रांची में गर्मी बढ़ना कोई बड़ी चिंता की बात नहीं है, क्योंकि रांची का तापमान 1971 में भी 40 तक पहुंचा था. इसके बाद अप्रैल महीने में दोपहर बाद मौसम करवट लेकर बारिश हो जाया करती थी. चिंता का कारण दो-माह से बारिश नहीं होना है. इसका सबसे बड़ा कारण जो सामने आ रहा है बहुत ही चिंताजनक है. गर्मी के दिनों में रांची हमेशा स्थानीय वाष्पीकरण और लोकल क्लाईमेट इफेक्ट के कारण बारिश होते रही है. जो इस वर्ष दो महीने से बंद है. रांची में अंतिम बारिश दो फरवरी को हुई, इसके बाद रांची में एक बंदू बारिश नहीं हुई है. इसके कारण रांची में अब असहनीय गर्मी लोग झेलने को विवश हैं. पर्यावरणविद् इसे बड़े खतरे की घंटी बता रहे हैं. अगर शासन-प्रशासन और जनता नहीं चेती तो स्थिति आने वाले दिनों में और भयावह हो सकती है.
इस कारण हो जाती थी रांची में बारिश
रांची हमेशा से ही अरबन हिट इफेक्ट सिस्टम से जुड़ा रहा है. यानि की गर्मी बढ़ने के साथ ही लोकल इफेक्ट प्रभावी हो जाया करता था. जिसके कारण दो बजे के बाद रांची का मौसम अचानक से परिवर्तित हो जाया करता था. या तो तेज हवाएं चलने लगती थी, तेज हवाओं के साथ हल्की या बूंदा-बांदी बारिश और कभी काफी तेज बारिश भी हो जाया करती थी. इसके कारण दोपहर बाद हमेशा गर्मी के दिनों में रांची का मौसम सुहावना हो जाया करता था. इसलिए रांची को गर्मी में मिनी कश्मीर या फिर ग्रीष्मकालिन राजधानी भी कहा जाता था. मगर जो स्थिति अब बन बड़ी है, वह रांची वासियों के लिए बहुत ही चिंता का सबब आने वाले दिनों में बनेगा. अगर हम अब भी नहीं चेतते हैं तो.
इन कारणों से बनता था लोकल सिस्टम और होती थी बारिश
रांची को तालाबों का शहर भी कहा जाता था. आज से 25-30 वर्ष पहले रांची में सार्वजनिक, बपौती और और निजी कम से कम 300 से अधिक तालाब हुआ करते थे, जो आज सिमट कर 30-35 के बीच बच गए हैं. रांची में कई छोटी-मोटी नदियां और नाले हुए करते थे, जहां पर गर्मी में भी पानी का श्रोत बना रहता था. रांची में घर-घर कुंए होते थे. मगर आज रांची में नाम मात्र के भी कुएं नहीं बचे हैं. रांची में पेड़-पौधों का अंबार था, मगर अब शहरी विकास के कारण या तो पेड़ काट दिए गए या फिर पेड़ के प्रति लाख प्रयास के बावजूद सफलता वृक्षारोपण को बढ़ावा नहीं दे पा रहे हैं.
चूंकि जमीन में पानी रहता था तो मिट्टी में भी नमी रहती थी. इन सब कारकों को मिलाकर रांची में वाष्पीकरण होता था और लोकल सिस्टम उत्पन्न होकर गर्मी में जमीन तबपने के बाद बारिश हो जाया करती थी. यह एक बड़ा कारण है रांची में गर्मी में होने वाले बारिश बंद होन का.
कंक्रीट में तब्दील हो गया है रांची
विगत 20 से 30 साल में रांची कंक्रीट में तब्दील हो गया है. गगनचुंबी इमारतें और शहर के सड़कों और नालियो का पक्कीकरण ने भूगर्भ में जाने वाले पानी का रास्ता को ही ब्लॉक कर दिया. अंधाधून बोरिंग हुई मगर रेन वाटर हार्वेस्टिंग लागू नहीं हुआ. पानी तो भू-गर्भ से निकलाते चले गए मगर भू-गर्भ में पानी नही डाले. रांची पठारी क्षेत्र होने के कारण भू-गर्भ में पानी ठहरता नहीं है, उपर से पानी का अंधाधून डिस्जार्चिग. यह सब मिलकर पूरी रांची को बर्बादी और तबाही की ओर धकेल दिया है. जिसका खमियाजा आने वाले दिनों में आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा. मार्च-अप्रैल में बारिश नहीं होना इसकी बानगी भर है. यह चेतावनी भी है आने वाले दिनों के भयावह स्थित को इंगित कराने के लिए.
वाहनों और एयरकंडीशन रहन-सहन रांची में हीट वेब बढ़ा रहा है
विगत 50 वर्षों में रांची में वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इससे निकलने वाली गर्मी और हर दस में से 5 घरों में एयरकंडिशन से निकलने वाली गर्मी ने रांची में हिट वेब को बढ़ा दिया है. इस संबंध में जब पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि हालात अब बहुत गंभीर हो चले हैं. आप याद करें जब 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण संपूर्ण लॉक डाऊन था. इस दौरान पूरी गर्मी बारिश होते रही. यह केवल लोगों के समझने का एक बड़ा उदारहण है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ. वाहनों का परिचालन 90 प्रतिशत बंद रहा. औद्योगिक इकाईयां बंद रही.
इसके कारण लोकल सिस्टम बनता रहा और लगातार बारिश होते रही. प्रियदर्शी बताते हैं कि रांची में जो तालाब और नदी-नाले बचे हैं, उसे संरक्षित करने की जरूरत है. पेड़ तो कट गए मगर उसके बदले एक अभियान के तहत लक्ष्य बनाकर वृक्षारोपण करना होगा. जिनके घरों मे जगह हैं, उन्हें पेड़ लगाने होगे. सड़क का डिजाईन कुछ इस प्रकार करना होगा कि पेड़-पौधे की हरयाली बनी रही. तभी फिर से रांची में लोकल सिस्टम क्रिएट हो सकता है.
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