भारत अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश में ही उसने 31 जनवरी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन तनाव पर चर्चा के लिए होने वाली वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. लेकिन जब चर्चा हुई तब वहां मौजूद भारत के प्रतिनिधि ने इस तनाव को कम करने और क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थिरता की अपील की.रूस और नेटो के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत के लिए किसी का पक्ष लेना मुश्किल हो गया है. लिहाजा वह संतुलन बनाने की कोशिश में लगा है. अमेरिका और रूस दोनों भारत के रणनीतिक साझीदार हैं.
भारत अपनी सैन्य जरूरतों के लिए रूस पर बहुत ज्यादा निर्भर है. भारत अपने सैनिक साजो-सामान का 55 फीसदी रूस से ही खरीदता है. भारत रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदना चाहता है लेकिन अमेरिका ने इसे लेकर आपत्ति जताई है. अमेरिका भारत पर इस सौदे को रद्द करने का दबाव बनाता रहा है. लेकिन भारत का कहना है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र है और हथियारों की खरीद के मामले में वह राष्ट्रहित को तवज्जो देता है.
बदलते भू-राजनीतिक समीकरण में भारत के लिए यह मुश्किल घड़ी होगी.
दरअसल इस मामले में अमेरिका भारत को अपने पाले में देखना चाहेगा. लेकिन भारत रणनीतिक तौर पर रूस का भी करीबी है. वह लंबे वक्त से रूसी रक्षा उपकरणों और हथियारों का खरीदार रहा है. इसलिए रूस पर उसकी निर्भरता बनी हुई है. इसके साथ ही उसे चीन के आक्रामक रुख का भी सामना करना पड़ता है. इस लिहाज से भी रूस का साथ जरूरी है. भारत ऐसी स्थिति नहीं चाहेगा, जिसमें उसके दोनों सहयोगी आपस में टकरा जाएं. अगर ऐसा हुआ तो भारत को किसी एक पाले में आना होगा और यह उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को बड़ा झटका दे सकता है. बदलते भू-राजनीतिक समीकरण में भारत के लिए यह मुश्किल घड़ी होगी.
यूक्रेन के मामले में रूस का अमेरिका से तनाव और बढ़ा और उस पर प्रतिबंध लगाए गए तो चीन से उसकी नजदीकी और बढ़ जाएगी. इससे रूस और चीन में सैन्य सहयोग भी तेजी से बढ़ेगा.अगर भारत ने यूक्रेन मामले में अमरीका को छिपे तौर पर समर्थन देने की कोशिश की तो इसका रूस के साथ उसके संबंधों पर गहरा असर होगा.भारत अफगानिस्तान जैसी स्थिति से बचना चाहेगा. अमेरिका वहां से निकल आया है और तालिबान को मान्यता देने में चीन ने बेहद तेजी दिखाई. इससे अफगानिस्तान में निवेश के मामले में चीन ने भारत से बढ़त ले ली. भारत की योजनाएं खटाई में पड़ गईं.
भारत चाहता है कि यूक्रेन-रूस सीमा पर तनाव तुरंत कम हो और सभी देशों के जायज सुरक्षा हित बरकरार रहें.
नवंबर 2020 में यूक्रेन क्राइमिया में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लाया था. उस वक्त भारत ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की थी.इससे पहले 2014 में मनमोहन सिंह सरकार ने क्राइमिया को मिला लेने के बाद रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों का विरोध किया था.
बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरुमूर्ति की ओर से यूक्रेन संकट पर 31 जनवरी को दिए गए बयान की अलग-अलग तरह से व्याख्या हो रही है.तिरुमूर्ति ने सुरक्षा परिषद में भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा ”भारत चाहता है कि यूक्रेन-रूस सीमा पर तनाव तुरंत कम हो और सभी देशों के जायज सुरक्षा हित बरकरार रहें. ”
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