कर्नाटक के जूनियर कॉलेजों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने के विरोध में कुछ हिंदू छात्र भगवा गमछा पहनकर कॉलेज आ गए l अब मामले की सुनवाई कर्नाटक हाईकोर्ट में चल रही है और हाईकोर्ट ने धार्मिक पोशाक पहनकर स्कूल और कॉलेज आने पर रोक लगाई हुई है l लेकिन हिजाब को लेकर जो विवाद एक छोटे से कॉलेज से शुरू हुआ क्या उसे वहीं निपटाया जा सकता था l
इस सवाल के जवाब में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर जफर सरेशवाला कहते हैं कि इस मामले में पूरा नुकसान उन बच्चियों का हो रहा है जो शिक्षा हासिल करने के लिए स्कूल और कॉलेज जाती हैं l
उन्होंने कहा, “जब लड़कियों को हिजाब के साथ कॉलेज में दाखिल होने से मना किया गया तो उन्हें विरोध में बैठने की जरूरत नहीं थी l लड़कियों के मां-बाप अपने स्तर पर स्कूल और प्रशासन से दखल की मांग कर सकते थे और इस मुद्दे पर बातचीत कर सकते थे l” वे आगे कहते हैं, “सोशल मीडिया के इस दौर में चीजें बहुत तेजी से फैलती हैं l लड़कियां विरोध में बैठ गईं और उसका रिएक्शन हुआ और अब मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा है और पूरे मुल्क में बड़ा मसला बन गया है l”
“हिजाब पहनने से सुरक्षा का एहसास”
हिजाब पहनने वाली बीए प्रथम वर्ष की छात्रा फातिमा उस्मान डीडब्ल्यू से कहती हैं कि उन्हें हिजाब से सुरक्षा का एहसास होता है और यह उनकी निजी पसंद है l वे कहती हैं, “हिजाब पहनने के लिए मुझे किसी ने नहीं कहा है ना ही मेरे माता-पिता ने ऐसा करने के लिए कहा है l मैंने खुद ही हिजाब पहनना चुना है l” जब उनसे पूछा गया कि उन्हें किस तरह से सुरक्षा का एहसास होता है तो वे कहती हैं, “जब मैं शहर में हिजाब पहनकर जाती हूं तो मुझे कोई नहीं देखता है l“
धार्मिक पहचान का हिस्सा है हिजाब
एक और छात्रा ने बताया कि वह पहले हिजाब नहीं पहनती थी लेकिन उसने इसे पहनने से पहले कई किताबों का अध्ययन किया और उसके बाद ही इसे पहनने का फैसला किया l मैंगलुरू में पढ़ने वाली गौसिया कहती हैं, “हिजाब पहनने पर हमें कोई परेशान नहीं करता है और हमें इज्जत मिलती है l हिजाब उनकी धार्मिक पहचान का हिस्सा है लेकिन उसे पहनने के लिए किसी ने दबाव नहीं डाला है l हिजाब पहनना हमारा हक है l” साथ ही वह हिजाब पहनने का एक और कारण भी बताती हैं, “कुछ लोग तो लड़कियों को इज्जत से देखते हैं लेकिन कुछ लोगों की नजरें बुरी होती हैं और हमें नहीं पता होता है कि कौन अच्छा और कौन बुरा इंसान है l”
“कोई अपना मौलिक अधिकार छोड़ नहीं सकता”
नलसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के वाइस चांसलर डॉ. फैजान मुस्तफा कहते हैं कि कोई अपना मौलिक अधिकार छोड़ नहीं सकता है l अगर किसी पुरानी पीढ़ी ने अपने मौलिक अधिकार को छोड़ दिया है तो नई पीढ़ी उस अधिकार के लिए आवाज उठा सकती है l वे कहते हैं कि इस मामले पर देश का संविधान क्या कहता है वह रीति और रिवाज के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण है l वह यह भी मानते हैं कि इसपर राजनीति हो रही है. मुस्तफा कहते हैं, “फिर भी वे बच्चियां हैं और उन्हें सिर्फ हिजाब के कारण पढ़ाई से रोकना यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है l धर्म की आजादी में संबंधित व्यक्ति बहुत अहम है l हमारे सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि धर्म की आजादी एक व्यक्ति का ईश्वर से रिश्ता है l”
फैजान अमेरिका की एक कंपनी का उदाहरण देते हैं कि हिजाब के कारण एक महिला को नौकरी नहीं दी जा रही थी, जिसके बाद वहां के सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह भेदभाव है l भारत के कई हाईकोर्ट ने अपने पूर्व के कई फैसलों में कहा है पसंद का अधिकार मौलिक अधिकार का सार है l
नुकसान उन लड़कियों का हुआ है जो कॉलेज नहीं जा पा रही
वहीं सरेशवाला कहते हैं कि इस मुद्दे से सबसे ज्यादा नुकसान उन लड़कियों का हुआ है जो कॉलेज नहीं जा पा रही हैं l सरेशवाला के मुताबिक, “होगा क्या, 15 दिन एक महीने में मामला सुलझ जाएगा, सबकी दुकानें चल जाएंगी, लेकिन उन बच्चियों का क्या जिनकी दो महीने बाद परीक्षाएं हैं l उनको पूछने वाला कोई नहीं होगा l”
हिजाब के समर्थन में बहस हुई तेज
इस बीच सैकड़ों बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले में हस्तक्षेप करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की है l पत्र में कहा गया है कि वह कर्नाटक हाईकोर्ट के उस अंतरिम आदेश को लेकर भी उतने ही चिंतित हैं, जिसमें मुस्लिम लड़कियों को शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने से रोक दिया गया है l
पत्र में आगे कहा गया है कि जिला प्रशासन द्वारा मुस्लिम लड़कियों और महिला शिक्षकों को स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश करने से पहले अपना हिजाब हटाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो न केवल उनका बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय और भारतीय संविधान का अपमान है l
“बेटी को तब भी पढ़ाओ जब उसने अपने सिर को ढंक रखा”
मुस्तफा कहते हैं कि अगर किसी का मानना है कि उसे अपना सिर ढंकना है तो भारतीय संविधान ने उसे यह अधिकार दिया है कि वह अपना सिर ढंक लें और सिखों के लिए पगड़ी की इजाजत संविधान में ही दी गई है l वे कहते हैं, “हमारा तो नारा है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ l बेटी को तब भी पढ़ाओ जब उसने अपने सिर को ढंक रखा है l”
अगली कड़ी में पढ़िए : हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
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