शहर के कुरी युग में जाना चाहते हैं। इनमें बिरसानगर सबसे ऊपर है। बिजली कटौती से परेशान हो चुके लोगों की यह मांग है कि उन्हें केरोसिछ इलाके फिर से ढिबन दिया जाए ताकि वे लैम्प और लालटेन जला सकें। वहां के नागरिकों ने अपने डीलरों से केरोसिन की मांग की है। डीलरों ने अपनी मांग से होलसेलर को अवगत करा दिया है। होलसेलर भी बोकारो से तेल लाने को तैयार हैं, परंतु इसमें पेच है।
अब हर माह केरोसिन की कीमत बदलती रहती है। होलसेलर के लिए कम से कम पूरा एक टैंकर तेल लेना होगा। अगर उतनी खपत नहीं होगी तो वह तेल उसके लिए गले की फांस बन जाएगा, क्योंकि बीते कुछ माह से मांग बिल्कुल नहीं है। मांग नहीं होने का कारण बेहद महंगा रेट है। दो अन्य कारण तकनीकी भी हैं। अभी भी विभागीय पोर्टल और पीओएस मशीन में तेल का रेट 55 रुपये प्रति लीटर दर्शाया जा रहा है, जबकि वर्तमान में तेल की खुदरा कीमत करीब 85 रुपये प्रति लीटर पहुंच चुकी है।
ऐसे में कोई भी उपभोक्ता तब बखेरा खड़ा कर देगा, जब उसे दर दिखेगी 55 रुपये, जबकि पैसा लिया जाएगा 85 रुपये प्रति लीटर की दर से। कीमत को सुधारना एनआईसी का काम है। समस्या यह भी है कि वर्तमान में प्रति परिवार केरोसिन का आवंटन मात्र 800 मिलीलीटर है, जबकि एक लीटर से कम देना मुश्किल काम साबित होगा।
पहले खूंटी, अब बोकारो से लाना पड़ता है तेल
होलसेलरों को पहले केरोसिन खूंटी डिपो से मिल जाया करता था। अब डिपो बदलकर बोकारो कर दिया गया है। इस प्रकार पूर्वी सिंहभूम के लिए तेल लाने की दूरी भी बढ़ गई है। इसकी वजह से भी तेल लाने में होलसेलरों की रुचि घटी है। वैसे शहरी क्षेत्र में चार होलसेलर हैं।
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