी पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कोर्ट में आवेदन देकर कहा है कि शिवलिंग मिलने के बाद पूरे मस्जिद परिसर में किसी का भी आना प्रतिबंधित कर दिया जाए.
मस्जिद के नीचे मंदिर?
जिस ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण हुआ है, वहां मस्जिद है और मस्जिद के बिल्कुल बगल में काशी विश्वनाथ मंदिर है. ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई और पूरा विवाद इसी बात को लेकर है. काशी विश्वनाथ कोरिडोर बनने से पहले मंदिर और मस्जिद बिल्कुल एक साथ लगे दिखते थे लेकिन कोरिडोर बनने के बाद दोनों परिसर साफ तौर पर अलग दिखाई देने लगे हैं.
हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है. यह मंदिर कब बना, इसे लेकर कई अटकलें सामने आती हैं लेकिन हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मंदिर करीब दो हजार साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने बनवाया था जिसे मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1664 में तुड़वा दिया और उस जगह पर मस्जिद बनवा दी.
जांच कर पता लगाया जाए कि ये मंदिर की हैं या नहीं
हिंदू पक्ष की मांग है कि मस्जिद का फर्श तोड़कर ये पता लगाया जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं. इनकी यह भी मांग है कि मस्जिद की दीवारों की भी जांच कर पता लगाया जाए कि ये मंदिर की हैं या नहीं. इन्हीं दावों की सुनवाई करते हुए अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी एएसआई की एक टीम बनाई जिसने सोमवार को सर्वेक्षण का काम पूरा कर लिया.
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