
दिवंगत के अंतिम दर्शन के लिए लोगों का तांता लगा रहा
चिलगु-चाकुलिया, सरायकेला-खरसावां : झारखंड आंदोलन के एक प्रमुख योद्धा, विस्थापन विरोधी संघर्ष के अग्रदूत और सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर कपूर बागी (वास्तविक नाम – कपूर टुडू) का पार्थिव शरीर आज बुधवार को उनके पैतृक गांव चिलगु-चाकुलिया स्थित पुश्तैनी घर के आंगन में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। दिवंगत के अंतिम दर्शन हेतु विभिन्न सामाजिक संगठनों, आंदोलनकारियों, प्रशानिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का तांता लगा रहा।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो दिवंगत कपूर के पारिवारिक संबंधी (फुफेरा भाई) भी हैं, ने अपनी उपस्थिति दर्ज कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री के साथ उनके मामा गुरुचरण किस्कू, ममेरे भाई दिलीप किस्कू, चारु किस्कू, जोगेश्वर बेसरा, अरुण टुडू आदि भी मौजूद रहे।
इससे पहले उनके पार्थिव शरीर को पूर्वाह्न लगभग साढ़े 11 बजे ब्रह्मानंद अस्पताल से लाया गया.
झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा से बिंदे सोरेन, झारखंड आंदोलनकारी फाउंडेशन से अजीत तिर्की और दीपक रंजीत समेत कई पुराने आंदोलनकारी साथी – कुमार चंद मार्डी, ओमप्रकाश, अमर सेंगेल, श्यामल मार्डी, उमापदो हांसदा, अंबिका यादव, घनश्याम, अजय सफीन, भाषान मानमी, कन्हाई मार्डी, देवेन महतो आदि उपस्थित रहे।
चांडिल क्षेत्र के समाजसेवी मोहम्मद नौशाद, जमशेदपुर से रमेश हांसदा, लूगु गोडेत, सुरेंद्र टुडू और ईचागढ़ की विधायक सविता महतो ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी।
झारखंड ने एक निर्भीक, सिद्धांतनिष्ठ और निःस्वार्थ योद्धा को खो दिया है – दीपक रंजीत
दीपक रंजीत ने बताया कि कपूर बागी का जीवन सादगी, ईमानदारी और संघर्ष का प्रतिमान था। वे गुरुजी (शिबू सोरेन) के करीबी और निजी सहयोगी रहे, लेकिन उन्होंने कभी इस रिश्ते का राजनीतिक लाभ नहीं उठाया। कोल्हान के तमाम आंदोलनों में वे अग्रिम पंक्ति में खड़े मिलते थे। विस्थापित मुक्ति वाहिनी के जरिये उन्होंने हजारों विस्थापितों की आवाज को ताकत दी। उनके निधन से झारखंड ने एक निर्भीक, सिद्धांतनिष्ठ और निःस्वार्थ योद्धा को खो दिया है। उनकी मृत्यु शुगर, हाई बीपी और किडनी संबंधी बीमारी के कारण हुई। बीते चार वर्षों में उनके दो छोटे भाइयों – किशोर और अनूप – का भी असमय निधन हो गया। उससे पहले उनके बड़े बेटे की मृत्यु भी विद्युत् स्पर्शाघात से हुई थी. अब परिवार की ज़िम्मेदारी उनकी पत्नी सुकुरमनी टुडू और वृद्ध माँ पर है।
सच कहना अगर बगावत है, तो समझो हम भी बागी हैं
दीपक रंजीत ने कहा, ‘कपूर बागी : सिर्फ़ एक नाम नहीं, है एक विचारधारा’ – उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है। झारखंड की माटी ने एक असली सपूत खोया है। “सच कहना अगर बगावत है, तो समझो हम भी बागी हैं” – यही उनका जीवन दर्शन था।’
कपूर बागी की अंतिम यात्रा आज दोपहर बाद लगभग ढाई बजे उनके गांव से निकली और मितान जुमिद के समीप उनकी अन्त्यष्टि कर दी गई, जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत झारखंड सरकार के प्रतिनिधियों, ज़िले के तमाम अधिकारयों सहित सैकड़ों लोग शामिल हुए।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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